दीपा मलिक की कहानी अब बड़े पर्दे पर नजर आयेगी़ फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी उनकी जीवनी पर काम कर रहे हैं. पैरालिंपिक खेलों में पदक जीतने वाली दीपा मलिक भारत की पहली और एकमात्र महिला हैं.
रितेश सिधवानी की स्क्रिप्ट को विकसित करने वाली टीम ने दीपा मलिक की कहानी पर विचार किया और बाद में फिल्म निर्माता के सामने यह कहानी साझा की, जिसे सुन कर वह उत्सुक हो गये और तुरंत दीपा से मुलाकात करने का निर्णय लिया. बताया जाता है कि शुरुआत में यह 30 मिनट की बातचीत थी, जो बाद में पांच घंटे की चर्चा में तब्दील हो गयी.
अपने बैनर एक्सेल एंटरटेनमेंट के तले सहयोगी फरहान अख्तर के साथ दीपा की बायोपिक बनाने वाले रितेश सिधवानी कहते हैं, मैंने उनकी वीडियो देखी है और मुझे पता था कि उनकी जीवन की कहानी अवास्तविक है. लेकिन जब मैंने उनसे मुलाकात की और उन्होंने मुझे अपना मेडल दिखाया, तो चांदी के उस बड़े वजन वाले पदक को पकड़कर मेरे होश उड़ गये थे.
अपने जीवन में एक पड़ाव पर उन्हें व्हीलचेयर पर अपनी मौत या फिर जीवन के बीच चयन करना था, जिसमें दीपा ने जीवन का चयन किया. लेकिन जैसे ही वह मेरे सामने बैठे, उसके बारे में दिव्यांग जैसा कुछ भी अलग नहीं था. वह सशक्तीकरण का रूप है, ताकत का एक आधार है, और मुझे पता था कि उनका संघर्ष हमें बड़े पर्दे पर लाने की जरूरत थी. फिल्म अगले साल की शुरुआत में फ्लोर पर जायेगी़
दीपा की यात्रा को बड़े पर्दे पर लाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जहां हर किसी को रिकाॅर्ड में लगाया जा रहा है. कास्टिंग अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन दिग्गज निर्माता के मुताबिक, यह किसी भी अभिनेत्री के लिए कैरियर-निर्णायक भूमिका होगी क्योंकि यह केवल एथलीट के बारे में नहीं है, बल्कि दीपा जो है उस पर भी निर्धारित होगी.
उन्होंने आगे कहा कि इसमें उनके बच्चे और पति भी होंगे और खास कर उनका हरियाणा का घर, दिल्ली में उनका वर्तमान घर और अन्य स्थानों के साथ रियो डी जनेरियो में भी उनकी जीत भी होगी.
दीपा मलिक, जो अब 46 साल की हैं और दो लड़कियों की मां हैं वो 20 साल पहले अपनी दूसरी गर्भावस्था के दौरान भयंकर पीठ दर्द से पीड़ित थीं. डॉक्टरों ने उनके वजन को दोषी ठहराया, लेकिन फिर भी दीपा ने सामान्य तरीके से बच्ची को जन्म दिया, लेकिन उनके दर्द में इस बुरे तरीके से वृद्धि हुई कि वह अपने बच्चे को उठाने में भी असमर्थ हो गयी थी.
इसके तुरंत बाद, उनकी रीढ़ की हड्डी में एक ट्यूमर का पता लगा, जिसका तत्काल ऑपरेशन किया जाना था. इस दौरान स्पाइनल पैरालाइसिस और मौत के बीच विकल्प बचा था.
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कैवलियर कर्नल बिक्रम सिंह, दीपा के पति उस समय कारगिल में थे, जब उन्होंने अपने कंधे के ब्लेड के बीच 163 टांके लगाये थे. और जब उन्हें चेतावनी दी गयी कि सर्जरी के बाद उन्हें कुछ नुकसान भी हो सकता है, तो उसकी रीढ़ की हड्डी इतनी क्षतिग्रस्त हो गयी थी कि उन्हें सीने से नीचे के पूरे हिस्से में लकवा मार गया.
बहादुर दीपा मलिक ने एक रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर को मात दी, 26 की उम्र में 31 सर्जरी और 183 टांके और आठ साल में लकवाग्रस्त होने के बावजूद राजस्थान के लिए एक राज्य स्तरीय क्रिकेट खिलाड़ी भी बन गयी.
रितेश सिधवानी आगे कहतेहैं- 2006 में दीपा ने जैवलिन की शुरुआत की और फिर पैरालिंपिक से एक साल पहले उन्हें अपना खेल बदलना पड़ा. एक ऐसा समारोह जिसके लिए लोग अपने पूरे जीवन को प्रशिक्षित करते हैं, उनके पास शॉट पुट सीखने के लिए केवल 12 महीने का समय था. रियो में एक रजत पदक के साथ वह घर लौटी. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 54 स्वर्ण पदक हासिल किये और 13 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैराकी, जैवलिन थ्रो और शॉट पुट में हासिल किये.
दीपा मलिक ने विभिन्न साहसिक खेलों में उनकी भागीदारी के लिए भी पुरस्कार जीते हैं, 19 महीनों के लिए महाराष्ट्र में अधिकारियों का पीछे पड़ने के बाद ‘अमान्य और संशोधित’ रैली वाहन के लिए लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली भारतीय हैं दीपा मलिक.
दीपा आज हिमालयी मोटरस्पोर्ट्स एसोसिएशन और फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया से जुड़ी हुई हैं, जिसमें आठ दिन के रेड डी हिमालय की यात्रा है, जिसमें उप शून्य तापमान में 1700 किलोमीटर की दूरी और 18000 फीट चढ़ाई शामिल है.
2012 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
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