MY समीकरण को फिर से साधने की तैयारी
तेजस्वी यादव एक बार फिर मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण को मज़बूत कर सत्ता की चाबी पाना चाहते हैं. यह वही फॉर्मूला है, जिसकी बदौलत लालू प्रसाद यादव ने बिहार की राजनीति में लंबा वक्त बिताया. हालांकि समय के साथ यह समीकरण बिखर गया और तेजस्वी ने ‘A to Z’ की राजनीति का रुख किया. लेकिन अब वक्फ बोर्ड संशोधन जैसे मुद्दों के चलते मुस्लिम मतदाताओं में केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है, जिसे भुनाने के लिए तेजस्वी किसी और की भागीदारी नहीं चाहते.
AIMIM का बढ़ता प्रभाव बना वजह
2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 20 सीटों पर चुनाव लड़कर AIMIM ने 5 सीटें जीत लीं और 4 पर तीसरा स्थान हासिल किया. उसे 5.23 लाख वोट मिले- करीब 1.3% वोट शेयर. यह आंकड़ा बताता है कि AIMIM सीमांचल में न केवल राजद के लिए चुनौती बन गई है, बल्कि उसके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध भी लगा रही है.
सीमांचल की अहमियत और सीटों की सियासत
तेजस्वी सीमांचल को राजनीतिक संदेश का केंद्र मानते हैं. यदि AIMIM को गठबंधन में जगह मिलती, तो उसे यहीं की अधिकांश सीटें मिलतीं, जिससे राजद की पकड़ कमजोर होती. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ओवैसी को दूर रखना महागठबंधन के दीर्घकालिक हित में है, भले ही शॉर्ट टर्म में इससे थर्ड फ्रंट खड़ा हो और वह एनडीए को नुकसान पहुंचाए.
थर्ड फ्रंट से फायदा किसे?
अब जब AIMIM अलग होकर चुनाव लड़ेगी, तो संभावना है कि वह सीमांचल में एनडीए के वोटों को काटे, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से राजद को फायदा हो. तेजस्वी का यही गेम प्लान है- AIMIM को साथ न रखकर भी उसका राजनीतिक उपयोग करना. तेजस्वी का यह दांव 2025 में उन्हें राजनीतिक विरासत मजबूत करने का मौका भी दे सकता है.
Also Read: ‘सरकारी आवासों में होते थे अपहरण के सौदे…’, राजनाथ सिंह ने लालू-राबड़ी शासन काल को बताया बर्बादी का दौर