बिहार में जारी मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान को लेकर सियासत तेज हो गई है. अब इस मामले में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के सहयोगी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं. उन्होंने कहा कि मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया कोई नई नहीं है, लेकिन इस बार समय की कमी और प्रक्रिया की देर से शुरुआत ने आम जनता को मुश्किल में डाल दिया है.
कुशवाहा ने समय को लेकर उठाया सवाल
कुशवाहा ने स्पष्ट किया कि राज्य के करोड़ों लोग बाहर काम करते हैं और वे इतने कम समय में दस्तावेजों के साथ उपस्थित नहीं हो सकते. उन्होंने कहा, “बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास जरूरी कागजात नहीं हैं. कोई स्कूल नहीं गया तो मैट्रिक सर्टिफिकेट कहां से लाएगा? ना जन्मतिथि का दस्तावेज है, ना निवास प्रमाण पत्र.”उन्हें इस बात पर चिंता है कि कहीं ऐसे वैध मतदाता, जिनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं, गलती से सूची से बाहर न कर दिए जाएं. उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की कि आमजन की आशंकाओं का समाधान किया जाए और किसी भी वैध मतदाता का नाम लिस्ट से न हटे.
25 जून से 26 जुलाई तक हो रहा वोटर लिस्ट रिवीजन
गौरतलब है कि बिहार में 25 जून से 26 जुलाई तक वोटर लिस्ट रिवीजन का कार्य चल रहा है, जिसमें करीब 8 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन होना है. विपक्ष पहले से ही इस प्रक्रिया को लेकर समय और पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है. अब कुशवाहा के बयानों ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है.
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NDA के दूसरे दल प्रक्रिया को बता रहे नियमित और निष्पक्ष
वहीं, एनडीए के अन्य घटक दल बीजेपी, जेडीयू, लोजपा (रामविलास) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा चुनाव आयोग की प्रक्रिया को “नियमित और निष्पक्ष” बता रहे हैं. इन दलों का कहना है कि विपक्ष को अपनी हार का डर सता रहा है, इसलिए वह बेवजह मुद्दा बना रहा है. अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग कुशवाहा की अपील और विपक्ष के आरोपों पर क्या रुख अपनाता है. लेकिन इतना तय है कि बिहार की सियासत में इस मुद्दे ने एक नया मोड़ जरूर ला दिया है.
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