विशेषज्ञों ने यह बात कही है. उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है. देश अपनी तेल जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात से पूरा करता है. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) में वरिष्ठ विजिटिंग फेलो आई वी राव ने एक बयान में कहा, इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहनों के तेजी से अपनाने से पेट्रोल की मांग में कमी आयेगी. इससे निश्चित तौर पर आयात पर निर्भरता एवं कार्बन उत्सर्जन कम होगा.
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उन्होंने कहा कि दो-पहिया खंड में ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन होने से उपभोक्ता का खर्च कम होने के साथ-साथ पर्यावरण एवं वायु की गुणवत्ता पर भी उल्लेखनीय सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विशेषज्ञों के अनुसार दो-पहिया वाहनों की श्रेणी में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से गति मिल सकती है. इसका कारण फेम-दो (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से विनिर्माण और उसे अपनाना) योजना के जरिये और राज्यों की तरफ से प्रोत्साहन के कारण इसकी कीमत तुलनात्मक रूप से कम है और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता बढ़ रही है. फिर इसके परिचालन की लागत बहुत कम है.
इंटरनेशनल काउंसिल फॉर क्लीन ट्रांसपोर्टेशन (आईसीसीटी) की शोधकर्ता (सलाहकार) शिखा रोकड़िया ने कहा, वर्ष 2035 तक नये बिकने वाले 100 प्रतिशत दो-पहिया वाहनों को बिजली चालित कर दिया जाए, तो भारत में 2020 से 2050 के बीच पेट्रोल की मांग में 50 करोड़ टन (एमटीओई) से ज्यादा की कमी आने का अनुमान है. वहीं इससे संबंधित लागत में 740 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आ सकती है.
उन्होंने कहा, प्रदूषण के लिहाज से देखें तो भारत ने पिछले दशक में बीएस-6 उत्सर्जन मानक अपनाने समेत नीतिगत मोर्चे पर कुछ अहम कदम उठाये हैं. इससे वायु प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को काफी हद तक कम किया जा सका है. शिखा ने कहा, हालांकि इस तरह के मानकों को अपनाने के बाद भी सड़क पर लगातार दो-पहिया वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण उनसे होने वाला उत्सर्जन बढ़ेगा. इसे देखते हुए कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध रूप से शून्य के करीब लाने के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का उपयोग लागत की दृष्टि से सबसे किफायती तरीका है.
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