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बयान में कहा गया है कि जीवन और जीवन यापन के लिए शीशम के व्यापार के महत्व पर जिनेवा में संबंधित पक्षों के सम्मेलन 18 (कॉप 18) में भाग लेने पहुंचे जनमत निर्माताओं, वन विभाग के अधिकारियों, राजनयिकों और प्रतिनिधियों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए अलग से एक चर्चा आयोजित की गयी थी. वर्ष 2016 में साइट्स के परिशिष्ट- II में डालबर्गिया जीनस (जिसमें शीशम और रोजवुड सहित करीब 200 प्रजातियां हैं) को सूचीबद्ध किया गया था.
ईपीसीएच के महानिदेशक राकेश कुमार ने बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा किये गये अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि शीशम वृक्ष के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं है और यह जंगलों और खेतों में बहुतायत में उपलब्ध है. इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साइट्स के समक्ष इस वृक्ष को उसके परिशिष्ट- II से हटाने का प्रस्ताव भेजा है.
ईपीसीएच ने कहा कि यह प्रस्ताव नेपाल, भूटान और बांग्लादेश सहित पूरे भारतीय उप-महाद्वीप के कारीगरों और किसानों के हित में है. साइट्स की यह 18वीं बैठक जेनेवा में 17 अगस्त को शुरू हुई और 28 अगस्त तक चलेगी. भारत से लकड़ी की कलात्मक वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2018-19 के दौरान 5,424.91 करोड़ रुपये का रहा, जो एक साल पहले से 27.13 फीसदी अधिक है.
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