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जांच एजेंसी का आरोप है कि 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के दौरान 21 एग्रीगेटर समूहों के 220 लोगों ने 192.98 करोड़ रुपये का कर्ज लिया. इन लोगों ने बैंक के पूर्व जीएम बट्टू रामा राव के साथ आपराधिक साजिश कर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यह कर्ज लिया. यहीं नहीं, उन्होंने कर्ज के लिए जमानत का मूल्य भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. इसके बाद यह कर्ज एनपीए बन गया.
एजेंसी के अनुसार, 30 सितंबर, 2017 तक कर्जदारों का कुल बकाया बढ़कर 445.32 करोड़ रुपये हो गया. आरोप है कि कर्ज लेने वालों ने राव और अन्य अधिकारियों के साथ सांठगाठ में यह कर्ज हासिल किया. राव उस समय दक्षिण चेन्नई स्थित आईडीबीआई की बशीराबाग शाखा में कार्यरत थे.
सीबीआई का आरोप है कि मंजूर कर्ज का इस्तेमाल उन उद्देश्यों के लिए नहीं किया गया, जिसके लिए यह लिया गया था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि ऋण राशि बैंक द्वारा कर्जदारों के खातों में डाली गयी, जिसे बाद में व्यक्तिगत बैंक खातों में स्थानांतरित कर दिया गया. बाद में इस राशि को निकाल लिया गया. इसका राशि का का इस्तेमाल मत्स्य पालन के लिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत मामलों के लिए किया गया.
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