पटना. मनोज बाजपेयी स्टारर फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज होने के बाद सिंगल स्क्रिन पर भी रिलीज कर दी गयी है. ये कोर्टरूम ड्रामा फिल्म सच्ची घटना पर इंस्पायर्ड है. फिल्म में मनोज बाजेपयी ने वकील का किरदार निभाया है, जो किसी भी हाल में सच सामने लेकर आता है. इस फिल्म को दर्शकों का प्यार मिलने के बाद बुधवार को शहर के होटल मौर्या में फिल्म के प्रोमोशन के लिए प्रीमियर का आयोजन किया गया.
अभिनेता मनोज बाजपेयी ने कहा है कि उनका पूरा फोकस फिलहाल बेहतर फिल्म निर्माण की तरफ है. आगे कभी फिल्मों से संन्यास लूंगा, तो अध्यात्म की ओर कदम बढ़ाऊंगा. उन्होंने कहा कि मैं हमेशा यह बात कहता हूं कि राजनीति से हमेशा दूर रहूंगा और आज भी यही बात फिर से दोहरा रहा हूं. इस अवसर पर मनोज वाजपेयी ने कहा कि यह फिल्म दर्शकों को बच्चों की सुरक्षा और उनकी बेहतर परवरिश के लिए प्रेरित करती है.
पटना रंगमंच के उत्थान के लिए आप क्या सोचते हैं?
रंगमंच से लगाव के बिना कोई भी एक्टर समाज की पीड़ा को दर्शा नहीं सकता है. रंगमंच से जुड़े लोगों के उत्थान के लिए जरूरी है कि राज्य फिल्म मेकिंग को लेकर पॉलिसी तैयार करे. जिला स्तर भी रंगमंच से जुड़े कलाकारों को बेहतर प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के साथ ही उन्हें हर संभव सहयोग किया जाए.
एक्टिंग में नाम कमाने के बाद फिल्म प्रोड्यूसर के तौर पर क्या चुनौतियों हैं?
जब आप किसी भी काम को दूसरों से बेहतर करना चाहते हैं तो, चुनौतियां सामने आती हैं. एक्टिंग में किरदार के साथ इंसाफ करने की चुनौती होती है. एक प्रोड्यूसर के रूप में फिल्मों की कहानियों को चुनने और उसे दर्शकों तक मनोरंजन के साथ पहुंचाने की चुनौती होती है.
फिल्म के बारे में कुछ बताइए, कैसी फिल्म है?
फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ सच्ची घटना पर आधारित है. इस फिल्म के जरिये दर्शकों को यह संदेश देने की कोशिश की गयी है कि जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने वालों का सहयोग करना समाज के सभी तबके के लोगों की जिम्मेदारी है. मनोज बाजपेयी ने कहा कि अपूर्व सिंह कार्की के निर्देशन में बनी इस फिल्म में एक बेटी की हिम्मत को दिखाया गया है, जो दुष्कर्म के खिलाफ आवाज उठाते हुए बड़े लोगों के नामों का उजागर करती है. एक बेटी के साथ हुए अन्याय को दिखाते हुए जुर्म के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया है.
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फिल्म में सोलंकी(वकील) के किरदार की क्या खासियत है?
मैं फिल्म में एक ऐसे वकील का किरदार निभा रहा हूं, जो अपने क्लाइंट की आपबीती सुनने के बाद उसे अपना दर्द समझ कर केस को हैंडल करता है. किरदार के साथ न्याय उस शिद्दत को दिखा कर किया है, जब इंसान किसी काम को पूरी लगन के साथ करता है.
क्या लगता है कि यह फिल्म लोगों को जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेगी?
मुझे लगता है कि कोई भी फिल्म समाज को बदल नहीं सकती है, लेकिन जुर्म के खिलाफ हो रहे आंदोलन का हिस्सा जरूर बन सकती है. जहां तक बात है लोगों को प्रेरित करने कि, तो इनता जरूर कहूंगा थोड़ी देर के लिए यह सोचने पर जरूर मजबूर करेगी दर्शकों को.
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