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एसोचैम के अध्यक्ष संदीप जजोदिया ने कहा कि बजट में कृषि क्षेत्र पर बहुत अधिक ध्यान दिये जाने से ग्रामीण स्तर पर उम्मीदें बढ़ गयी हैं. राष्ट्रीय बहस के ग्रामीण भारत की समस्याओं के ओर मुड़ जाने के अलावा सरकार के सामने न्यूनतम समर्थन मूल्य को तय करने में बड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है, जो सरकार के वादे के अनुरुप नहीं प्रतीत होती है. उन्होंने कहा कि मीडिया में कृषि-अर्थशास्त्रियों और किसान संगठनों के बीच लागत तय करने के मुद्दे पर कई तरह से बहस हुई है. इसका सीधा प्रभाव खुदरा मुद्रास्फीति पर दबाव के रूप में दिख रहा है.
उन्होंने कहा कि ग्राहकों और किसानों के हितों के टकराव के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए सरकार को बहुत संभलकर चलने की जरूरत होगी. मुद्रास्फीति में पिछले छह महीनों से लगातार उछाल का दौर बना हुआ है और इसके छह फीसदी के स्तर तक पहुंचने की संभावना है और इससे आम घरों में अशांति का माहौल बन सकता है. वहीं, रिजर्व बैंक ने अपनी ऋण नीति में कहा है कि उसका अभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाये जाने से खुदरा मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ने का आकलन करना बाकी है.
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