शुरुआती जीवन व शिक्षा (Laxman Prasad Dubey Biography in Hindi)
भारतकोश की रिपोर्ट और रिसर्च के मुताबिक, लक्ष्मण प्रसाद दुबे का जन्म 9 जून 1909 को दाढी गांव, जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़) में हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा अपने गांव से हुई और उच्चतर माध्यमिक व टीचर ट्रेनिंग बेमेतरा से कंप्लीट हुई. 1929 में उन्होंने भिलाई माध्यमिक विद्यालय में टीचिंग की शुरुआत की. उन्होंने यूनानी चिकित्सा (Unani Medicine) की परीक्षा भी पास की और शिक्षा के साथ ही चिकित्सा सेवा भी की.
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Laxman Prasad Dubey 2025: स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव
लक्ष्मण प्रसाद दुबे का क्रांतिकारी जीवन तब शुरू हुआ जब वह भिलाई में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे और उनका संपर्क नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जैसे वरिष्ठ सत्याग्रही से हुआ. अग्रवाल के मार्गदर्शन में उन्होंने अपने विद्यार्थियों व सहयोगियों के साथ विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार, शराबबंदी आंदोलन और ब्रिटिश राज विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया. उन्होंने जॉर्ज पंचम की तस्वीर व विदेशी वस्त्रों को सार्वजनिक रूप से जलाया.
जंगल सत्याग्रह में भूमिका (Laxman Prasad Dubey 2025)
लक्ष्मण प्रसाद दुबे (Laxman Prasad Dubey 2025) को बालोद के पोड़ी गांव में आयोजित जंगल सत्याग्रह का दस्तावेजी प्रभारी बनाया गया. उन्होंने आंदोलन से जुड़े सभी सत्याग्रहियों की जानकारी सुरक्षित रखी और पुलिस से बचाते रहे. जब अग्रवाल जेल गए तो दुबे ने नेतृत्व की कमान संभाली. वह गांव-गांव जाकर चरखा आंदोलन, महिलाओं की भागीदारी और स्वदेशी वस्त्रों के पक्ष में प्रचार करते रहे.
Laxman Prasad Dubey 2025: 1942 में क्या हुआ था?
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में लक्ष्मण प्रसाद दुबे को गिरफ्तार करने का आदेश निकला लेकिन लाल खान सिपाही ने उन्हें समय रहते सूचना दे दी. उन्होंने तुरंत अपने स्कूल पद से इस्तीफा दे दिया. 1942 से 1947 तक वे घुर जंगल, दुर्ग ग्रामीण क्षेत्र और रायपुर के इलाकों में पैदल घूमकर आजादी और शिक्षा का संदेश देते रहे.
Laxman Prasad Dubey 2025: शिक्षा, राजनीति और निधन
स्वतंत्रता के बाद भी लक्ष्मण प्रसाद दुबे ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और जनपद पंचायत बेमेतरा के सदस्य बने और शिक्षा से जुड़ी योजनाओं में भाग लिया. वह 1930 से 1993 तक जिला कांग्रेस समिति दुर्ग से जुड़े रहे और लंबे समय तक कार्यकारी सदस्य रहे. 23 जुलाई 1993 को उनका निधन हो गया लेकिन शिक्षा और सेवा की मशाल वे अपने पीछे छोड़ गए.
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