Munshi Premchand Jayanti : मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं पर बनीं बेहतरीन फिल्में

देश आज 31 जुलाई को हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 146वीं जयंती मना रहा है और उनकी कहानियों एवं उपन्यासों पर खूब बात हो रही है. आइये जानते हैं उनकी रचनाओं पर बनी फिल्मों एवं मुंशी प्रेमचंद के मुंबई जाने और वहां से मोहभंग होने की कहानी के बारे में...

By Preeti Singh Parihar | July 31, 2025 4:04 PM
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Munshi Premchand Jayanti : आज हिंदी साहित्य के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 146वीं जयंती है. मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन में हिंदुस्तान की जो तस्वीर खींची है, वह इतने दशकों बाद आज भी जस की तस है. यही वजह है कि उनके लेखन में मौजूद यथार्थवाद में पाठक अपने वर्तमान को देखते हैं और लेखक, फिल्मकार, कलाकार उसे अपनी कला में प्रदर्शित करने की कोशिश करते हैं. प्रेमचंद की रचनाओं पर केंद्रित फिल्में इसकी एक मिसाल हैं. प्रेमचंद, जिन्हें मुंबई की सिनेमाई दुनिया रास नहीं आई थी, उनकी रचनाओं पर कई बेहतरीन फिल्में बनीं. सत्यजीत रे और मृणाल सेन जैसे प्रसिद्ध फिल्मकारों ने प्रेमचंद की रचनाओं पर फिल्मों का निर्माण किया और आज वो फिल्में कालजयी सिनेमा में शुमार की जाती हैं.

सेवासदन पर फिल्म के लिए मिले सात सौ पचास रुपये

प्रेमचंद की धारणा थी कि गरीब जनता उनकी किताबें नहीं पढ़ सकती. यदि उनकी किताबों के आधार पर फिल्में बनायी जायें और उन्हें मुफ्त दिखाया जाये, तो जनता का कल्याण हो सकता है. एक फिल्म कंपनी ने 1933 में उनसे ‘सेवासदन’ उपन्यास पर फिल्म बनाने का अधिकार मांगा. सात सौ पचास रुपये पर करार हुआ. कई महीने इंतजार के बाद रुपये मिले. उस समय उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्होंने लिखा ‘अगर इस तंगी में भी रुपये न मिलते, तो जाने क्या दशा होती, ईश्वर ही जाने.’

आर्थिक तंगी ले गयी सिनेमा की दुनिया में

‘हंस’ और ‘जागरण’ दोनों को प्रकाशित करने के लिए पैसे की जरूरत थी. इन दोनों पत्रों को बचाने के लिए प्रेमचंद वर्ष 1934 में आठ हजार रुपये सालाना के कॉन्ट्रैक्ट पर एक फिल्म कंपनी में काम करने बंबई (अब मुंबई) गये. वहां पहुंचने के दो दिन बाद उन्होंने कथाकार जैनेंद्र को पत्र में लिखा- ‘यहां दुनिया दूसरी है, यहां कसौटी दूसरी है. अभी तो समझने की कोशिश कर रहा हूं.’ इस दौरान प्रेमचंद ने अजंता सिनेटोन के लिए दो कहानियां लिखीं- ‘मिल मजदूर’ और ‘नवजीवन.’

रास नहीं आई फिल्मी दुनिया

प्रेमचंद की कहानी पर बनी ‘मिल मजदूर’ फिल्म ने दर्शकों का ध्यान मजदूरों की दयनीय स्थति की ओर खींचा. कहानी हिंदी में लिखी गयी थी, लेकिन फिल्म कंपनी के प्रबंध निदेशक भूटानी तथा उनके साथी खलीब आफताब को हिंदी नहीं आती थी. इसलिए कहानी का उर्दू में अनुवाद किया गया. इसके बाद प्रंबध निदेशक के अनुसार कहानी में कुछ बदलाव किये गये. कुछ अंश हटाकर नयी चीजें जोड़ दी गयीं. इससे कहानी की मूल भावना बहुत बदल गयी. फिल्म बनने के बाद मिल-मालिकों की एसोसिएशन के दबाव के कारण सेंसर बोर्ड ने भी खूब कैंची चलायी. ‘सेवासदन’ पर बनी फिल्म के साथ भी यही हुआ. ‘नवजीवन’ में भी बहुत काट-छांट हुई. इसके बाद प्रेमचंद ने लिखा- ‘कहां हम और कहां सिनेमा वाले! फिल्म में जाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. मैं जिन इरादों से आया था, उनमें एक भी पूरा होता नजर नहीं आता. वल्गेरिटी को ये लोग एंटरटेनमेंट वैल्यू कहते हैं. यहां से छुट्टी पाकर अपने पुराने अड्डे पर जा बैठूं. वहां धन नहीं है, मगर संतोष है. यहां तो जान पड़ता है कि जीवन नष्ट कर रहा हूं.’

मिल मजदूर पर लगा था सरकारी प्रतिबंध

फिल्म-सेंसर बोर्ड ने ‘मिल मजदूर’ के प्रदर्शन की अनुमति केवल उन क्षेत्रों में दी थी, जहां उद्योग-धंधे न हों और मिल-मजदूरों की संख्या अधिक न हो. इस तरह सेंसर ने तो फिल्म को पास तो कर दिया, लेकिन बंबई सरकार ने इसके प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया. पंजाब में इसका प्रदर्शन हुआ, लेकिन बंबई सरकार की कार्यवाही को देखकर पंजाब सरकार ने भी जल्द ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया. दिल्ली और उत्तर प्रदेश समेत कई जगहों में ऐसा हुआ.

प्रेमचंद की रचनाओं पर बनीं क्लासिक फिल्में

बेशक सिनेमा की दुनिया प्रेमचंद को रास नहीं आई, लेकिन फिल्मकारों को उनकी रचनाओं ने बहुत आकर्षित किया. उनके उपन्यास ‘रंगभूमि’ पर इसी नाम से 1941 में फिल्म बनी और 1966 में ‘गबन’ और ‘गोदान’ उपन्यासों पर फिल्में बनीं. प्रेमचंद की कई कहानियों पर भी फिल्में भी बनी हैं. सत्यजीत रे ने 70 के दशक में प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर इसी नाम से फिल्म बनायी. यह सत्यजीत रे की पहली हिंदी फिल्म थी. इसके बाद उन्होंने प्रेमचंद की एक और कहानी ‘सद्गति’ पर भी 1981 में इसी नाम से फिल्म बनायी थी. फिल्मकार मृणाल सेन ने 1977 में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’ पर आधारित ‘ओका ऊरी कथा’ नाम से तेलुगु भाषा में फिल्म बनायी थी. यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजी गयी थी.

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