RJD MLA Tej Pratap Yadav: लालू प्रसाद यादव के ज्येष्ठ पुत्र और समस्तीपुर जिले के हसनपुर विधानसभा के विधायक तेज प्रताप यादव ने पार्टी से बगावत कर दी है. तेज प्रताप यादव जल्दी ही नई पार्टी बनाने वाले हैं और इसमें उनकी मित्र अनुष्का भी साथ आने वाली हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वो आने वाले दो दिनों में पार्टी के नाम का घोषण कर सकते हैं. हालांकि, अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है.
क्या है पूरा मामला ?
कथिक तौर पर अनुष्का से रिश्ते की बात सामने आने के बाद लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से बाहर निकाल दिया था. RJD और परिवार से बाहर निकाले जाने के बाद तेज प्रताप यादव पटना में अपने सरकारी आवास पर रह रहे हैं और यही पर वो अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठक और चर्चा करते रहते हैं.
तेज प्रताप ने दिया संकेत
बीते 10 जुलाई यानी गुरुवार को तेज प्रताप वैशाली जिले के महुआ गए थे. वहां उन्होंने अपनी गाड़ी से RJD का झंडा हटाकर दूसरा झंडा लगा दिया था, जिसमें लालू यादव की तस्वीर नहीं थी. इस घटना के बाद सियासी गलियों में काफी चर्चा का विषय बना था. तेज प्रताप यादव ने महुआ में अपने समर्थकों के साथ बैठक की और इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के भी संकेत दिए. तेज प्रताप यादव महुआ से 2015 से 2020 तक विधायक रह चुके हैं और इस सीट पर लगातार नजर बनाये हुए हैं.
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तेज प्रताप यादव का फोटो हुआ वायरल
बता दें कि दो महीने पहले तेज प्रताप यादव ने सोशल मीडिया अकाउंट पर अनुष्का के साथ तस्वीर पोस्ट की थी. उसमें दोनों के 12 सालों से रिलेशनशिप में होने का दावा किया गया था. कुछ देर बाद यह पोस्ट डिलीट कर दिया गया था. हालांकि, बाद में सोशल मीडिया पर दोनों के कई अन्य फोटो वायरल होने लगे. इसके बाद लालू ने तेज प्रताप को आरजेडी से 6 साल के लिए निकालते करते हुए परिवार से भी बेदखल कर दिया था.
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक बार फिर नया समीकरण उभर कर सामने आया है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और हसनपुर से मौजूदा विधायक तेजप्रताप यादव ने पांच दलों के साथ मिलकर एक नया राजनीतिक मोर्चा खड़ा कर दिया है. मंगलवार को पटना में आयोजित प्रेस वार्ता में तेजप्रताप ने इसकी औपचारिक घोषणा करते हुए बताया कि वे आगामी विधानसभा चुनाव महुआ सीट से लड़ेंगे और गठबंधन की अगुवाई खुद करेंगे.
इन पार्टियों के साथ तेजप्रताप का गठबंधन
तेजप्रताप यादव का यह गठबंधन विकास वंचित इंसान पार्टी (वीवीआईपी), भोजपुरिया जन मोर्चा, प्रगतिशील जनता पार्टी, वाजिब अधिकार पार्टी और संयुक्त किसान विकास पार्टी को मिलाकर तैयार किया गया है. तेजप्रताप ने कहा कि इस गठबंधन का मकसद उन तबकों को साथ लाना है जो अब तक विकास और राजनीतिक हिस्सेदारी से वंचित रहे हैं.
उन्होंने कहा, "यह महज गठबंधन नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक वैचारिक आंदोलन की शुरुआत है. हम हाशिए पर रह गए वर्गों को सम्मान और प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए एकजुट हो रहे हैं."
तेजप्रताप ने राजद और कांग्रेस को भी दिया न्योता
तेजप्रताप ने वीवीआईपी के नेता प्रदीप निषाद के साथ मंच साझा करते हुए उन्हें निषाद समाज का असली प्रतिनिधि बताया और कहा कि मछुआरा समाज को राजनीतिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उनकी भूमिका अहम होगी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ दल निषाद समाज के नाम पर राजनीति तो करते हैं लेकिन उनके लिए काम कुछ नहीं करते.
तेजप्रताप ने राजद और कांग्रेस को भी इस गठबंधन में शामिल होने का खुला न्योता दिया. उन्होंने कहा कि अगर ये पार्टियां वास्तव में सामाजिक न्याय की राजनीति करती हैं, तो उन्हें इस नई धुरी का हिस्सा बनना चाहिए.
हसनपुर छोड़ महुआ की राह
तेजप्रताप यादव ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वे इस बार हसनपुर नहीं, बल्कि महुआ से चुनाव लड़ेंगे. महुआ वही सीट है, जहां से उन्होंने 2015 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी और पहली बार विधायक बने थे. अब एक बार फिर वह उसी सीट से अपनी "नई राजनीतिक धारा" की शुरुआत करने जा रहे हैं.
नई राजनीति की ओर कदम
तेजप्रताप यादव लंबे समय से अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में लगे थे. कभी शिवभक्ति और कभी कृष्णभक्ति के जरिए वे खुद को अन्य नेताओं से अलग दिखाते रहे हैं. लेकिन इस बार उनका अंदाज बदला-बदला है. वो संगठित रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं.
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[post_title] => Bihar Politics: तेजप्रताप यादव का नया सियासी गठबंधन, इन पांच दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान [post_excerpt] => Bihar Politics: तेजप्रताप यादव ने बिहार की राजनीति में नई दिशा देने की कोशिश शुरू कर दी है. उन्होंने पांच दलों के साथ मिलकर एक नया राजनीतिक मोर्चा बनाया है और महुआ से चुनाव लड़ने की घोषणा की है. तेजप्रताप का कहना है कि यह गठबंधन हाशिए पर रहे वर्गों को राजनीतिक पहचान और अधिकार दिलाने के लिए बनाया गया है. [post_status] => publish [comment_status] => closed [ping_status] => closed [post_password] => [post_name] => bihar-politics-tej-pratap-yadav-announced-to-contest-election-with-five-political-parties [to_ping] => [pinged] => [post_modified] => 2025-08-06 09:50:46 [post_modified_gmt] => 2025-08-06 04:20:46 [post_content_filtered] => [post_parent] => 0 [guid] => https://www.prabhatkhabar.com/?p=3647847 [menu_order] => 0 [post_type] => post [post_mime_type] => [comment_count] => 0 [filter] => raw [filter_widget] => newsnap ) [1] => WP_Post Object ( [ID] => 3647797 [post_author] => 5368 [post_date] => 2025-08-06 08:10:39 [post_date_gmt] => 2025-08-06 02:40:39 [post_content] =>katoriya vidhaanasabha: कटोरिया — नाम छोटा है, पर इसकी विरासत गहरी और विद्रोही है. बांका लोकसभा क्षेत्र का यह आदिवासी इलाका कभी ब्रिटिश राज की नींदें हराम करता था और आज लोकतंत्र की जमीन पर नया सपना बो रहा है. यह सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि संघर्ष, स्वाभिमान और सत्ता के सवालों की प्रयोगशाला है.
“कटोरिया का जंगल सिर्फ पेड़ों से नहीं, पुरखों के साहस और संघर्ष से भरा है.”
पीरो मांझी से बिजली तक की क्रांति
जब कटोरिया की आवाज़ दिल्ली तक पहुंची और विकास की लौ जली… 1950 के दशक में कटोरिया विधानसभा से विधायक पीरो मांझी ने एक ऐतिहासिक पहल की. उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से बांका क्षेत्र में बिजली सेवा बहाल करने की मांग रखी. पीरों मांझी की मांग पर पंडित विनोदानंद झा के समय बांका बिजली सेवा बहाल की गई. यह केवल एक बुनियादी सुविधा की मांग नहीं थी, बल्कि एक आदिवासी क्षेत्र की ओर से राष्ट्रीय मंच पर रखी गई पहली प्रखर आवाज़ थी.
पीरो मांझी का यह प्रयास उस समय अद्वितीय था, जब दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों की बातें सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुंचती थीं. लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ और संकल्प से यह दिखा दिया कि कटोरिया जैसे पिछड़े इलाके भी विकास के हकदार हैं.
पंडित नेहरू ने इस मांग को गंभीरता से लिया और बिजली परियोजना को स्वीकृति दी. इसके बाद कटोरिया में पहली बार अंधेरे को चीरते हुए रोशनी की किरणें पहुंचीं.
“एक आदिवासी नेता की आवाज़ संसद में गूंजी और कटोरिया के जंगलों में बल्ब जले.”
पीरो मांझी का यह कदम कटोरिया के राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर बना — जिसने साबित किया कि नेतृत्व अगर जमीनी हो, तो बदलाव संभव है. (बिभांशु शेखर सिंह, विप्लवी बांका, पेज नं.19)
विद्रोह की जड़ें: 'बौंसी राजा' और आदिवासी चेतना
कटोरिया-बौंसी की धरती से उठी थी भगीरथी मांझी की आवाज, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी… 1868, बौंसी के मधुसूदन मंदिर में एक ऐतिहासिक घटना घटी — भागीरथ मांझी ने खुलेआम ब्रिटिश हुकूमत को ललकारा, खुद को "बौंसी का राजा" घोषित किया और अंग्रेजों को लगान देने से इनकार कर दिया.भगीरथ मांझी का जन्म गोड्डा के तलड़िहा में खरवार जनजाति में हुआ था,उनको बाबाजी के नाम से जाना जाता था, इन्होंने 1874 में खरवार आंदोलन को प्रारंभ किया था. यह कोई साधारण विरोध नहीं था, बल्कि आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की पहली संगठित पुकार थी.
इस विद्रोह को अक्सर संथाल विद्रोह से जोड़ा जाता है, लेकिन यह अपने आप में एक स्वतंत्र, स्थानीय विद्रोह था. यह बांका की उस विद्रोही परंपरा का हिस्सा था जो सत्ता के अन्याय के सामने झुकना नहीं जानती थी.
कटोरिया, जो बौंसी से सटा इलाका है, उस समय घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों से भरा हुआ था — अंग्रेजों की पकड़ यहां बेहद कमजोर थी यही कारण था कि कटोरिया के जंगल, विद्रोह की गुप्त बैठकों, रणनीतियों, और छापामार प्रशिक्षण के केंद्र बन गए.
भागीरथ मांझी का यह आंदोलन सिर्फ लगान या ज़मीन की लड़ाई नहीं था, यह एक अस्तित्व की लड़ाई थी — जिसमें आदिवासी समाज ने अपने जल, जंगल और जमीन के अधिकार की रक्षा की बात कही, और साथ ही अपनी सांस्कृतिक पहचान और स्वायत्तता को भी बचाने का संकल्प लिया.
कटोरिया-बौंसी की यह क्रांतिकारी गाथा, आज भी उस चेतना की याद दिलाती है, जो शोषण के खिलाफ पहली आवाज बनकर उभरी थी — और जिसने आदिवासी इतिहास में प्रतिरोध की अमिट लकीर खींच दी।. (बिभांशु शेखर सिंह, विप्लवी बांका, पेज नं.5-6)
लोकसभा में कटोरिया की ताकत
बांका लोकसभा सीट बनने के बाद कटोरिया आदिवासी विमर्श का केंद्र बना. माओवादी प्रभाव के दौर में भी यहां के लोगों ने लोकतंत्र और विकास के बीच संतुलन बनाना सीखा. जल-जंगल-जमीन की आवाज़ें यहीं से निकलकर संसद तक पहुंची हैं.
आज भी कटोरिया की पंचायतों में आदिवासी और महिला नेतृत्व एक नई तस्वीर पेश कर रहा है.डॉ. निक्की हेम्ब्रोम कटोरिया विधानसभा से विधायक है.शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, लेकिन राजनीतिक जागरूकता और जन भागीदारी ने बदलाव की नींव रख दी है.
“जो क्षेत्र कभी उपेक्षित था, वही आज लोकतंत्र की नई लकीर खींच रहा है.”
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उनका सफर जेल, आंदोलन, जनसभा और फिर विधानसभा तक का रहा है और ये सफर अब भी जारी है. 2015 के विधानसभा चुनाव में नामांकन करते समय ही सत्यदेव राम को गिरफ्तार कर लिया गया. वे जेल में रहते हुए चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. 2020 चुनाव में भी उन्होंने भाजपा के रामायण मांझी को लगभग 12 हजार वोट से हराया.
तीन बार मैरवा से विधायक, फिर दरौली से कमान
सत्यदेव राम ने पहली बार 1988 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था. उन्होंने लेफ्ट राजनीति को अपनी ज़मीन और पहचान बनाई. वे तीन बार मैरवा विधानसभा सीट से विधायक चुने गए, और बाद में दरौली विधानसभा क्षेत्र से जीतकर सीवान की राजनीति में नए समीकरण गढ़े.
CPI(ML) के प्रमुख चेहरों में शामिल सत्यदेव राम सिर्फ पार्टी के भीतर ही नहीं, जनता के बीच भी एक जमीनी नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. खासकर सीवान, मैरवा और दरौली जैसे इलाकों में उन्होंने गरीबों, दलितों और मजदूरों के मुद्दों को लगातार उठाया.
संघर्षशील छवि और जेल की सजा
सत्यदेव राम की राजनीतिक छवि जितनी स्पष्ट रही, उनका जीवन उतना ही संघर्षपूर्ण रहा है. उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज हुए, जिनमें सबसे प्रमुख चिल्हमरवा दोहरा हत्याकांड है. इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
उनका एक बड़ा राजनीतिक पड़ाव तब आया जब वे जेल में रहते हुए भी चुनाव मैदान में उतरे और जनता ने उन्हें भारी मतों से जिताकर विधानसभा भेजा. यह घटना उनके जनाधार और राजनीतिक पकड़ को दर्शाती है. विरोधियों के लिए यह एक संदेश था कि वाम राजनीति सिर्फ विचारधारा नहीं, ज़मीनी समर्थन से चलती है.
मुद्दों की राजनीति
सत्यदेव राम की राजनीति जाति या धर्म के बजाय मुद्दों पर आधारित रही है. चाहे भूमि सुधार की बात हो, दलितों के अधिकार, मजदूरों की मजदूरी या महिलाओं की सुरक्षा. सत्यदेव राम ने हमेशा आंदोलनात्मक शैली में राजनीति की. CPI(ML) के मंच से उन्होंने शोषित वर्ग की आवाज़ को विधानसभा तक पहुंचाने का काम किया. वे सरकार की नीतियों पर अक्सर मुखर विरोध करते रहे हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर आवाज उठाते रहे हैं.
विपक्ष की चुनौती और जनता का भरोसा
राजनीति में लंबे समय तक टिके रहना जितना कठिन होता है, उतना ही कठिन होता है विश्वास बनाए रखना. सत्यदेव राम ने न सिर्फ विपक्ष के हमलों का सामना किया, बल्कि संगठन के भीतर भी अनुशासन और विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया.
हाल के वर्षों में जब बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण और धनबल ने भारी असर डाला, सत्यदेव राम का एक सादा जीवन और ईमानदार छवि उन्हें भीड़ से अलग बनाता रहा है. वे अब भी साधारण वेशभूषा में दिखते हैं और जनता से सीधे जुड़ाव रखते हैं.
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इन मुद्दों पर जनता दिखी नाराज
चौपाल में विभिन्न क्षेत्रों से आये लोगों ने नागरिक समस्याओं से जुड़े कई सवालों को अपने नेताओं के सामने रखा. इसमें रोजगार, शिक्षा, अस्पताल की दुर्दशा, सुगौली में यूरिया की किल्लत की समस्या के साथ-साथ सुगौली को अनुमंडल और रघुनाथपुर को प्रखंड बनाने की मांग को लेकर भी सवाल किये गये. लोगों ने कहा कि सुगौली विधानसभा क्षेत्र ऐतिहासिक जगह है, जहां सुगौली सन्धि की निशानी आज भी है, परंतु, आजतक इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया गया है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, वहीं, सिंचाई की समस्या जैसे मसले को लेकर भी लोगों में नाराजगी दिखी.
प्रतिनिधि ने दिया जनता के सवालों का जवाब
जनता के सवालों का जवाब देते हुए विधायक के प्रतिनिधि मुकेश यादव ने कहा कि पिछले पांच सालों में सुगौली में विकास की बाढ़-सी आ गयी है. विकास के कई काम हुए हैं और जो काम बाकी हैं, उनको पूरा करने की प्रक्रिया चल रही है. लोजपा व भाजपा की तरफ से मनप्रीत ठाकुर और हरिमोहन भगत उर्फ राजूभगत ने कहा कि विधायक केवल लोगों को इसी तरह समझाते हैं. वहीं, जन सुराज नेता अजय झा ने कहा कि चारों तरफ भ्रष्टाचार कायम है. जदयू नेता सुनील सिंह ने कहा कि सरकार हर वर्ग को ध्यान में रखकर काम कर रही है. कम्युनिस्ट नेता कॉमरेड राधामोहन सिंह ने त्रिवेणी कैनाल को सुचारू कराने व डिग्री कॉलेज की मांग की.
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