कांग्रेस युग और जगन्नाथ मिश्रा का दबदबा
झंझारपुर की राजनीति की शुरुआत 1960 और 70 के दशक में कांग्रेस की मजबूत पकड़ के साथ हुई. डॉ. जगन्नाथ मिश्रा, जो बिहार की राजनीति में “शिक्षाविद मुख्यमंत्री” के रूप में प्रसिद्ध हुए, ने इस क्षेत्र में विकास की कई योजनाएं शुरू कीं. वे न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि जनता के बीच उनकी सादगी और शिक्षा को लेकर प्रतिबद्धता के कारण खासा जनाधार भी था. जगन्नाथ मिश्रा ने झंझारपुर को शिक्षा और ग्रामीण विकास का केंद्र बनाने का सपना देखा हालांकि बाद के वर्षों में कांग्रेस की लोकप्रियता धीरे-धीरे कम होती गई, लेकिन झंझारपुर में मिश्रा परिवार की साख बनी रही.
JDU से BJP तक: नितीश मिश्रा की बदलती राजनीतिक धारा
नितीश मिश्रा, जिन्होंने विश्व बैंक में भी काम किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, 2005 में जनता दल यूनाइटेड (JDU) से चुनाव जीतकर विधायक बने. उन्होंने युवा नेतृत्व की एक नयी पहचान स्थापित की और ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. जदयू और भाजपा के गठबंधन सरकार में उन्होंने कई विकास योजनाओं का संचालन लिया लेकिन राजनीति सिर्फ विकास नहीं, समीकरणों की भी बिसात होती है. 2014 में जब जदयू और भाजपा का गठबंधन टूटा, नितीश मिश्रा ने अपने राजनीतिक भविष्य को भाजपा के साथ जोड़ दिया. उन्होंने भाजपा जॉइन की और 2015 के विधानसभा चुनाव में इसी टिकट पर मैदान में उतरे.
बीजेपी की मौजूदगी और हालिया संघर्ष
भले ही नितीश मिश्रा भाजपा से जुड़े हों, लेकिन झंझारपुर में भाजपा को जमीन पर मजबूती बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी. मिथिला क्षेत्र में परंपरागत रूप से कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहा है, ऐसे में भाजपा को शुरुआती दौर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. हालांकि 2020 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार नितीश मिश्रा ने जीत दर्ज कर सीट पर भगवा लहराया, लेकिन इस जीत में मिश्रा परिवार की व्यक्तिगत पकड़ और जातीय समीकरणों का भी अहम योगदान था.
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जातीय समीकरण और सामाजिक समीपता
झंझारपुर की राजनीति को ब्राह्मण, मुसलमान और यादव मतदाताओं की तिकड़ी प्रभावित करती रही है. मिश्रा परिवार की ब्राह्मण पृष्ठभूमि ने उन्हें इस क्षेत्र में स्थायित्व प्रदान किया, लेकिन बदलते समय में अन्य जातीय समूहों और युवाओं को जोड़ना एक चुनौती बनता गया.