क्या है फुलपरास का राजनीतिक इतिहास ?
कर्पूरी ठाकुर ने जिस समाजवादी विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाया, उसका असर फुलपरास की सियासत पर भी पड़ा. सामाजिक न्याय, शिक्षा का अधिकार और पिछड़े वर्गों को अवसर दिलाने के उनके प्रयासों ने इस क्षेत्र के राजनीतिक चेतना को दिशा दी. फुलपरास का राजनीतिक इतिहास भी रोचक रहा है. यह सीट पहले कांग्रेस और राजद के प्रभाव में रही, लेकिन समय के साथ जदयू और अब समाजवादी पार्टी की उपस्थिति ने नए समीकरण खड़े किए हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से विजयी हुए विधायक देवनाथ यादव ने इस परंपरा को नया मोड़ दिया. यह जीत पारंपरिक दलों के खिलाफ जन असंतोष और क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी के खिलाफ एक जनादेश भी थी.
देवनाथ यादव बने समाजवादी पार्टी के विधायक
विधायक देवनाथ यादव ने सामाजिक न्याय, शिक्षा व्यवस्था की मजबूती, सड़क निर्माण और बाढ़ प्रभावित इलाकों के पुनर्विकास को अपनी प्राथमिकता में रखा है. उनके कामकाज में कर्पूरी ठाकुर की नीतियों की झलक देखी जा सकती है, विशेषकर जब वे पिछड़े वर्गों और वंचित समुदायों के मुद्दे विधानसभा में उठाते हैं. हालांकि, चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं. फुलपरास में बाढ़, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा संसाधनों की कमी आज भी ज्वलंत मुद्दे हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार में भागीदारी नहीं होने के बावजूद, स्थानीय विधायक की सक्रियता ने लोगों में उम्मीद जगाई है.
सामाजिक परिवर्तन का मिशाल बन सकती है फुलपरास सीट
आज की राजनीति में जब जातीय ध्रुवीकरण और दल-बदल आम हो चला है, फुलपरास एक ऐसा उदाहरण बन सकता है जहां समाजवादी विचार और विकास की मांग साथ-साथ आगे बढे. फुलपरास की राजनीति अगर जननायक कर्पूरी ठाकुर की विरासत को सही मायनों में आत्मसात करती है, तो यह सीट बिहार में सामाजिक परिवर्तन की मिसाल बन सकती है.