50 Years of Emergency : भारत की अर्थव्यवस्था ने 1975 में आपातकाल ( Emergency) के बाद से उल्लेखनीय प्रगति की है. स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों में समाजवादी नीतियों और नियोजित अर्थव्यवस्था के दबदबे से लेकर 1991 के आर्थिक सुधारों तक, और अब 2025 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तक, भारत ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. यह रिपोर्ट 1975 से 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था की साल-दर-साल वृद्धि का विश्लेषण करती है, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर, प्रमुख नीतिगत बदलाव, और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत की स्थिति पर ध्यान दिया गया है. यह विश्लेषण विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों, जैसे विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), और भारतीय सरकारी आंकड़ों पर आधारित है.
आपातकाल (1975) और अर्थव्यवस्था
1975 में, जब भारत में आपातकाल लागू किया गया था, देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि-आधारित थी, और औद्योगिक विकास सीमित था. उस समय भारत की GDP लगभग 98.9 बिलियन डॉलर (नॉमिनल) थी, और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी. समाजवादी नीतियों और लाइसेंस राज के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित थी. आपातकाल के दौरान, आर्थिक नीतियों पर सरकार का नियंत्रण और सख्त हो गया, जिससे आर्थिक गतिविधियों में कुछ ठहराव आया. हालांकि, इसके बाद के दशकों में भारत ने धीरे-धीरे अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया और वैश्विक मंच पर एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरा.
1975-1991: लाइसेंस राज और धीमी वृद्धि
1975-1980: आपातकाल (1975-1977) के बाद, भारत ने धीरे-धीरे आर्थिक स्थिरता की ओर कदम बढ़ाया. इस अवधि में GDP वृद्धि दर औसतन 3-4% प्रति वर्ष रही, जिसे “हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ” कहा जाता था. कृषि क्षेत्र और सार्वजनिक उद्यमों पर निर्भरता अधिक थी. 1980 तक भारत की GDP बढ़कर लगभग 186 बिलियन डॉलर हो गई थी.
1980-1990: इस दशक में कुछ सुधारों की शुरुआत हुई, विशेष रूप से राजीव गांधी सरकार के तहत. 1980 के मध्य में कुछ उदारीकरण नीतियां लागू की गईं, जिससे निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिला. औसत GDP वृद्धि दर 5-6% के आसपास रही. 1990 तक भारत की GDP बढ़कर लगभग 320 बिलियन डॉलर हो गई थी. हालांकि, इस अवधि में व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी जैसे मुद्दे उभरे.
1991 का आर्थिक संकट और सुधार: 1991 में भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जब विदेशी मुद्रा भंडार केवल कुछ हफ्तों के आयात को कवर कर पा रहा था. नरसिंह राव सरकार और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियां लागू कीं. लाइसेंस राज को कम किया गया, विदेशी निवेश को प्रोत्साहन दिया गया, और व्यापार नीतियों में सुधार हुआ. इन सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी.
1991-2000: उदारीकरण के बाद की प्रगति
1991-1995: उदारीकरण के तुरंत बाद, भारत की GDP वृद्धि दर में सुधार हुआ. 1994-95 में वृद्धि दर 6.4% तक पहुंची. इस अवधि में सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (IT), ने तेजी से विकास किया. 1995 तक भारत की GDP लगभग 360 बिलियन डॉलर थी.
1996-2000: इस अवधि में भारत ने 6-7% की औसत वृद्धि दर दर्ज की. 1997 के एशियाई वित्तीय संकट का भारत पर सीमित प्रभाव पड़ा, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था तब तक पूरी तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत नहीं थी. 2000 तक भारत की GDP बढ़कर 476 बिलियन डॉलर हो गई थी.
2000-2010: तेज वृद्धि का दौर
2000-2005: इस अवधि में भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक वृद्धि देखी. 2003 में GDP वृद्धि दर 8.4% थी, जो वैश्विक स्तर पर सबसे तेज वृद्धि दरों में से एक थी. सेवा क्षेत्र और विनिर्माण क्षेत्र में सुधार, साथ ही विदेशी निवेश में वृद्धि, ने इस विकास को गति दी. 2005 तक भारत की GDP 820 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी.
2005-2010: यह अवधि भारत के लिए “गोल्डन पीरियड” मानी जाती है. 2005-06 और 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक GDP वृद्धि दर 9% से अधिक रही. 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट ने भारत को प्रभावित किया, लेकिन अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया. 2010 तक भारत की GDP 1.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी.
2010-2020: मिश्रित प्रदर्शन और सुधार
2010-2015: इस अवधि में भारत की GDP वृद्धि दर में कुछ उतार-चढ़ाव देखे गए. 2010 में वृद्धि दर 8.5% थी, जो कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की सबसे अधिक थी. हालांकि, 2012-13 में वैश्विक मंदी और घरेलू नीतिगत अनिश्चितताओं के कारण वृद्धि दर 5.5% तक गिर गई. 2014 तक भारत की GDP 2.04 ट्रिलियन डॉलर थी.
2015-2020: नरेंद्र मोदी सरकार के तहत, भारत ने कई सुधार लागू किए, जैसे मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और जीएसटी. 2015 से 2020 तक औसत वृद्धि दर 6-7% रही. 2019-20 में कोविड-19 महामारी के कारण वृद्धि दर में गिरावट आई, और 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था में 7.3% की कमी दर्ज की गई. इस समय तक भारत की GDP 2.67 ट्रिलियन डॉलर थी.
2020-2025: महामारी से उबरने और तेज वृद्धि की ओर
2020-2021: कोविड-19 के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में 7.3% की गिरावट आई. यह स्वतंत्रता के बाद की सबसे बड़ी मंदी थी. हालांकि, सरकार ने राहत पैकेज और नीतिगत सुधारों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को पुनर्जनन की ओर ले जाने का प्रयास किया.
2021-2022: महामारी से उबरते हुए, भारत ने 8.7% की वृद्धि दर दर्ज की. बुनियादी ढांचे में निवेश, डिजिटल अर्थव्यवस्था, और विनिर्माण क्षेत्र में सुधार ने इस रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
2022-2023: इस वर्ष भारत ने 7.2% की वृद्धि दर हासिल की. विश्व बैंक और IMF ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बताया. 2023 में भारत की GDP 3.73 ट्रिलियन डॉलर थी, और प्रति व्यक्ति GDP 2610 डॉलर तक पहुंच गई.
2023-2024: इस वित्तीय वर्ष में भारत की GDP वृद्धि दर 8.2% थी, जो वैश्विक औसत 2.9% से कहीं अधिक थी. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में निवेश और रियल एस्टेट में वृद्धि ने इस विकास को बढ़ावा दिया. 2024 तक भारत ने ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उपलब्धि हासिल की.
2024-2025: विश्व बैंक और IMF के अनुमानों के अनुसार, भारत की GDP वृद्धि दर 6.5-6.7% रहने की उम्मीद है. मई 2025 में, भारत ने जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल किया, जिसमें GDP 4.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई.
50 Years of Emergency: प्रमुख उपलब्धियां
- वैश्विक स्थिति: 2025 तक, भारत ने जापान को पछाड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान प्राप्त किया.
- सुधार और नीतियां: मेक इन इंडिया, जीएसटी, और डिजिटल इंडिया जैसे सुधारों ने अर्थव्यवस्था को गति दी.
- सेवा क्षेत्र: आईटी और वित्तीय सेवाओं में भारत का वैश्विक नेतृत्व.
प्रमुख चुनौतियां
- मुद्रास्फीति: 2022-23 में मुद्रास्फीति 6% से ऊपर रही, जिसने उपभोक्ता खर्च को प्रभावित किया.
- बेरोजगारी: शहरी युवा बेरोजगारी 17% के उच्च स्तर पर बनी हुई है.
- असमानता: गिनी सूचकांक के अनुसार, आय असमानता एक चुनौती बनी हुई है.
स्रोत: विश्व बैंक, IMF, भारतीय सरकार के आंकड़े
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