RBI Repo Rate: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) आगे नीतिगत दर में वृद्धि की रफ्तार को कम कर सकती है. डॉयचे बैंक ने सोमवार को यह राय जताई है. डॉयचे बैंक का अनुमान है कि रिजर्व बैंक सितंबर की मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है.
केंद्रीय बैंक इस साल मई से रेपो दर में 1.40 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है. मुद्रास्फीति लगातार रिजर्व बैंक के छह फीसदी के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है जिसके मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में तीन बार में 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की है.
जर्मनी के बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा कि यहां से रिजर्व बैंक ब्याज दरों में वृद्धि की रफ्तार को कम करेगा. मौद्रिक नीति समिति की पिछली बैठक का ब्योरा हाल में आया है.
रेपो रेट क्या है: दरअसल, रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर भारत के राष्ट्रीयकृत सरकारी और निजी बैंक आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं. महंगाई में इजाफा होने के बाद आरबीआई रेपो रेट बढ़ा देता है. वहीं, महंगाई दर में गिरावट होने पर आ्रबीआई इसे कम कर देता है. वहीं रिवर्स रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर सरकारी और निजी क्षेत्र बैंक आरबीआई के पास अपनी जमा राशि रखते हैं.
रेपो रेट का मतलब यह है कि जब वाणिज्यिक बैंकों को धन की कमी का सामना करना पड़ता है, तो वे आरबीआई की अनुमोदित प्रतिभूतियों- जैसे ट्रेजरी बिल को बेचकर आरबीआई से एक दिन के लिए लोन लेते हैं.
रेपो रेट के आधार पर लोन देते हैं बैंक: भारत के सरकारी और निजी क्षेत्र के व्यावसायिक बैंक रेपो रेट (Repo Rate) के आधार पर आम लोगों को खुदरा लोन देते हैं. यदि आरबीआई रेपो रेट बढ़ा देता है तो बैंकों के लिए इससे उधार लेना मुश्किल हो जाता है, अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रवाह को कम करता है. इससे महंगाई को काबू करता है. रेपो रेट में कमी से अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रवाह में बढ़ोतरी होती है, क्योंकि लोन सस्ता हो जाता है और अर्थव्यवस्था में खर्च बढ़ जाता है. यह मंदी को दूर करने का एक तरीका है.
भाषा इनपुट के साथ
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