Article 32 in Hindi: KBC से UPSC तक! क्यों आर्टिकल 32 बना चर्चा का विषय? डाॅ. आंबेडकर ने कहा था ‘संविधान की आत्मा’

Article 32 of Indian Constitution:भारत के संविधान का आर्टिकल 32, जिसे डॉ. आंबेडकर ने 'संविधान की आत्मा' कहा था जोकि नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय से सुरक्षा की गारंटी देता है. यह प्रावधान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न्याय की दिशा में एक मजबूत माध्यम है.

By Shubham | April 14, 2025 5:51 AM
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Article 32 of Indian Constitution in Hindi: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 (Article 32) नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है. अगर किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है तो वह सीधे अदालत में याचिका (रिट) दायर कर सकता है. संविधान के जनक डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसे “संविधान की आत्मा” कहा था क्योंकि यह लोकतंत्र में न्याय की गारंटी देता है. यही कारण है कि Article 32 UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बार-बार चर्चा में रहता है. इसलिए इस लेख में आर्टिकल 32 (Article 32 in Hindi) के बारे में विस्तार से जानें.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 (Article 32 of Indian Constitution in Hindi)

रिपोर्ट्स और रिसर्च के अनुसार, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 (Article 32 of Indian Constitution) नागरिकों को यह अधिकार देता है कि अगर उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट में न्याय की मांग कर सकते हैं. इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए जरूरी आदेश (जैसे रिट) जारी करे.

इन रिट्स में शामिल हैं:

  • हैबियस कॉर्पस (बंदी को अदालत में पेश करने का आदेश)
  • मैंडमस (किसी अधिकारी को काम करने का निर्देश)
  • प्रोहिबिशन (नीचली अदालत को कार्य करने से रोकना)
  • क्वो वारंटो (किसी पद पर वैध रूप से बैठे होने की जांच)
  • सर्टियोरारी (फैसले को रद्द करना).

डाॅ. भीमराव आंबेडकर और आर्टिकल 32 (Article 32 in Hindi)

संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने आर्टिकल 32 को “संविधान की आत्मा” कहा था क्योंकि यह आम नागरिक को अपने अधिकारों के लिए सर्वोच्च अदालत तक पहुंचने का सीधा रास्ता देता है. इस अनुच्छेद के तहत मिला अधिकार किसी भी हालत में निलंबित नहीं किया जा सकता जब तक संविधान में अलग से कुछ ना लिखा हो. संसद चाहे तो कानून बनाकर कुछ उच्च न्यायालयों को भी ऐसे अधिकार दे सकती है.

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