क्या है राजनीतिक इतिहास ?
1990 के दशक में कांग्रेस और सीपीआई के बीच सत्ता का समीकरण बदला और 2000 के बाद निर्दलीय उम्मीदवारों तथा क्षेत्रीय दलों जैसे एलजेपी और जेडीयू का उदय हुआ. 2000 में अरुणा देवी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की और 2005 में एलजेपी के टिकट पर तथा बाद में बीजेपी से जुड़ते हुए 2015 और 2020 में लगातार जीत दर्ज की. 2020 में उन्होंने कांग्रेस के सतीश कुमार को करीब 9,000 वोटों से हराया.
क्या है मौजूदा हालात ?
वर्तमान में अरुणा देवी बीजेपी की विधायक हैं और क्षेत्र में उनका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव मजबूत माना जाता है. उनके पति अखिलेश सिंह का आपराधिक इतिहास होने के कारण क्षेत्र में उनका दबदबा और ‘डर की राजनीति’ भी चर्चा में रही है. हालांकि भाजपा की विकास योजनाएं, जैसे हालिया अडानी ग्रुप की सीमेंट प्लांट परियोजना, उनके पक्ष में माहौल बना रही हैं.
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ये मुद्दे रहेंगे हावी
जातीय समीकरण की बात करें तो यादव, भूमिहार, कुर्मी, मुस्लिम, रविदास और पासवान जैसी जातियों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है, जो हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. आने वाले 2025 चुनाव में भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही है, लेकिन विपक्ष अगर सही रणनीति और उम्मीदवार लेकर उतरता है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है. कुल मिलाकर, वारसलीगंज विधानसभा सीट पर जाति, दबदबा और विकास – तीनों फैक्टर अहम भूमिका निभाते हैं.