न कोई डिग्री, न ढंग की ड्रेसिंग सेंस और बन गए बिजनेस टाइकोन

Success Story: आज हम आपको एक ऐसे बिजनेस टाइकोन से मिलवाने जा रहे है जिसके पास न थी कोई डिग्री, न कोई पहचान, न तो कपड़े पहनने का ढंग और आज कर रहे है दुनिया पर राज.

By Shailly Arya | July 20, 2025 2:15 PM
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Success Story: बिहार का एक मामूली सा इंसान जिसने सपने तो काफी बड़े देखें लेकिन कई बार फेल हुए, पर हिम्मत नहीं हारी और कर दिखाया वो जिसे देखकर बिहार क्या पूरा भारत गर्व करता है. आज इस शख्स की पहचान सिर्फ भारत तक सिमित नहीं है बल्कि दुनिया भी इनके जज्बे को सलाम करती है.

अनिल अग्रवाल

हम बात कर रहे है अनिल अग्रवाल की, बिहार के छोटे से गांव में 24 जनवरी 1854 को जन्में अनिल के पिता की कमाई सिर्फ 400 रुपए थी. 400 रुपए में चार बच्चों का पालन पोषन करना काफी मुश्किल था. ऐसे में अनिल अग्रवाल ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अपने पिता का हाथ बंटाना चाहा, वो कभी कॅालेज नहीं गए.

अनिल अग्रवाल का करियर

सिर्फ 19 साल की उम्र में अनिल अग्रवाल अपने साथ एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और ढेर सारे सपने ले कर मुंबई आ गए. मुंबई आने के बाद उन्होंने पहली बार काली पिली पट्टी वाली टैक्सी देखी. बड़ी इमारतें देखी, जो आज चाहे तो वो कितनी खरीद लें.

मुंबई तो आ गए लेकिन उस वक्त उनके पास न ही रहने का कोई ठिकाना था और न ही किसी का साथ जो सफलता का रास्ता दिखाया.

अनिल अग्रवाल अपने पिता के साथ काम कर रहे थे तो शुरू से ही वो बिजनेस माइंडेड थे. उन्होंने नौकरी करने के बजाय खुद का बिजनेस शुरू करना का सोचा और भोईवाड़ा के मेटल मार्केट में किराए पर छोटी सी दुकान खरीद ली. उनके पास न ही ज्यादा पैसे थे और न ही कोई अनुभव. इस दूकान में वे मेटल का कबाड़ बेचा करते. साल 1970 में मेटल की धातुओं की ट्रेडिंग शुरू कर दी , वे कई राज्यों की कबल कंपनियों से सामान खरीदकर मुंबई में बेचा करते थे. उनकी मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते उन्होंने अपनी कंपनी की भी स्थापना कर दी.

अनिल अग्रवाल का बिजनेस

अनिल अग्रवाल का बिजनेस काफी अच्छा चलने लगा था, लेकिन ये सफलता की पहली सिढ़ी थी मंजिल तो अभी बहुत दूर थी. अनिल अग्रवाल ने साल 1976 में दिवालिया हो चुकी शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी खरीद ली. उस समय उनके पास पैसे नहीं थे और अब उनकी रातों की नींद उड़ने लगी कि आखिर पैसे कहां से आएंगे.

वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल

वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने एक बार बताया था कि जब उन्हें 16 लाख रुपए डाउन पेमेंट की आवश्यकता थी पड़ी तो लोन लेना पड़ा. उस वक्त कानूनी समस्याओं को सुलझाने के लिए टॉप वकीलों में शुमार नितिन कांटावाला और सिंडिकेट बैंक के मैनेजर दिनकर पाई ने उनकी मदद की. अनिल अग्रवाल ने बताया था कि जब वे कंपनी को अपने नाम करने के दस्तावेजों पर साइन कर रहे थे तो उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन तब वे ये नहीं जानते थे कि आगे रॉलरकोस्टर जर्नी शुरू हो रही है.

9 बिजनेस शुरू किए और सबमे फेल

किसी तरह से कंपनी तो खरीद ली, लेकिन अब वर्कर्स को सैलरी, कच्चे माल को खरीदने और अन्य खर्चों के लिए पैसे कहां से जुटाए जाए , एक बड़ा सवाल था. एक छोटी सी दूकान चल रही थी, लेकिन केबल प्लांट बंद पड़ा था. अब हर दिन का बैंकों के चक्कर काटना पड़ रहा था. इस स्थिति से उबरने के लिए उन्होंने अलग-अलग 9 बिजनेस शुरू किए एल्युमिनियम रॉड, डिफरेंट केबल, मैग्नेटिक वायर और भी कई लेकिन सभी असफल रहे.

अनिल अग्रवाल डिप्रेशन में चले गए

इसके बाद अनिल अग्रवाल डिप्रेशन में जाने लगे. तीन साल तक डिप्रेशन में रहने के बाद उन्होंने खुद को संभाला. व्यायाम और मेडिटेशन के जरिए अपनी मानसिक स्थिति सुधारी. हालात को ऐसी थी कि वे अपनी पसंदीदा सिनेमा सोले के टिकट भी नहीं खरीद पा रहे थे.

देखते ही देखते अब साल 1986 आ गया और भारत सरकार ने टेलीफोन केबल बनाने वाले प्रोडक्ट के लिए प्राइवेट सेक्टर को मंजूरी दे दी. ये अनिल अग्रवाल के लिए एक नए मौके जैसे था. उन्होंने साल 1980 के दशक में ही स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना कर दी थी, जो आगे चलकर कॉपर को रिफाइन करने वाली देश की पहली प्राइवेट कंपनी भी बनी.

कितनी संपत्ति के है मालिक

अनिल अग्रवाल आज 3.6 बिलियन डॉलर की संपत्ति के मालिक है. वो समाज की भलाई के लिए हमेशा आगे रहते हैं. उन्होंने कोरोना काल में समाज के लिए 150 करोड़ दान किए थे. इसके अलावा उन्होंने घोषणा है कि वे अपनी संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा समाज के नाम कर देंगे. उन्होंने महिला दिवस के मौके पर भी करोड़ों का दान दिया था.

सोशल मीडिया के जरिए वे अपने संघर्ष और सफलता की कहानी अक्सर शेयर करते रहते हैं और युवाओं को संदेश देते हैं कि यदि आप सपने देखते हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करें. किस्मत धीरे-धीरे अपने दरवाजे खोलती है.

वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड के चेयरमैन अनिल अग्रवाल को हाल में ही कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में स्‍टूडेंट को ‘सपनों का पीछा कैसे करें’ विषय पर संबोधित करने के लिए बुलाया गया था, जो कभी कॅालेज नहीं गए, उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में से एक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में भाषण दिया. अब आप समझ सकते है कि सपने के पीछे भागने से कुछ भी मुश्किल नहीं है.

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