Sonbarsha Vidhan Sabha Chunav 2025: क्या रत्नेश सदा सोनवर्षा सीट पर जीत का चौका लगा पाएंगे?

Sonbarsha Vidhan Sabha Chunav 2025: सहरसा जिले की सोनवर्षा विधानसभा सीट ऐतिहासिक महत्व और विविध सामाजिक संरचना के लिए जानी जाती है. यहां मुस्लिम और यादव मतदाता प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जबकि राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान भी निर्णायक संख्या में हैं. 1957 से अब तक इस सीट पर कई पार्टियों ने जीत दर्ज की है, लेकिन 2010 से लगातार तीन बार जेडीयू के रत्नेश सदा ने जीत हासिल की है. चिराग पासवान के एनडीए में लौटने से एनडीए की स्थिति और मज़बूत हुई है. 2025 में रत्नेश सदा के सामने राजद की चुनौती फिर से टक्कर देने की कोशिश करेगी.

By Pratyush Prashant | July 12, 2025 12:33 PM
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Sonbarsha Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार के सहरसा जिले में स्थित सोनवर्षा राज गाँव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. इसे पहले अंगुत्तरप के नाम से जाना जाता था और यह प्रसिद्ध वैशाली जिले के सीमा पर बसा था. इतिहासकारों का मानना है कि अंग देश के पतन के बाद यह क्षेत्र मगध साम्राज्य के अधीन हो गया. यहाँ मिले मौर्य कालीन स्तंभ इस बात के सबूत हैं.

सोनवर्षा से सटे बिराटपुर गाँव में हुई खुदाई में बौद्ध धर्म से जुड़ी कुछ स्मृतियाँ मिली हैं, जो यहाँ बौद्ध प्रभाव की ओर इशारा करती हैं. माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान वे इस क्षेत्र से होकर गुज़रे थे, जिससे बिराटपुर नाम की उत्पत्ति जुड़ी हुई है.

सोनवर्षा विधानसभा सीट का इतिहास

बिहार का सोनवर्षा विधानसभा सीट मधेपुरा लोकसभा के तहत आता है. 1957 में सोनवर्षा सीट पर हुए पहले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय कैंडिडेट सिंघेश्वर राय ने जीत हासिल की थी. 1962 के चुनाव में भी सोनवर्षा सीट से निर्दलीय कैंडिडेट सीताराम महतो ने ही जीत हासिल की थी. वहीं 1967 में निर्दलीय कैंडिडेट आर एन राय ने सोनवर्षा सीट से जनता का समर्थन हासिल किया था. 1969 के चुनाव में सोनवर्षा सीट से कांग्रेसी कैंडिडेट राज नंदन राय ने विरोधियों को शिकस्त दे दिया था.

1972 में सोनवर्षा सीट पर हुए चुनाव में एसओपी पार्टी के कैंडिडेट सीताराम महतो ने जीत हासिल की थी. 1977 में यहां से कांग्रेस पार्टी की टिकट पर मोहम्मद आलम ने जनता का समर्थन हासिल कर लिया था.

वहीं 1980 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस पार्टी के कैंडिडेट मोहम्मद अनवारूल हक ने विरोधियों को शिकस्त दे दिया था. 1985 में सोनवर्षा सीट पर हुए चुनाव में लोकदल के टिकट पर कपूरी ठाकुर ने जनता का समर्थन हासिल कर लिया था. 1990 और 1995 के चुनाव में सोनवर्षा सीट से जनता दल के कैंडिडेट रामजीवन प्रसाद ने जनता का समर्थन हासिल किया था.

2000 और 2005 के चुनाव में सोनवर्षा सीट से रामचंद्र पूर्वे ने आरजेडी की टिकट पर जीत हासिल की थी. वहीं 2010,2025 और 2020 के चुनाव में जेडीयू कैंडिडेट रत्नेश सदा ने लगातार तीन बार सोनबरसा सीट से जीत का परचम लहराया था. इस बार भी कैबिनेट मंत्री के तौर पर रत्नेश सदा आरजेडी को सीधी चुनौती देंगे.

सोनवर्षा विधानसभा सीट का समीकरण

सोनवर्षा विधानसभा सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं. हालांकि राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान वोटर भी यहां निर्णायक संख्या में हैं. इस सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे अहम भूमिका में हैं.

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पिछली बार एलजेपी उम्मीदवार ने सोनवर्षा सीट पर 13 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर लिया था. इसके बावजूद जेडीयू उम्मीदवार रत्नेश सदा ने 13 हजार से ज्यादा वोट से जीत हासिल कर लिया था।

अब जबकि लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा हैं इसलिए सोनबरसा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार रत्नेश सदा की स्थिति पहले से भी मजबूत लग रही है.

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