फिल्म – बर्लिन
निर्माता :जी स्टूडियोज
निर्देशक :अतुल सबरवाल
कलाकार :अपारशक्ति खुराना,इश्वाक सिंह,राहुल बोस,अनुप्रिया गोयनका,कबीर बेदी, नितेश पंड्या, जॉय सेनगुप्ता,जिगर मेहता, दीपक काजी और अन्य
प्लेटफार्म :जी 5
रेटिंग : तीन
berlin movie :बीते कुछ सालों पर गौर करें तो स्पाई थ्रिलर जॉनर एक लोकप्रिय जॉनर बनकर हिंदी सिनेमा में उभरा है.जिसमे देश को बचाने लिए स्पाई किसी भी हद तक जाते हैं.अपनी जान देने से भी वह गुरेज नहीं करते हैं. ज़ी 5 पर स्ट्रीम कर रही बर्लिन फिल्म का जॉनर भले स्पाई थ्रिलर है,लेकिन फिल्म की कहानी एकदम अलहदा है.यहां देश को बचाने की बस बात भर ही हो रही है.कहानी कुछ और है.कहानी ही नहीं इसका ट्रीटमेंट भी अलहदा है.उस पर फिल्म के कलाकारों का बेहतरीन परफॉरमेंस भी है. यह सब पहलू कुछ खामियों के बावजूद फिल्म को एक उम्दा स्पाई थ्रिलर बना गया है।
ख़ुफ़िया एजेंसीस के स्याह पक्ष को दिखाती है
फिल्म की कहानी 1993 के समयकाल में सेट है. रुसी प्रेजिडेंट जल्द ही भारत आनेवाले हैं.एक कॉफी शॉप में अशोक (इश्वाक सिंह ) की गिरफ्तारी से कहानी शुरू होती है.उस पर रशियन प्रेसिडेंट की हत्या की साजिश रचने और एक का एजेंट की हत्या का आरोप है। कहानी के अगले सीन में दिव्यांग बच्चों के एक स्कूल के टीचर पुश्किन(अपारशक्ति खुराना) को अचानक से स्कूल से छुट्टियां मिल जाती है और फिर मालूम पड़ता है कि अशोक मूक और बधिर है. दरअसल अशोक से पूछताछ में मदद करने लिए पुश्किन को एक खुफिया ब्यूरो के प्रमुख सोंधी (राहुल बोस)ने बुलाया है. क्या अशोक विदेशी जासूस और एक हत्यारा है. पुश्किन जैसे जैसे साइन लैंग्वेज के ज़रिये अशोक से बातचीत शुरू करता है. वह उसकी दुनिया और अतीत से ना सिर्फ जुड़ता है बल्कि ख़ुफ़िया एजेंसीज के काले सच से भी रूबरू होता है , जिसमें आगे चलकर पुश्किन भी खुद को फंसा हुआ महसूस करता है। क्या वह इससे निकल पायेगा या अशोक की तरह वह भी फंस जाएगा।अशोक को आखिर ख़ुफ़िया एजेंसीस क्यों फंसा रही है.इन सब सवालों के लिए आपको फिल्म देखना होगा.
फिल्म की खूबियां और खामियां
स्पाई थ्रिलर पर अब तक कई फिल्में और सीरीज बन चुकी है, लेकिन यह फिल्म भारत और उसके पड़ोसी देशों के साथ वही पुराने रिश्तों की कहानी को नहीं दिखाती है.जिस तरह से गहराई में यह फिल्म सीन दर सीन उतरती है. पुश्किन के किरदार के साथ आम दर्शकों को भी स्पाय, ब्यूरोक्रेसी, पावर ,पॉलिटिक्स पर फोकस करते हुए राष्ट्रवाद की एक नयी परिभाषा से रूबरू करवाती है.फिल्म की गति धीमी है,लेकिन रोमांच की कमी नहीं है,जिस तरह से एक के बाद ट्विस्ट कहानी से जुड़ते जाते हैं. वह आपको चकित कर देता है. फिल्म के क्लाइमेक्स का ट्रीटमेंट एकदम रियलिस्टिक अंदाज में किया गया है.हालांकि फिल्म का फर्स्ट हाफ दूसरे भाग के मुकाबले ज्यादा सशक्त है. सेकेंड हाफ पर थोड़ा और काम करने की जरुरत थी.फिल्म में 90 के दशक को बारीकी के साथ पर्दे पर जीवंत किया गया है. कॉस्ट्यूम से लेकर कार और बस स्टॉप तक में पूरी डिटेलिंग के साथ इसकी फिल्म के कलर पैलेट में भी भी यह बात इस बात को कहानी में जोड़े रखा गया है.जिसके लिए फिल्म की टीम की तारीफ की जानी चाहिए।फिल्म का लुक विदेशी फिल्मों की याद दिलाता है। फिल्म में बर्लिन का इस्तेमाल मेटाफर के तौर पर है.जिसमें काम करने वाले मूक बधिर लोग एक दीवार का काम करते हैं, लेकिन बाद में इस दीवार के गिरने को भी दिखाया गया है.फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक इसके विषय को और मजबूती देता है.
अपारशक्ति और इश्वाक का शानदार परफॉरमेंस
वेब सीरीज जुबली के बाद अभिनेता अपारशक्ति खुराना अपने हर प्रोजेक्ट में एक अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं.यह फिल्म इसकी आगे की कड़ी बनती है.अपनी इमेज के बिलकुल विपरीत वह इस फिल्म में नज़र आये हैं.किरदार को लेकर उनकी मेहनत दिखती है.इश्वाक सिंह का काम भी शानदार है. फिल्म में उनके एक भी संवाद नहीं है. बिना किसी संवाद के उन्होंने बहुत ही प्रभावी ढंग से अपने किरदार को जिया है. इश्वाक और अपारशक्ति की केमिस्ट्री भी इस फिल्म के हाईलाइट पॉइंट में से एक है.इनदोनों कलाकारों के साथ अभिनेता राहुल बोस भी फिल्म में अपनी छाप छोड़ते हैं.अनुप्रिया गोयनका,कबीर बेदी, नितेश पंड्या, जॉय सेनगुप्ता,जिगर मेहता और दीपक काजी ने भी अपनी – अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.–
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