नयी दिल्ली : बंगाली फिल्मों के जानेमाने निर्देशक ऋत्विक घटक ने 1970 में जब रूस के दिग्गज साम्यवादी नेता व्लादिमिर लेनिन पर फिल्म बनाई थी तो उसे सेंसरशिप से जुड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा था. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र सहयोगी पी एन हक्सर की कोशिशों से इस फिल्म को मंजूरी मिल पाई.
बेहद ताकतवर नौकरशाह रहे हक्सर ने इंदिरा गांधी को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वह फिल्म को वयस्क (ए) प्रमाण – पत्र जारी कर रिलीज होने दें. कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश द्वारा लिखी गई हक्सर की जीवनी ‘‘ इंटरट्वाइंड लाइव्ज ‘ में इस घटना का जिक्र है.
हक्सर से जुड़े आधिकारिक दस्तावेजों, ज्ञापनों, नोटों और पत्रों का गहन अध्ययन करने के बाद रमेश ने 1960 और 1970 के दशकों में देश के राजनीतिक एवं आर्थिक इतिहास को आकार देने वाले इस शख्स से जुड़ी बातें विस्तार से लिखी हैं.
रमेश लिखते हैं , ‘थोड़े तुनकमिजाज बंगाली फिल्मकार ने लेनिन पर फिल्म बनाई थी लेकिन यह विवादों में घिर गई थी.’ छह जनवरी 1971 को हक्सर ने इंदिरा गांधी को घटक की श्वेत – श्याम फिल्म ‘ आमार लेनिन ‘ के बारे में बताया. यह फिल्म रूसी क्रांतिकारी नेता के जन्म के 100 साल पूरे होने के अवसर पर बनाई गई थी.
हक्सर ने इंदिरा से कहा , ‘ दुनिया भर में लोगों की कई पीढ़ियों ने आइजेंसटाइन , पुदोवकिन , रोसेलिनी एवं अन्य की भड़काऊ फिल्मों में इससे कहीं ज्यादा देखी है. इन फिल्मों को बड़े पैमाने पर दिखाया गया था. और असल में कुछ हुआ भी नहीं. यदि इस फिल्म को हूबहू प्रमाण – पत्र दे भी दिया तो भी शायद ही कोई सिनेमाघर इसे वाणिज्यिक आधार पर दिखाएगा.’
उन्होंने कहा , ‘ मैंने खुद फिल्म देखी है और मैं वास्तविकता देखते हुए नहीं कह सकता कि ऋत्विक घटक की लेनिन पर फिल्म कोई क्रांति ले आएगी.’ हक्सर ने घटक की गरीबी के प्रति हमदर्दी जाते हुए कहा कि उन्होंने पैसे मुहैया कराने वालों की मदद से थोड़े पैसे इकट्ठे किए हैं और वे सोवियत संघ को यह फिल्म बेचने के लिए बेसब्र हैं.
वरिष्ठ नौकरशाह ने फिल्म को ‘ए’ प्रमाण – पत्र देने का सुझाव देते हुए प्रधानमंत्री से कहा , ‘भारतीय लेनिन का निर्यात सोवियत यूनियन को करना बहुत मजेदार रहेगा. यह वाकई मजाक जैसा है कि आधिकारिक समय के इतने घंटे सिर्फ इस सवाल पर बर्बाद कर दिए गए कि फिल्म रिलीज की जाए या नहीं.’
नोट लिखवाने के बाद हक्सर को अहसास हुआ कि कहीं वह अपनी उदारता में कुछ ज्यादा तो नहीं बोल गए. हालांकि , बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि फिल्म को ‘सिर्फ वयस्कों के लिए’ प्रमाणित करने के बाद रिलीज की मंजूरी पर वह सहमति दे सकती हैं. इस पर इंदिरा सहमत हो गईं. रमेश की इस किताब को साइमन एंड शूस्टर ने प्रकाशित किया है.
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