फिल्म- इमरजेंसी
निर्माता – मणिकर्णिका फिल्म्स
निर्देशक – कंगना रनौत
कलाकार- कंगना रनौत,अनुपम खेर,मिलिंद सोमन ,श्रेयस तलपड़े,महिमा चौधरी, सतीश कौशिक, विशाक नायर, दर्शन पंड्या,अरविंद शर्मा और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग-दो
emergency movie review :अभिनेत्री, निर्मात्री और निर्देशिका कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी ने आखिरकार सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है. फिल्म की रिलीज एक बार टल चुकी थी.फिल्म के खालिस्तानी मूवमेंट वाले हिस्से पर सेंसर बोर्ड को भी ऐतराज था. उस पर कैंची भी चली. विवाद यही नहीं रुके थे. फ़िल्म को खास एजेंडे के तहत बनाया गया है.ऐसी बातें भी सामने आने लगी,लेकिन फिल्म को देखने के बाद यह बात कही जा सकती है कि फिल्म इमरजेंसी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कामों को ना तो महिमा मंडन करती है और ना ही उन्हें बदनाम करती दिखती है. जैसे आमतौर पर बॉलीवुड की पॉलिटिकल ड्रामा फिल्मों में होता है. कंगना ने इसे बैलेंस रखने की कोशिश की है. इसके लिए उनकी तारीफ बनती है. वैसे सबसे ज्यादा तारीफ एक बार फिर वह एक अभिनेत्री के तौर पर ही बटोरती हैं. फिल्म की पटकथा कमजोर रह गयी है.सब कुछ दिखाने के चक्कर में फिल्म प्रभावी नहीं बन पायी है.
इमरजेंसी की नहीं इंदिरा गांधी की है कहानी
कहानी की बात करें तो फिल्म की शुरुआत 1929 से हुई है.जब 12 वर्षीय इंदु यानी इंदिरा अपने दादाजी से इंद्रप्रस्थ की कहानी सुनती है.जिसके बाद उसके दिमाग में यह बात घरकर जाती है कि दिल्ली जिसकी, देश उसका.फिल्म में इंदिरा गांधी के प्रारंभिक वर्षों को दिखाया गया है और दिखाया गया है कि किस प्रकार इंदिरा शुरुआत में थी,जो लोगों की भलाई के बारे में सोचती थी लेकिन फिर कैसे पावर ने उसे एक तानाशाह में बदल दिया था. फिल्म इमरजेंसी के साथ -साथ बांग्लादेश युद्ध, ऑपरेशन ब्लू, खालिस्तानी आंदोलन, इंदिरा गांधी की हत्या को भी सामने लेकर आती है. फिल्म इंदिरा गांधी के निजी रिश्तों को भी हाईलाइट करती है और पक्ष-विपक्ष के नेताओं को भी.
फिल्म की खूबियां और खामियां
लार्जर देन लाइफ शख्सियत पर फिल्मों की दिक्कत यह होती है कि फिल्म मेकर उनकी कहानी दिखाते हुए क्या दिखाने कि जद्दोजहद में सबकुछ दिखा देते है. जिस वजह से फिल्म किसी के साथ न्याय नहीं कर पाती है. ऐसा इस फिल्म के साथ भी हुआ है. ढाई घंटे की इस कहानी में हर 8 वें मिनट पर इंदिरा गांधी की जिंदगी के किसी और किस्से पर फोकस करने लग जाती है. जिससे फिल्म किसी भी पहलू के साथ न्याय नहीं कर पायी है .इसके साथ ही इमरजेंसी के मुद्दे को अब तक कई फिल्मों, किताबों और डॉक्यूमेंट्री में दिखाया जा चुका है . फ़िल्म ऐसे किसी भी बात को नहीं सामने ला पायी है, जो अब तक दिखाया नहीं गया हो . फ़िल्म इमरजेंसी के अध्याय पर भी इंटरवल के ठीक पहले ही आती है. फिल्म का शीर्षक भले ही इमरजेंसी है, लेकिन फिल्म उसकी नहीं देश के कद्दावर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जर्नी है. उनकी सोच और समझ की जटिलताओं को भी सामने लाती है.अमेरिकन राष्टपति के सामने सशक्त ढंग से सामने आने वाला दृश्य, इंदिरा गाँधी की हत्या वाला दृश्य हो या फिर बांग्लादेश वॉर वाले सीन ये जरूर अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म के कमजोर पहलुओं में देश की महान शख्सियतों को गाने पर लिप सिंक करने वाला सीन अखरता है. ये पहलू इसे टिपिकल बॉलीवुड फिल्म बनाता है.फ़िल्म प्रोस्थेटिक के मामले में अव्वल है.सिनेमेटोग्राफी में उस कालखंड को बखूबी उकेरा गया है.
अभिनय में कंगना ने दिखाया फिर दम
अभिनेत्री कंगना रनौत ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका में खुद को झोंक दिया है. यह कहना गलत ना होगा. लुक,बोलचाल,चेहरे के एक्सप्रेशन और बॉडी लैंग्वेज से उन्होंने पर्दे पर इंदिरा गांधी की भूमिका को जीवंत किया है. अभिनेता विशाक सिंह ने संजय गांधी की भूमिका में अच्छा काम किया है.दिवंगत अभिनेता सतीश कौशिक ने जगजीवन राम के किरदार में एक बार फिर अपनी योग्यता साबित की है.श्रेयस तलपड़े और अनुपम खेर के किरदार पर कहानी में ज्यादा काम नहीं किया गया है ,जिस वजह से वह औसत रह गए हैं. महिमा चौधरी, मिलिंद सोमन अपनी भूमिका में जमे हैं. बाकी के किरदारों का काम भी अच्छा है.
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