kadhava Vidhan Sabha Chunav 2025: NDA की एकजुटता से शकील अहमद खान को मिलेगी कड़ी चुनौती

kadhava Vidhan Sabha Chunav 2025: कटिहार जिले की कदवा सीट पर कांग्रेस के डॉ. शकील अहमद खान लगातार दो बार जीत चुके हैं, लेकिन इस बार एनडीए की एकजुटता से उन्हें कड़ी चुनौती मिल सकती है. 2008 में परिसीमन के बाद गठित इस सीट पर अब तक 13 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 5 बार कांग्रेस, 4 बार निर्दलीय और 2-2 बार बीजेपी व एनसीपी विजयी रहे हैं. यहां मुस्लिम और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. कुल मतदाता संख्या 2.61 लाख है. शकील अहमद की राह इस बार आसान नहीं होगी, खासकर एनडीए के एकजुट मुकाबले के कारण.

By Pratyush Prashant | July 14, 2025 3:33 PM
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kadhava Vidhan Sabha Chunav 2025: कदवा विधानसभा क्षेत्र साल 2008 में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के हुए परिसीमन के बाद कदवा और दंडखोरा सामुदायिक विकास खंड को मिलाकर बना है.

कदवा विधानसभा सीट बिहार के कटिहार जिले में आती है. 2020 में कदवा में कुल 42.00 प्रतिशत वोट पड़े. 2020 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से डा. शकील अहमद खान ने लोक जन शक्ति पार्टी के चंद्र भूषण ठाकुर को 32402 वोटों के मार्जिन से हराया था

कदवा विधानसभा सीट का इतिहास

बिहार का कदवा विधानसभा सीट कटिहार लोकसभा के तहत आता है.1951 में कदवा सीट अस्तित्व में आया था. 1951 में कदवा सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में कांगेस की टिकट पर हिमांशु शर्मा ने जीत हासिल की थी. वहीं 1957 के चुनाव में मोहिद्दीन मुख्तार ने कदवा सीट पर जीत हासिल किया था. 1962 के चुनाव में यहां से कांग्रेसी कैंडिडेट कमलनाथ झा ने जनता का समर्थन हासिल कर लिया था.1977 में कदवा सीट से निर्दलीय कैंडिडेट ख्वाजा शाहिद हुसैन ने विरोधियों को मात दे दिया था.

1980 में यहां से निर्दलीय कैंडिडेट मंगन इंसान ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था. 1985 में कदवा सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में उस्मान गनी ने कांग्रेस की टिकट पर जनता का समर्थन हासिल कर लिया था. 1990 में निर्दलीय कैंडिडेट अब्दुल जलील ने विरोधियों को करारी शिकस्त दे दी थी. 1995 में बीजेपी की टिकट पर भोला राय ने जनता का भरोसा कदवा में हासिल कर लिया था.

Also Read: Paru: क्या पारू सीट पर BJP का दबदबा टूटेगा?

2000 के चुनाव में कदवा से हेमराज सिंह ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर विरोधियों को मात देने में कामयाबी हासिल किया था.2005 में यहां से एनसीपी कैंडिडेट अब्दुल जलील ने विरोधियों को हराने में कामयाबी हासिल किया था. 2010 में कदवा सीट से बीजेपी की टिकट पर भोला राय ने एक बार फिर जीत का परचम लहरा दिया था. 2015 और 2020 में यहां से कांग्रेस पार्टी की टिकट पर शकील अहमद खान ने विरोधियों को हरा कर जीत का परचम लहरा दिया था. इस बार शकील अहमद खान पर ही कांग्रेस फिर से भरोसा जताएगी.

शकील अहमद खान कांग्रेस के बड़े नेता हैं. पिछली बार जेडीयू और लोजपा के बीच टिकट बंटने से खान के पटना पहुंचने का रास्ता आसान हो गया था, लेकिन इस बार जेडीयू,बीजेपी और लोजपा की मिली जुली शक्ति से कांग्रेस नेता शकील अहमद खान को कड़ी चुनौती मिल सकती है.

कदवा विधानसभा सीट का समीकरण

यहां मुस्लिम मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं. हालांकि यादव वोटर भी यहां निर्णायक संख्या में हैं. अब तक इस सीट पर कुल 13 बार चुनाव हुए हैं. यहां मुस्लिम मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं. हालांकि यादव वोटर भी यहां निर्णायक संख्या में हैं. अब तक इस सीट पर कुल 13 बार चुनाव हुए हैं. इसमें 5 बार कांग्रेस, 4 बार निर्दलीय, दो-दो बार BJP और NCP को कामयाबी हासिल हुई है.
इस सीट पर RJD और JDU को कभी भी जीत नहीं मिली. कांग्रेस भी 2015 विधानसभा चुनाव में यहां 30 साल बाद वापसी कर पाई. यहां कुल वोटरः 2.61 लाख जिसमें पुरुष वोटरः 1.38 लाख (53.00%), महिला वोटरः 1.22 लाख (46.96%) और ट्रांसजेंडर वोटरः 9 (0.003%) हैं.

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कदवा विधानसभा सीट बिहार के कटिहार जिले में आती है. 2020 में कदवा में कुल 42.00 प्रतिशत वोट पड़े. 2020 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से डा. शकील अहमद खान ने लोक जन शक्ति पार्टी के चंद्र भूषण ठाकुर को 32402 वोटों के मार्जिन से हराया था

कदवा विधानसभा सीट का इतिहास

बिहार का कदवा विधानसभा सीट कटिहार लोकसभा के तहत आता है.1951 में कदवा सीट अस्तित्व में आया था. 1951 में कदवा सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में कांगेस की टिकट पर हिमांशु शर्मा ने जीत हासिल की थी. वहीं 1957 के चुनाव में मोहिद्दीन मुख्तार ने कदवा सीट पर जीत हासिल किया था. 1962 के चुनाव में यहां से कांग्रेसी कैंडिडेट कमलनाथ झा ने जनता का समर्थन हासिल कर लिया था.1977 में कदवा सीट से निर्दलीय कैंडिडेट ख्वाजा शाहिद हुसैन ने विरोधियों को मात दे दिया था.

1980 में यहां से निर्दलीय कैंडिडेट मंगन इंसान ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था. 1985 में कदवा सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में उस्मान गनी ने कांग्रेस की टिकट पर जनता का समर्थन हासिल कर लिया था. 1990 में निर्दलीय कैंडिडेट अब्दुल जलील ने विरोधियों को करारी शिकस्त दे दी थी. 1995 में बीजेपी की टिकट पर भोला राय ने जनता का भरोसा कदवा में हासिल कर लिया था.

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2000 के चुनाव में कदवा से हेमराज सिंह ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर विरोधियों को मात देने में कामयाबी हासिल किया था.2005 में यहां से एनसीपी कैंडिडेट अब्दुल जलील ने विरोधियों को हराने में कामयाबी हासिल किया था. 2010 में कदवा सीट से बीजेपी की टिकट पर भोला राय ने एक बार फिर जीत का परचम लहरा दिया था. 2015 और 2020 में यहां से कांग्रेस पार्टी की टिकट पर शकील अहमद खान ने विरोधियों को हरा कर जीत का परचम लहरा दिया था. इस बार शकील अहमद खान पर ही कांग्रेस फिर से भरोसा जताएगी.

शकील अहमद खान कांग्रेस के बड़े नेता हैं. पिछली बार जेडीयू और लोजपा के बीच टिकट बंटने से खान के पटना पहुंचने का रास्ता आसान हो गया था, लेकिन इस बार जेडीयू,बीजेपी और लोजपा की मिली जुली शक्ति से कांग्रेस नेता शकील अहमद खान को कड़ी चुनौती मिल सकती है.

कदवा विधानसभा सीट का समीकरण

यहां मुस्लिम मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं. हालांकि यादव वोटर भी यहां निर्णायक संख्या में हैं. अब तक इस सीट पर कुल 13 बार चुनाव हुए हैं. यहां मुस्लिम मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं. हालांकि यादव वोटर भी यहां निर्णायक संख्या में हैं. अब तक इस सीट पर कुल 13 बार चुनाव हुए हैं. इसमें 5 बार कांग्रेस, 4 बार निर्दलीय, दो-दो बार BJP और NCP को कामयाबी हासिल हुई है.
इस सीट पर RJD और JDU को कभी भी जीत नहीं मिली. कांग्रेस भी 2015 विधानसभा चुनाव में यहां 30 साल बाद वापसी कर पाई. यहां कुल वोटरः 2.61 लाख जिसमें पुरुष वोटरः 1.38 लाख (53.00%), महिला वोटरः 1.22 लाख (46.96%) और ट्रांसजेंडर वोटरः 9 (0.003%) हैं.

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