Raghuram Rajan: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की हालिया रेपो रेट कटौती को लेकर पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार को स्पष्ट किया है कि इसे निवेश को बढ़ावा देने वाली कोई “जादू की गोली” समझना सही नहीं होगा. उनका मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सिर्फ ब्याज दर में कटौती पर्याप्त नहीं है. इसमें कई अन्य संरचनात्मक सुधारों की भी अहम भूमिका है.
ब्याज दरों की कटौती का असर दिखने में लगेगा समय
रघुराम राजन ने कहा कि अब ब्याज दरें पहले की तुलना में अधिक नहीं हैं. जो कटौती हुई है, उसका असर दिखने में समय लगेगा. उन्होंने कहा कि पहले उच्च ब्याज दर को लेकर जो तर्क दिए जाते थे, अब वे उतने मजबूत नहीं रह गए हैं. उन्होंने कहा, “अब वह तर्क बना नहीं रह सकता.”
सिर्फ दरों में कटौती नहीं, पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा भी जरूरी
रघुराम राजन का मानना है कि कंपनियों को निवेश के लिए प्रेरित करने में पारदर्शिता और विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा अधिक प्रभावशाली कारक बन सकते हैं. उन्होंने कहा, “ब्याज दर अकेले निवेश को प्रोत्साहित नहीं कर सकती, इसके पीछे कई अन्य पहलू भी अहम हैं. उद्योग को अपने लाभ और नेतृत्व को बनाए रखने के लिए नीतिगत स्थिरता चाहिए.” उन्होंने चिंता जताई कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से भारत में निजी निवेश लगातार घट रहा है.
निजी निवेश में गिरावट चिंता का विषय
सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार, भारत में निजी निवेश की हिस्सेदारी 11 साल के न्यूनतम स्तर पर है. राजन के अनुसार, उद्योग जगत में अब एक तरह की सतर्कता आ गई है. पहले ग्रामीण और निम्न मध्यम वर्ग की मांग पर सवाल उठाए जाते थे, अब उच्च-मध्यम वर्ग भी खर्च नहीं कर रहा है.
मुद्रास्फीति की स्थिति संतोषजनक, नीति में धैर्य जरूरी
जून 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति 2.1% पर रही जो कि संतोषजनक स्तर है. राजन ने कहा कि आरबीआई की नीतिगत दिशा पर वह प्रत्यक्ष टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूर कहा, “मुद्रास्फीति फिलहाल नियंत्रण में है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि केवल हेडलाइन महंगाई नहीं, बल्कि ‘कोर इंफ्लेशन’ पर भी ध्यान देना जरूरी है, ताकि स्थायित्व को बेहतर तरीके से आंका जा सके.
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निवेश बढ़ाने के लिए समग्र सुधार की जरूरत
रघुराम राजन का साफ संदेश है कि रेपो रेट में कटौती अकेले भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश को प्रोत्साहित नहीं कर सकती. इसके लिए पारदर्शिता, नीतिगत स्पष्टता, प्रतिस्पर्धा और समग्र आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है. ब्याज दरें अब अवरोध नहीं हैं, लेकिन उद्योग जगत को आत्मविश्वास लौटाने के लिए व्यापक नीति उपाय जरूरी हैं.
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