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पटेल ने ये बातें दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में संरक्षणवादी भावनाओं के उफान को लेकर किये गये सवाल के जवाब में कहा है. उन्होंने कहा कि अमेरिका सहित दुनियाभर की सबसे कुशल कंपनियों के शेयरों की कीमतें आज वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की वजह से इतनी ऊंची है. उन्होंने कहा कि एपल कहां होता, सिस्को कहां होता, आईबीएम कहां होता, अगर इन्होंने दुनियाभर से उत्पाद और प्रतिभा को अपनाया नहीं होता. अगर नीतियां इस रास्ते में आयेंगी, तो अंततः संरक्षणवाद को समर्थन करने वाले किसी देश में बड़ी संपत्ति पैदा करनेवाली कंपनियां प्रभावित होंगी.
पटेल ने कहा कि अमेरिका इक्विटी और डोमेस्टिक डिस्ट्रीब्यूशन के मुद्दे पर संरक्षणवाद के रास्ते पर चल पड़ा, जबकि अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत कहते हैं कि इनसे काराधान और आय का हस्तांतरण जैसी समस्या से घरेलू वित्तीय नीति के जरिये निपटना चाहिए. उन्होंने कहा कि संरक्षणवाद के लिए कारोबारी तरीके का इस्तेमाल किसी राष्ट्र को विकास के माहौल से अलग कर सकता है.
इसके लिए उत्पाद शुल्क, सीमा कर जैसे कारोबारी तरीके का इस्तेमाल सबसे कारगर तरीका नहीं हो सकता, बल्कि इससे आप कहीं और ही चले जायेंगे. आपको पता नहीं है कि जिन मुद्दों का आप समाधान करना चाहते हैं, उसके इतर इक्विटी और डिस्ट्रीब्यूशन पर इन नीतियों के क्या असर होंगे. पटेल ने कहा कि इसे घरेलू नीति का मुद्दा मानना चाहिए और इनसे निपटने के मकसद से घरेलू वित्तीय नीति का इस्तेमाल करना चाहिए.
भारतीय रुपया की बात करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि यह पूर्णतया बाजार निर्धारित है और केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप सिर्फ उठापटक को शांत करने के लिए होता है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हमें आगे बढ़ते हुए इसी नीति का पालन करना ही हमारे लिए उचित है.
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