Bulbbul Movie Review
फ़िल्म : बुलबुल
निर्माता : अनुष्का शर्मा
निर्देशक : अन्विता दत्त
कलाकार : तृप्ति डिमरी,अविनाश तिवारी, राहुल बोस, पौलमी,परंब्रता और अन्य
रेटिंग : तीन
‘परी’ और ‘फिल्लौरी’ के बाद निर्माता के तौर अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने नेटफ्लिक्स पर आज रिलीज हुई अपनी वेब फ़िल्म ‘बुलबुल’ (Bulbbul Movie Review) के ज़रिए भी डरावने रहस्यों के आड़ में महिलाओं से जुड़े एक गंभीर सामाजिक मुद्दे घरेलू हिंसा को छुआ है. बुलबुल घरेलू हिंसा से जूझती एक महिला के विद्रोह की कहानी है. जिसे शादी और उससे जुड़े बंधन सिर्फ काबू में रखने और सबकुछ चुपचाप सहने के लिए बाध्य करते हैं लेकिन वह विद्रोह का रास्ता चुनती है.
बुलबुल की कहानी पर आए तो यह 1881 पर आधारित है. बंगाल प्रेसिडेंसी के एक गांव की कहानी है. बुलबुल (तृप्ति डिमरी) एक छोटी सी बच्ची है जिसे पेड़ पर चढ़ना और आम तोड़कर खाना पसंद है. उसका बाल विवाह गांव एक बड़े ठाकुर जमींदार इंद्रनील (राहुल बोस) से हो जाता है जो उससे उम्र में बहुत बड़ा है लेकिन वह अपना पति जमींदार के सबसे छोटे भाई सत्या ( अविनाश तिवारी)को मानती है वो उसका हमउम्र भी है.
सत्या का इंद्रनील के अलावा एक और भाई है महेंद्र (राहुल बोस) जो मानसिक रूप से कमज़ोर है.उनकी पत्नी बिनोदिनी (पाउली) है. बचपन में सत्या बुलबुल को खून की प्यासी एक चुड़ैल की कहानी सुनाता है जो पेड़ पर रहती है. जिसके पैर उल्टे है जो लोगों का खून पीती है. कहानी 20 साल आगे बढ़ जाती है.
मालूम पड़ता है कि सत्या पांच साल के अंतराल के बाद लंदन पढ़ाई कर वापस घर लौटा है. उसके भाई इंद्रनील ने उसे लंदन भेज दिया था क्योंकि बुलबुल के संग उसकी दोस्ती उसे रास नहीं आ रही थी लेकिन इन पांच सालों में बहुत कुछ बदल गया है. इंद्रनील घर छोड़कर जा चुका है. महेंद्र की मौत हो गयी है. उसकी पत्नी बताती है कि उसे चुड़ैल ने मार दिया है.
सत्या के आने के बाद गाँव में दूसरे आदमियों की भी मौत होने लगती है. चुड़ैल सबको मार रही है यह बात गांव में आग की तरह फैल जाती है. इसी बीच एक और आदमी मारा जाता है. इस खून की चश्मदीद एक बच्ची है जो कहती है कि आदमी को चुड़ैल ने नहीं बल्कि देवी मां काली ने मारा है. फ़िल्म का ये संदर्भ बहुत ही बेहतरीन है जो फ़िल्म का मर्म भी समझा जाती है. क्या सत्या पुरुषों की इस चुड़ैल से मिल पाएगा. क्या हकीकत है इस चुड़ैल की और उसके उल्टे पैर की. आगे की कहानी इसी पर है.
कई सफल गाने लिख चुकी अन्विता दत्त की यह निर्देशक के तौर पर पहली फ़िल्म है. फ़िल्म की कहानी भी अन्विता की है.उनकी कहानी का सस्पेंस भले ही जल्द ही जाहिर हो जाता है लेकिन फ़िल्म एंगेज रखती है.कई दृश्य बहुत प्रभावी हैं. इंद्रनील जहां बुलबुल को मारता है.रावण और जटायु के संग उस दृश्य का जोड़कर दिखाना उसे और प्रभावी बनाता है. फ़िल्म की कहानी में इसका भी जिक्र है कि बिनोदिनी का किरदार ठाकुरों के अन्याय को सहन करने की सीख बुलबुल को देती है क्योंकि बिनोदिनी अन्याय सहन कर रही है लेकिन बुलबुल एक अलग ही राह चुनती है.
अभिनय की बात करें तो अभिनेत्री तृप्ति डिमरी शीर्षक भूमिका की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है.अपने किरदार की ज़िंदगी से जुड़ी उथल पुथल को उन्होंने बखूबी फ़िल्म में दर्शाया है. कई दृश्यों में वह अपनी मुस्कान से बहुत कुछ जाहिर कर देती हैं.अविनाश अच्छे रहे हैं लेकिन उनके किरदार की थोड़ी और डिटेलिंग होनी चाहिए थी. राहुल बोस ने डबल रोल में उम्दा अभिनय किया है.पाउली और परंब्रता ने भी अपने हिस्से की भूमिका को बखूबी निभाया है. फ़िल्म का वीएफएक्स बेहतरीन है.लाल रंग कहानी को एक नया आयाम देते हैं.फ़िल्म में बंगाली कल्चर को बखूबी दिखाया गया है तो संवाद भी कहानी में अपना असर छोड़ते हैं.
कुलमिलाकर महिला सशक्तिकरण की बात यह फ़िल्म बखूबी रखती है.
Posted By: Budhmani Minj
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