क्या है राजनीतिक इतिहास ?
2000 के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के गठबंधन ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू को यहां जीत मिली, लेकिन 2015 में जदयू और भाजपा के अलग होने के बाद स्थिति फिर बदली और महागठबंधन को फायदा हुआ. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के वीरेंद्र यादव ने इस सीट से जीत दर्ज की और एनडीए प्रत्याशी को हराया.हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को इस क्षेत्र में बढ़त मिली, जिससे यह साफ है कि यहां मुकाबला अब काफी कड़ा और दिलचस्प हो चला है. कुल मिलाकर, मांझी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास कांग्रेस से लेकर राजद, जदयू और भाजपा के प्रभाव तक फैला रहा है. यह सीट अब महागठबंधन और एनडीए के बीच एक प्रमुख राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बन चुकी है, जहां जातीय समीकरण और स्थानीय नेतृत्व निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
Also read: जहां बाहुबली भी हारे, अब लड़ाई है वोट समीकरण की!
क्या है मौजूदा हालात ?
मांझी विधानसभा सीट पर 2025 के चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज है. एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के नेता जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के बीच खींचतान जारी है. मांझी 20 से 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, जिससे गठबंधन में तनाव बढ़ा है. दूसरी ओर, महागठबंधन चुनाव आयोग के खिलाफ आंदोलनरत है, जिससे माहौल और गरमाया है. 2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए को मामूली बढ़त मिली थी. मतदान प्रतिशत में वृद्धि और जातीय समीकरणों के चलते मांझी सीट पर मुकाबला बेहद कड़ा और दिलचस्प होने की संभावना है.