Bihar Chunav: बिहार के वह नेता जो पहले बने प्रधानमंत्री फिर ली मुख्यमंत्री पद की शपथ, 15 साल तक रहे सीएम

Bihar Chunav: बिहार में साल 1937 में हुए चुनाव में श्रीकृष्ण सिंह केंद्रीय असेंबली और बिहार असेंबली के सदस्य चुने गए और उन्होंने राज्य के प्रधानमंत्री की शपथ ली. हालांकि 1946 में हुए सुधार के बाद मुख्यमंत्री बने और 1961 तक वह इस पद पर रहे.

By Prashant Tiwari | July 1, 2025 3:13 PM
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Bihar Chunav: बिहार अब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. वोटर वेरिफिकेशन का दौर खत्म होते ही चुनाव आयोग 18वीं विधानसभा चुनाव का ऐलान करेगा. ऐसे में आज हम आपको बिहार के एक ऐसे नेता के बारे में बताएंगे जिसकी पहचान सिर्फ राजनेता की नहीं बल्कि आजादी के सिपाही और समाज सुधारक की भी रही है. यह नेता जब राजनीति में आए तो पहले प्रधानमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ और जब मुख्यमंत्री बने तो 15 साल तक इस पद पर रहे और जब उनका निधन हुआ तो उनकी तिजोरी में महज 24 हजार रुपये थे. हम बात कर रहे हैं बिहार के पहले मुख्यमंत्री और बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह की. आइए जानते हैं उनके प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री बनने की कहानी. 

1937 में ली प्रधानमंत्री पद की ली शपथ 

साल 1935 में अंग्रेजों ने ब्रिटिश संसद से भारत सरकार अधिनियम पारित किया. इसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन को और अधिक व्यवस्थित करना और भारत को एक संघीय प्रणाली की ओर ले जाना था. इसी नियम के तहत 1937 में बिहार में चुनाव हुआ और इस चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. वहीं, श्रीकृष्ण सिंह भी केंद्रीय असेंबली और बिहार असेंबली के सदस्य चुने गए और उन्होंने राज्य के प्रधानमंत्री की शपथ ली. हालांकि आजादी से एक साल पहले 1946 में कानून में संशोधन हुआ और राज्यों के प्रधानमंत्रियों का पद खत्म करके मुख्यमंत्री का पद लाया गया. इस तरह श्रीकृष्ण सिंह पहले प्रधानमंत्री फिर मुख्यमंत्री बनने वाले बिहार के एकमात्र राजनेता बने. 

15 साल तक संभाली बिहार की कमान 

श्रीकृष्ण सिंह, जिन्हें “श्री बाबू” और “बिहार केसरी” के नाम से जाना जाता है, बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म 21 अक्टूबर 1887 को नवादा जिले के खनवा गांव में हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गांव शेखपुरा जिले के मौर में आता है. श्रीकृष्ण सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल और मुंगेर के जिला स्कूल में प्राप्त की. उन्होंने पटना कॉलेज में कानून की पढ़ाई की और 1915 में मुंगेर में वकालत शुरू की. 1916 में महात्मा गांधी से मिलने के बाद, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया और कई बार जेल गए.

 निधन हुआ तो तिजोरी में थे 24500 रुपए 

15 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी जब उनके निधन के बाद उनकी तिजोरी खोली गई तो केवल 24500 रुपये मिले थे. जिसमें एक लिफाफे में रखे 20000 प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे और दूसरे लिफाफे में 3000 मुनीम जी की बेटी की शादी के लिए और तीसरे लिफाफे में 1000 थे जो महेश बाबू की छोटी कन्या के लिए थे और चौथे लिफाफे में 500 श्री कृष्ण सिंह की सेवा करने वाले खास नौकर के लिए थे. श्री कृष्ण सिंह परिवारवाद के भी खिलाफ थे.

मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

बतौर मुख्यमंत्री उनके राज के दौरान बिहार में बहुत सारी फैक्ट्रियां लगी, इनमें बरौनी रिफाइनरी  आयल देश का पहला कारखाना, सिंदरी और बरौनी रसायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना भारी उद्योग निगम एचईसी हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट सैल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड बड़हरा, देश का पहला रेल सड़क पुल राजेंद्र पुल, कोसी प्रोजेक्ट, पूसा एग्री कल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. 

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दलितों को दिलाया बैद्यनाथ धाम मंदिर में प्रवेश 

हालांकि सवर्ण समुदाय के भूमिहार जाति से आने वाले श्रीकृष्ण सिंह दलितों के भी बड़े हितैषी रहे. दलितों की स्थिति को सुधारने के लिए श्रीकृष्ण सिंह ने विनोबा भावे के आह्वान पर राज्य में 33 लाख एकड़ जमीन दान देकर शिक्षा और स्वास्थ्य की इमारत खड़ी की थी. जमीदारी प्रथा को खत्म करने वाले  बिहार में श्रीकृष्ण सिंह ही थे.इतना ही नहीं जमींदारी प्रथा खत्म करने वाला बिहार देश  का पहला राज्य बना. इतना ही नहीं श्रीकृष्ण सिंह ने पहल करते हुए 700 दलितों को लेकर बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर में पूजा अर्चना की और दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाया. इससे पहले दलितों को बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी.  

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