Exclusive Interview: वर्ष 1998 भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था, जब देश ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व मंच पर अपनी संप्रभुता का ऐलान किया. इसके परिणामस्वरूप अमेरिका समेत कई ताकतवर देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस विशेष बातचीत की तीसरी कड़ी में यशवंत सिन्हा ने जनार्दन पांडेय से अपने राजनीतिक फैसलों, निजी संघर्षों और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी ऐतिहासिक योजनाओं की शुरुआत से जुड़ी अहम बातें साझा कीं, जो आज भी प्रासंगिक हैं. आइए, पढ़ते हैं विशेष इंटरव्यू की तीसरी कड़ी…
जनार्दन पांडेय: हमने रास्ते में पूछा तो लोगों ने बताया कि आपका घर किस तरफ पड़ेगा तो… अब तो… अब हालात बदल गए हैं? अटल जी का कार्यकाल और आपका वित्त मंत्री बनना… भारत का एक ऐसे कठिनतम जगह पर चले जाना. बतौर वित्त मंत्री वह जीत थी या… कैसा महसूस होता था, जब आपके हाथ में कमान थी?
यशवंत सिन्हा: हां, मैं कहूंगा कि इतनी कठिन परिस्थिति तो समय की. अच्छा… फिर हमने और हमारे कॉरपोरेट सेक्टर के देशों से कर्जा लिया हुआ था. एक शॉर्ट टर्म डेब्ट होता है. अल्पकालीन ऋण… तो दूसरे देश आपको कर्ज देते थे. उनसे तो बातचीत की जा सकती है कभी.. अभी हमको कर्जा तुरंत नहीं दे सकते हैं. चलो आने वाले दिनों में दे देंगे. लेकिन जो कॉरपोरेट डेब्ट था, उसको आप नहीं चुकाते विदेशियों को तो आप डिफॉल्टर हो जाते हैं.
जनार्दन पांडेय: डिफॉल्टर होने का मतलब?
यशवंत सिन्हा: भारत जैसे देश के लिए एक भयानक परिणाम लाता है. हमारी अर्थव्यवस्था में उस समय जो सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने थी, वह यह थी कि किसी तरह डिफॉल्टर बनने से देश को जो…
जनार्दन पांडेय: एक किस्म का संदेश नहीं जाए…?
यशवंत सिन्हा: … बाहर कि हम लोग कंगाल हो गए. भारत जो है, वह बैंकरप्ट हो गया. यह नहीं जाना चाहिए. तो फिर रिजर्व बैंक के साथ मिलकर हम लोग वित्त मंत्रालय में लगातार लगे रहे. इसमें बात की गई जो देनदारी है वह या तो आगे बढ़ा दिया जाए या उसको दे दिया जाए. वह एक बहुत ही बहुत ही कठिन दौर था, जिससे देश गुजरा और हम गुजरे. लेकिन अगर हम आज के दिन… हमको इसी बात का संतोष है, तो वह यह है कि हमने देश को डिफॉल्टर बनने से रोका. देश को डिफॉल्टर हमने नहीं बनने दिया. हम बास्केट केस नहीं बने.और धीरे-धीरे करके फिर अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ.
जनार्दन पांडेय: निजी जिंदगी भी आपके कठिन दौर से उस वक्त में गुजरी?
यशवंत सिन्हा: बहुत… बहुत.. बहुत… कठिन दौर से गुजरी. हजारीबाग में एक किराए का मकान लिया हम लोगों ने.
जनार्दन पांडेय: किराए का मकान ?
यशवंत सिन्हा: किराए का मकान लिया. यहां रहने के लिए. यहां आने के पहले किराए का मकान लिया. उस किराए के मकान में कोई रनिंग वाटर नहीं था, जो सड़क पर टैप था. 50 कदम दूर… वहां से पानी भर भरकर लाना पड़ता था. अच्छा… घर में जो सफाई, सफाई करना होता था, वह हमारी पत्नी को करना पड़ता था, क्योंकि कोई नहीं था. जिंदगी जिसको कहते हैं, आप समझ सकते हैं ना. घर में जो वाटर सप्लाई ही नहीं है. नल मिले तो कितनी प्रेम की जिंदगी हो सकती है?
जनार्दन पांडेय: हम सब उसी पृष्ठभूमि से आते हैं. अगर हमने बहुत बाल्टियों में पानी भरें. जब चापाकल करता है.
यशवंत सिन्हा: क्षेत्र में तो यह देखिए वह हमने कहीं कहा भी उसके बाद में. बचपन में हम लोगों के घर में भी एक रनिंग वाटर नहीं था. बाहर के नल से पानी लाते रहते थे. लेकिन अच्छे दिन देखने के बाद अगर जर्मनी जैसे देश में रहने के बाद फिर वापस लौटे तो एक ऐसी परिस्थिति में जिसमें घर में नल नहीं है और आपको सड़क से नल से पानी लाना पड़ता है.
जनार्दन पांडेय: कोई ऐसा दिन जब लगे कि गलती हो गई?
यशवंत सिन्हा: नईं… यह हमारे मन में कभी नहीं आया कि गलती हो गई और दुबारा मौका मिलेगा तो दोबारा नहीं करूंगा.
जनार्दन पांडेय: अटल जी से मुलाकात और उनसे संबंध का डेवलप होना?
यशवंत सिन्हा: देखिए, हमारा जो बीजेपी में है… हम कैसे बीजेपी में हैं… मैं जानता था अटल जी को भी. आडवाणी जी जब भी उनसे पार्लियामेंट में मुलाकात होती थी, लेकिन आडवाणी जी अध्यक्ष थे भारतीय जनता पार्टी का और आडवाणी जी बहुत सहज भाव से हमसे मिलते थे जब मैं उनके दल में नहीं था. आडवाणी जी चाहते थे कि मैं भारतीय जनता पार्टी में आऊं. आडवाणी जी के मन में था और उन्होंने संदेश भेजा, बातचीत भी हुई. अच्छा… लेकिन मैं कुछ समय ले रहा था तय करने में कि मैं जाऊंगा, क्योंकि हमारे लिए कांग्रेस पार्टी के दरवाजे खुले हुए थे. नरसिम्हाराव जी प्रधानमंत्री थे. उन्होंने स्वयं बुलाकर मुझसे कहा कि तुम आ जाओ. हमने उस पार्टी में…सत्ताधारी पार्टी थी… बहुत आसान था वहां पर चले जाना और फिर मंत्री वगैरह बन जाना. लेकिन मैंने वह रास्ता नहीं चुना.
जनार्दन पांडेय: कोई कारण देखते हैं, क्योंकि वह तो तब बड़े प्रभावशाली था?
यशवंत सिन्हा: बहुत प्रभावशाली थे. लेकिन परिस्थिति ऐसी थी कि मैं कांग्रेस पार्टी में नहीं जाना चाहता था. मैं विपक्ष में ही रहना चाहता था.
जनार्दन पांडेय: कोई वैचारिक मतभेद?
यशवंत सिन्हा: वैचारिक मतभेद समझ लीजिए. हालांकि, आज वह कायम नहीं है. आज की परिस्थिति ऐसी बदल गई है कि कांग्रेस पार्टी अछूती नहीं है. मुझे तो… अच्छा आपको… फिर आपने जैसा कहा कि राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने में कांग्रेस पार्टी की बड़ी भूमिका थी. सभी विपक्षी दलों की थी, लेकिन प्रमुख भूमिका में कांग्रेस पार्टी थी तो परिस्थितियां बदल गई हैं. लेकिन उस समय मैं कांग्रेस पार्टी में नहीं जाना चाहता था तो मेरे लिए अल्टरनेटिव था. विकल्प था भारतीय जनता पार्टी में आना.
जनार्दन पांडेय: आडवाणी जी स्वागत करने को तैयार थे. 1993 का अंत था. रथयात्रा पूरी हो चुकी थी?
यशवंत सिन्हा: रथयात्रा पूरी हो चुकी थी, क्योंकि बाबरी मस्जिद ढहाया जा चुका था. पीवी नरसिम्हा राव उस समय… नवंबर 1993 में.. हमने भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय में… दिल्ली में… और मुझे अभी भी याद है. उन्होंने कहा कि दिवाली का पर्व तुरंत समाप्त हुआ था. एक दिन पहले या दो दिन पहले. आडवाणी जी ने कहा था कि यशवंत सिन्हा भारतीय जनता पार्टी के लिए दिवाली की गिफ्ट हैं. यह उनका वाक्य था. फिर हमें भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बहुत कुछ दिया और हम बहुत आगे बढ़े भारतीय जनता पार्टी में.
जनार्दन पांडेय: मैं सिर्फ कार्यकाल में ले आता हूं. 1998-99 के बाद… बतौर वित्त मंत्री कई ऐसे कार्यक्रम उस वक्त में शुरू हुए, जो अभी भी चलते हैं या फिर जिनकी वजह से भारत देश को बहुत सारी चीजें हासिल नहीं हुई. आप जब भी कॉल करते हैं, आपने कहा कि मुझे पहले कार्यकाल का संतोष है कि मैंने भारत को डिफॉल्टर नहीं होने दिया. आपका वित्त मंत्री कार्यकाल रहा. अटल जी के केस में किस बात का संतोष है?
यशवंत सिन्हा: एक बहुत बड़े पत्रकार ने मुझसे एक प्रश्न पूछा था तो वह कुर्सी से लगभग गिर गए. जब मैं कहा कि मेरे मन में सबसे ज्यादा संतोष इस बात का है कि मैंने किसान क्रेडिट कार्ड शुरू किया, क्योंकि वह सोच रहे थे कि यह कुछ और बोलेंगे तो उनको आश्चर्य हुआ. मैं इतना कहूंगा आज के दिन कि देश की अर्थव्यवस्था का कोई क्षेत्र नहीं था, जहां हमने सुधार नहीं किया.
जनार्दन पांडेय: जिस चीज का आपने जिक्र किया. लाखों इस क्षेत्र से हम लोग आते हैं, जहां हमारी रीच ज्यादा है. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में किसान क्रेडिट कार्ड एक ऐसी चीज है, जिसने नया जीवन एक तरीके से भारतीय लोगों को… वह लेकर के आया है. कितनी ही जिंदगी की चीजें हैं, जो उस खास चीज से पूरी हो जाती हैं और उन्होंने न केवल अपनी खेती किसानी में… किसान क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से अपना लेबल अप किया है, बल्कि पूरी जिंदगी बदली है. लोगों की क्विट जो आपने किया?
यशवंत सिन्हा: फिर… आपको मैं बताऊं कि यह जो राष्ट्रीय राजमार्गों का काम नेशनल हाइवे हो, इतनी बढ़िया सड़कें देख रहे हैं. शुरुआत तो उस समय हुई. मैंने किया वह शुरुआत… मैंने बताया कि जर्मनी का अनुभव काम आया. फिर उसके बाद ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना मैरीटाइम में शुरू हुई. उसकी उत्पत्ति एक तरह से हजारीबाग में है क्योंकि यहां मैं जब चुनाव लड़ता तो मैं देखता था. ग्रामीण सड़कों की हालत बहुत खराब थी, तो फिर मैंने तय किया कि नहीं, ग्रामीण सडकों पर भी एक अंश खर्च किया जाए अपने संसाधनों का और गांव में सड़कें बनाई बनाएंगे तो उसके लिए बहुत तैयारी के साथ. फिर हम लोग सोचे कि पैसा बर्बाद नहीं हो, क्योंकि उसका भी हमको अनुभव था. राज्य में काम करने का और केंद्र में काम करने का. केंद्र से जो पैसा आता है तो राज्यों में बर्बाद हो जाता है. ऐसी व्यवस्था बनाओ कि यह बर्बाद नहीं हो. वही व्यवस्था बनाकर हम लोगों ने ग्रामीण सड़क योजना शुरू की और आज गांव में इस तरह की सड़क है.
जनार्दन पांडेय: उसी जमीन की नींव पर इमारतें बन रही हैं तो यह एक बहुत बड़ा काम हुआ और सड़कों से पूरा क्षेत्र मिलता है. देश की उन्नति में वहां की सडकों का बड़ा योगदान होता.
यशवंत सिन्हा: बहुत बड़ा योगदान होता है. आज मुझसे आपने रघुराम राजन का जिक्र किया. वह हमारे बड़े लड़के जयंत सिन्हा के बहुत नजदीकी सहपाठी भी थे. निकट के मित्र भी थे. उनसे हमारी चर्चा हो रही थी कि क्या किया जाए तो उन्होंने हमको दो सुझाव दिए थे. एक सुझाव दिया था कि सड़कों को बनाने का बड़े पैमाने पर काम होना चाहिए. उसमें जो अर्थव्यवस्था में जिसको कहते हैं मल्टीप्लायर. उससे बहुत सारे उद्योगों को सहारा मिलता है. दूसरा जो था वह यह था कि हाउसिंग क्षेत्र को आप बढ़ावा दीजिए. लोग घर बनाएं और अब यह बात देश में बहुत कम लोग जानते हैं और मैं आपको आज भी याद दिलाना चाहूंगा कि हाउसिंग क्षेत्र में हम लोगों ने इतने कंसेशन दिया. उस समय 15 लाख रुपये थे. इनकम टैक्स में छूट थी कि आप ऋण लेकर अगर घर बनाते हैं या अपार्टमेंट खरीदते हैं तो आपका जो नाम, आपकी देनदारी जो है, उनमें 15 लाख तक आपको छूट मिलेगी. इसलिए बहुत बड़े पैमाने पर एक हाउसिंग रेवोल्यूशन हुआ इस मुल्क में, जिसको बहुत कम लोग जानते हैं.
जनार्दन पांडेय: हमारी आंखों के सामने है.
यशवंत सिन्हा: हम आप देखें रांची में कितने सारे अपार्टमेंट ब्लॉक्स बन गए हैं. हर जगह बड़े-बड़े शहरों में, छोटे शहरों में भी यह सब चल रहा है हाउसिंग के क्षेत्र में. जैसे हाईवे के क्षेत्र में, हाउसिंग के क्षेत्र में अगर आप बढ़त बनाएंगे तो उसका भी मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है. सड़कों पर तो हमने बहुत जोर दिया था कि घर बने, कमर्शियल, रिहायशी सब और जो अर्बन डेवलपमेंट के लैंड डेवलपमेंट के कानून थे उसमें परिवर्तन हो. यह वह तो बहुत ज्यादा उसको करना पड़ा. मैं एक छोटी सी बात आपको बताता हूं. जब हम लोगों ने नेशनल हाईवे का कार्यक्रम शुरू किया, तो देश में जो बड़ी बडी मशीनें होती हैं, हाईवे बनाने के काम में जो आती हैं वह नहीं थी, नहीं बनती थी1 हाईवे बनता ही नहीं था1
जनार्दन पांडेय: फिर मशीनरी का भी कोई इस्तेमाल नहीं था?
यशवंत सिन्हा: धीरे-धीरे करके वह उद्योग भी पनपा. अब सब कुछ देश में बनने लगा. बाहर से हमको एक इक्विपमेंट मंगाने की जरूरत नहीं पड़ती. तो यह मल्टीप्लायर इफेक्ट है अर्थव्यवस्था पर और इसीलिए जो बात होती है, आज के दिन हम लोग कर रहे हैं भारत विकसित देश की. मैं आपसे कहना चाहूंगा कि हम जब वित्त मंत्री बने थे, देश में तो क्राइसिस का जमाना था. क्योंकि पूर्वी एशिया के देश में भयंकर आर्थिक मंदी थी. क्राइसिस थी, मंदी नहीं थी. क्राइसिस मचा था.
जनार्दन पांडेय: हालात एकदम बदतर था?
यशवंत सिन्हा: बद से बदतर थे. और तो वह हुआ. उसके बाद फिर हम लोगों ने परमाणु परीक्षण कर दिया. उसके बाद बहुत सारे देश ने… उसमें अमेरिका भी शामिल है…. हमारे ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. वह बात पुरानी हो गई. हम भूल जाते हैं उन बातों को कि देश ने क्या मुकाबला कि, क्या क्या झेला है.
जनार्दन पांडेय: आर्थिक प्रतिबंध लगाए. परमाणु परीक्षणों की हम बात कर रहे हैं? अभी हाल ही में आपने बड़ा विदेश दो देशों में इसराइल और ईरान में एक तरीके का युद्ध की स्थिति बनी. तब आपने देखा कि युद्ध जैसे हालात हैं और उसके पीछे का जो प्रमुख कारण था. परमाणु परीक्षण… सिर्फ वहां ले जाकर वापस ला रहा हूं कि परमाणु परीक्षण करना कितनी बड़ी बात हो सकती है. यह आज आप देख रहे हैं, लेकिन सर के समय जब आप 1998-99 से कार्यकाल शुरू होता है और आगे बढता है, 2004 तक आता है. उस दौर में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए तो उसकी स्थिति को बयां कर रहे हैं. अमेरिका जैसे देशों ने हमारे ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए.
यशवंत सिन्हा: परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत शक्तिशाली देशों ने हम पर प्रतिबंध लगा दिए. बहुत सा घाटा हुआ देश को और न केवल हमने पैसा… विदेशों से पैसा आने में बल्कि यह सब करने में… लेकिन हम लोग किसी के सामने झुके नहीं. किसी देश को जाकर हमने नहीं कहा कि तुम आर्थिक प्रतिबंध उठा लो. उस समय क्लिंटन साहब आए थे भारत. अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन. वह खुद चलकर आए भारत और उसके बाद उन्होंने सारे आर्थिक प्रतिबंध उठा लिए. अमेरिका उठा लिया, तो बाकी देशों ने भी उठा लिया. अच्छा… होता क्या था उस समय कि छोटे-छोटे देश यूरोप के हैं… इतने छोटे छोटे थे… वह भारत को कर्जा देते थे. जब प्रतिबंध उठ गए तो हम लोगों ने तय किया… मैंने तय किया कि इन छोटे-छोटे देशों से हम कर्जा नहीं लेंगे. जो अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड या जो बड़े देश हमको कर्जा देते हैं, वह हम चालू रखेंगे. छोटे कर्जे हमने बंद कर दिए.
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जनार्दन पांडेय: इसके पीछे का कारण?
यशवंत सिन्हा: वह यही कि हमको जरूरत नहीं है. हम खुद अपने पांव पर खड़े होंगे, खड़े हो सके और बहुत सारे छोटे देश हमसे नाराज हुए. अच्छा था कि साहब हम लोग करते थे या मदद इस क्षेत्र में करते थे आप… हम उनको यह समझाते थे कि भाई अब हम आगे बढ़ गए उस दौर से. आप कोई और देश ढूंढ लीजिए, जिसे आपका कर्जा चाहिए. बहुत सारी बातें हैं जो भूल गए लोग अब. जैसे सबसे बड़ा मैंने बताया आपको कि आर्थिक प्रतिबंध हमने झेला है. वह एक चैप्टर है जो लोग भुला गए हैं.
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