पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में तो यह 33,000 करोड़ रुपये के निचले स्तर पर आ गया था. यह रिपोर्ट सार्वजनिक क्षेत्र की तीन पेट्रोलियम कंपनियों पर आधारित है. पेट्रोलियम कंपनियां दो कारोबार से पैसा कमाती हैं. पहला रिफाइनिंग है. इसमें उन्हें सकल रिफाइनिंग मार्जिन मिलता है. यह रिफाइनरी के गेट पर शोधित उत्पाद के दाम में से कच्चे तेल का दाम घटाकर निकाला जाता है. दूसरा कारोबार पेट्रोल पंपों के जरिये पेट्रोल, डीजल की बिक्री का है। इसमें उन्हें ईंधन उत्पादों पर मार्जिन मिलता है. वित्त वर्ष 2022-23 में पेट्रोलियम कंपनियों का सकल रिफाइनिंग मार्जिन औसतन 15 डॉलर प्रति बैरल था. इसकी वजह विशेषरूप से डीजल की मांग मजबूत रहना है. वैकल्पिक ईंधन मसलन प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ने तथा यूक्रेन पर हमले के बाद रूसी उत्पादों पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध की वजह से डीजल की मांग मजबूत रही थी.
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बावजूद इन कंपनियों को ऊंचा खुदरा दाम नहीं मिला. वित्त वर्ष के लिए कच्चे तेल का औसत दाम 94 डॉलर प्रति बैरल था. मई, 2022 से खुदरा कीमतों में बदलाव नहीं हुआ है. इसके चलते पेट्रोलियम कंपनियों को मजबूत रिफाइनिंग मार्जिन के बावजूद विपणन पर आठ रुपये प्रति लीटर का नुकसान हुआ, जिससे पूरे वित्त वर्ष के दौरान उनका मुनाफा प्रभावित हुआ. रिपोर्ट कहती है कि अच्छी बात यह है कि अब कच्चे तेल के दाम नीचे आ गए हैं. इसके चलते 2022-23 की पहली तिमाही में परिचालन नुकसान उठाने के बाद चौथी तिमाही तक इन कंपनियों ने ऊंचा परिचालन लाभ कमाया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन पेट्रोलियम कंपनियों ने 2016-17 से 2022-23 के बीच अपने निवेश को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाकर 3.3 लाख करोड़ रुपये किया है. इससे उनका सकल कर्ज भी दोगुना होकर 2016-17 के 1.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.6 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. हालांकि, इस दौरान उनका मुनाफा कमजोर रहा है. चालू वित्त वर्ष में पेट्रोलियम कंपनियों का निवेश 54,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
(इनपुट-भाषा)
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