रिजर्व बैंक ने कहा कि इस बारे में जल्दी ही विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जायेंगे. सूक्ष्म वित्त इकाइयों के मंच एमएफआईएन के अध्यक्ष मनोज नाम्बियार ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए एक बयान में कहा कि यह अच्छा फैसला है. यह परिवारों की आय में 2015 से हुए बदलाव को परिलक्षित करता है और इससे सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के ग्राहक पहले से ज्यादा कर्ज ले सकेंगे.उन्होंने कहा कि सूक्ष्म ऋण संस्थाएं पांच करोड़ से अधिक लोगों की मदद कर वित्तीय समावेश को बढ़ाने में योगदान कर रही हैं.
रिजर्व बैंक ने 2010 में आंध्र प्रदेश के सूक्ष्म वित्त संकट के मद्देनजर वाईएच मालेगम की अध्यक्षता में एक उप-समिति का गठन किया था. उप-समिति को सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के मुद्दों तथा चुनौतियों का अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी गयी थी. उप-समिति के सुझावों के आधार पर ही एनबीएफसी-एमएफआई की अलग श्रेणी गठित की गयी थी तथा दिसंबर, 2011 में विस्तृत नियामकीय रूपरेखा जारी की गयी थी.
रिजर्व बैंक ने कहा कि वह भारतीय रुपये में विदेशी लेन-देन विशेषकर बाह्य वाणिज्यिक कर्ज, व्यापार ऋण तथा निर्यात एवं आयात को प्रोत्साहित करने के कदम उठा रहा है. विदेशों में रुपये के बाजार के संबंध में रिजर्व बैंक ने उषा थोरट समिति की रिपोर्ट के सुझावों का अध्ययन किया और उनमें से कुछ सुझावों को स्वीकार कर लिया. इनमें घरेलू बैंकों को किसी भी समय अनिवासी भारतीयों को भारतीय खाते से बाहर घरेलू बिक्री टीम या विदेशी शाखाओं के जरिये विदेशी विनिमय की पेशकश करना शामिल है. रिजर्व बैंक ने कहा कि समिति के अन्य सुझावों पर विचार किया जा रहा है और आने वाले समय में लिए जाने वाले निर्णयों की घोषणा की जायेगी.
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