Interview : मैंने बहुत बुरी फिल्में भी की हैं – परेश रावल

सिनेमाघर में आज प्रदर्शित हुई फिल्म संजू में अभिनेता परेश रावल लेजेंडरी अभिनेता सुनील दत्त की भूमिका में हैं. परेश कहते हैं कि वह एक्टर नहीं बल्कि पिता सुनील दत्त की भूमिका को जी रहे हैं. राजकुमार हिरानी के साथ काम कर परेश बहुत खुश हैं. थ्री इडियट में वह बोमन ईरानी वाले रोल की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2018 11:06 PM
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सिनेमाघर में आज प्रदर्शित हुई फिल्म संजू में अभिनेता परेश रावल लेजेंडरी अभिनेता सुनील दत्त की भूमिका में हैं. परेश कहते हैं कि वह एक्टर नहीं बल्कि पिता सुनील दत्त की भूमिका को जी रहे हैं. राजकुमार हिरानी के साथ काम कर परेश बहुत खुश हैं. थ्री इडियट में वह बोमन ईरानी वाले रोल की पहली पसंद थे लेकिन दूसरी फिल्मों में मशरूफियत की वजह से वह फिल्म से जुड़ नहीं पाए थे. पेश है इस फिल्म और करियर पर बातचीत के कुछ अंश …

राजकुमार हीरानी का कहना था कि सुनील दत्त की कास्टिंग सबसे मुश्किल थी. आपके लिए क्या टफ रहा ?

दत्त साहब का संजय दत्त की तरह कोई मैनरिज्म या स्टाइल नहीं है. वह आम से थे और आम आदमी को परदे पर दिखाना ही सबसे बड़ा चैलेंज होता है. यह फिल्म पिता-पुत्र की कहानी है. मेरा मानना है कि अगर इसमे पुत्र की भूमिका निभा रहा एक्टर पूरी तरह से लुक को अपना लिया है तो मुझे भी उस रेस में कूदने की जरूरत नहीं थी कि मैं भी सुनील दत्त की तरह ही दिखूं. यहां सबसे अहम बात क्या थी क्योंकि यह पिता-पुत्र की कहानी है तो पिता जो कशमकश से गुजरे थे. उनकी जो कहानी थी. जो उन्होंने बेटे को बचाने के लिए जद्दोजहद की थी. जो नरगिस की बीमारी को बचाने के लिए उन्होंने किया था. अपने पॉलिटिकल कैरियर को लेकर उनका उपापोह. वह एक आयरनमैन थे. जो अपने परिवार को साथ में लेकर चल रहे थे. तमाम विपरित हालात में. एक्टर के तौर पर मुझे वो पकड़ने की जरूरत थी.

आपने सुनील दत्त के किरदार से क्या सीखा ?

अच्छा आदमी क्या होता है. उन्होंने मुझे सीखाया है. दत्त साहब का मैं बरसों से फैन रहा हूं. पॉलिटिक्स में आने से पहले से. उनकी आंखों में करुणा का भाव था. मैंने मदर टेरेसा को देखा नहीं था. मैंने दत्त साहब को देखा था. मुझे लगता है कि ऐसी करुणा मदर टेरेसा की भी आंखों में होगी.

क्या निजी जिंदगी में आपकी मुलाकात सुनील दत्त से हुई थी ?

मैं उनसे दो तीन बार ही मिला हूं. कभी अजंता में फिल्म का ट्रायल है तो दत्त साहब को देख लिया और हाय हैल्लो कर दिया. क्या चल रहा बेटा. वो भी पूछ लेते थे, बस इतना ही. हां एक बार मेरे एक दोस्त को कैंसर का प्रॉब्लम था. मैं लेकर गया था तो उन्होंने कहा कि हम लोग पैसे नहीं देते हैं. हमारा जो फाउंडेशन है. वो अमेरिका में दवाई वगैरह में मदद करता है.

अभिनेता से नेता बनने की क्या सबसे बड़ा बदलाव लाता है ?

लोगों की उम्मीद बढ़ जाती है. उनकी उम्मीद जायज है क्योंकि उन्होंने ही नेता बनाया है तो वो चाहेंगे कि उनके दुख दर्द दूर करो. काम कर दिया तो बहुत खुशी होती है. नहीं कर पाते हैं तो बहुत दुख होता है. दस काम करने होते हैं उसमे से एक दो नहीं ही कर पाते हैं तो दुख होता है.

रणबीर कपूर बतौर एक्टर आपको कितना प्रभावित करते हैं ?

संजू की बात तो मैं बाद में करुंगा लेकिन जब कोई स्टार का बच्चा लांच होता है तो वह रोमांटिक फिल्में ही करेगा. उनका मेन्यू कार्ड होता है. जिसे सभी स्टार के बच्चे फॉलो करते हैं. डांस, रोमांस के बाद थोड़ी गुंजाइश एक्टिंग की होती है. इन्होंने आने के साथ ही करेक्टर रोल करना शुरू किया. कभी कॉलेज ब्वॉय वाला रोल नहीं किया. राजनीति कर रहा है. रॉकस्टार कर रहा है. तमाशा कर रहा है. किस किस्म की अलग-अलग फिल्में कर रहा है. पता चलता है कि एक्टर की मिट्टी क्या है. उसे फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म हिट होगी या फ्लॉप. वो अपना काम करता रहताहै. मुझे ये बात बहुत पसंद है. संजू की बात करें तो उन्होंने आंखों और आवाज से भी संजय दत्त के किरदार को जिया है.

क्या आपको लगता है कि इंडस्ट्री में टाइपकास्ट होने का चलन रहा है और शुरुआत में आप भी इसका शिकार थे ?

हमारी इंडस्ट्री का क्या है. कोई खानसामा है, अगर इडली अच्छी बनाता है तो सब उससे इडली ही बनायेंगे जबकि उस खानसामे को डोसा और पास्ता भी बनाना आता है. शुरुआत में मुझे भी एक ही तरह के रोल मिलते थे लेकिन फिर सबको मालूम हुआ कि अच्छा एक्टर है तो फिर रोल मिलने लगे. अभी का समय तो बहुत बदल गया है लेकिन मैं लकी हूं मेरे जिंदगी में महेश भट्ट, प्रियदर्शन, राजकुमार संतोषी जैसे निर्देशक आयें. जिंहोने मुझसे बहुत कुछ अलग करवाया. अभी का तो टाइम गोल्डन पीरियड है. मैं चाहता हूं कि खुद को फिट रखूं ताकि ज्यादा से ज्यादा काम कर सकूं. सबकुछ सिस्टेमेटिक ढंग से अब होता है.

मोदी जी की बायोपिक की क्या स्थिति है ?

सिंतबर और अक्टूबर से है. स्क्रिप्ट में पांच से सात प्रतिशत ही बचा है. बहुत ही चुनौतीपूर्ण निभाना है.

इंडस्ट्री में अपनी अब तक की जर्नी को किस तरह से देखते हैं ?

मैं खुश हूं शिकायत नहीं है. मुझे कई लोग बोलते हैं कि मैंने बहुत बुरी फिल्में भी की है. मैं मानता हूं कि क्योंकि वो पैसे मेरा घर चलाते थे. उन पैसों की वजह से ही मैं सरदार पटेल नाम की फिल्में कर सका. किसी को गाली देना ये बुरा था कहना आसान है. बुरा था तो मैंने उस वक्त क्यों किया. अब क्यों होशियारी दिखा रहा. मेरी सभी फिल्मों का अपना अपना योगदान रहा है.

आपके बेटे क्या कर रहे हैं ?

छोटा बेटा लेखक है. बड़ा वाला अनिरुद्ध अली जफर को असिस्ट कर रहा है. सुल्तान और टाइगर जिंदा है में उसने असिस्ट किया था. अपने पास तो पैसे नहीं है कि उनको लांच करुं तो वो खुद ही अपनी मेहनत से अपने सपने पूरे करने में जुटे हैं.

क्या आप कभी निर्देशन में हाथ आजमाना चाहेंगे ?

नहीं, क्योंकि मुझे पता है कि अच्छा डायरेक्शन बहुत ही मेहनत का काम है और उसके साथ न्याय करने के लिए मुझे अपनी एक्टिंग की दुकान बंद करनी होगी. अभी तो नये नये किरदार करने को मिल रहे हैं. वो कहते हैं ना चलता हुआ रेडियो खोलना नहीं चाहिए तो जो काम चल रहा है उसी पर फोकस करुं तो अच्छा होगा.

खबरें आ रही है हेरा फेरी के सीक्वल की ?

मैं भी सुन ही रहा हूं. मुझे अभी तक किसी ने अप्रोच नहीं किया.

हेरा फेरी आपके कैरियर की खास फिल्म थी आपको क्या लगता है फिल्म और आपका किरदार इतना फेमस क्यों हुआ जो आज भी लोग उसे नहीं भूले ?

मैं फ़िल्म के सक्सेस के लिए न अकेला खुद क्रेडिट लूंगा और ना ही किसी को लेने दूंगा. उस किरदार और फ़िल्म की सफलता की सबसे बड़ी वजह कॉमेडी में एक मासूमियत थी जो सेकंड पार्ट में नहीं थी. यही वजह है कि दूसरी कड़ी उतनी बड़ी हिट नहीं हुई थी.

ओह माय गॉड के सीक्वल की क्या स्थिति है ?

ओह माय गॉड की स्क्रिप्ट आ चुकी है हाथ में. अगले साल के मार्च में फिल्म शूटिंग फ्लोर पर जायेगी. फिल्म के कास्ट में दो तीन बदलाव होंगे.

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