वेब सीरीज- गुल्लक 3
निर्देशक-पलाश वासवानी
कलाकार- जमील खान,गीतांजलि कुलकर्णी, वैभव राज गुप्ता,हर्ष मयार,सुनीता राजभर और अन्य
प्लेटफार्म-सोनी लिव
रेटिंग-साढ़े तीन
Gullak 3 Review: वेब सीरीज “गुल्लक” मध्यम वर्गीय परिवार की ज़िंदगी के छोटे छोटे किस्सों को बयां करती ऐसी कहानी रही है. जहां रील और रियल के बीच का अंतर धुंधला पड़ जाता है. इसी खासियत के साथ गुल्लक का तीसरा सीजन भी दस्तक दे चुका है.
कहानी पर आए तो मिश्रा जी के परिवार के अन्नू मिश्रा (वैभव) कमाऊ सपूत बन गए हैं, यानी उनकी नौकरी लग गयी है. मिश्रा परिवार की कमाई दुगुनी हो गयी है ? खर्चे भी कम नहीं हुए हैं. अन्नू मिश्रा के अपने सपने भी हैं. जो नयी नयी नौकरी लगने के बाद हर युवा के होते हैं. संतोष मिश्राजी ( जमील खान), लगातार अपना पासबुक चेक कर रहे हैं कि आखिर अमन का एडमिशन साइंस में कैसे हो. संतोष मिश्रा ही परेशान नहीं है. अमन मिश्रा (हर्ष) भी हैं, उन्हें साइंस नहीं आर्ट्स पढ़ना है लेकिन टॉपर है भला आर्ट्स कैसे पढ़ सकता है, तो अमन मिश्रा की अपनी जद्दोजहद चल रही है. शांति ( गीतांजलि कुलकर्णी) घर को संभालने में लगी हैं.
थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत में जुटा यह मिडिल क्लास इस बार अपने सबसे बुरे दौर से भी गुज़र रहा है. इसकी वजह क्या है, किस तरह से मिश्रा परिवार इससे निकलता है. यह आपको कहानी देखने के बाद ही पता चलेगी. इस बार कहानी में फुर्तीली की एंट्री हुई है,मिश्राजी के दोस्त की बेटी है शादी के लिए आयी है. कुलमिलाकर इस बार मिश्रा परिवार गुदगुदाने के साथ साथ इमोशनल भी कर गया है. जो इस सीरीज के प्रभाव को और गहरा बनाता है.
गुल्लक की खासियत इसका लेखन रहा है और लेखक दुर्गेश सिंह एक बार फिर इस सीजन कामयाब रहे हैं. जिस तरह से यह शो लिखा गया है. यह परिवारों को करीब लाता है. जिंदगी में परेशानियां हैं, जिम्मेदारियां हैं, लेकिन अपनों के बीच ही खुशियां हैं, इसे छोटे-छोटे दृश्यों से ही सार्थक रूप से स्थापित किया गया है. मिडिल क्लास के ताने,उलाहने और तौर तरीकों को भी बखूबी दृश्यों के ज़रिए लाया गया है. फुर्तीली के किरदार के ज़रिए जिस तरह से गुल्लक एक बड़ी बात बहुत आसानी से कह जाती है. वह भी दिलचस्प है.
खामियों की बात करें तो पहले के दो एपिसोडस नयापन लिए नहीं है. तीसरे एपिसोड्स से कहानी रफ्तार पकड़ती है. और फिर पांचवे एपिसोड तक पहुंचते पहुचते दिल को छू जाती है. हां सत्यनारायण कथा के दृश्य को गढ़ने की चूक रह गयी है.
अभिनय के पहलू पर बात करें तो गीतांजलि कुलकर्णी, जमील खान, वैभव राज गुप्ता और हर्ष मायर पूरी तरह से अपने किरदार से इस कदर रच बस गए हैं कि वह असल परिवार की तरह लगते हैं. उनके किरदार की पहचान ही उनकी असल पहचान लगती है. उनकी बातचीत इतनी नेचुरल है कि कई बार सीरीज देखते हुए एहसास ही नहीं होता है कि इसे किसी कैमरे के लिए शूट किया गया है. बीते सीजन की तरह सभी किरदारों ने इस सीरीज भी बखूबी अपनी छाप छोड़ी है लेकिन वैभव राज गुप्ता इस सीजन खास कर गए हैं.
इस सीजन उनके किरदार में बदलाव आया है और इसे उन्होंने अपने बॉडी लैंग्वेज, संवाद से लेकर आंखों से भी दर्शाने की कोशिश की है. वह काबिलेतारीफ है. हर्ष की भी तारीफ करनी होगी. केतकी कुलकर्णी और विश्वनाथ चटर्जी भी अपनी भूमिकाओं में न्याय करते हैं. सीरीज की सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप हैं तो संवाद आम आदमी को बखूबी परदे पर ले आए हैं क्योंकि वो आम बोलचाल की भाषा में गहरी बात कह जाते हैं.
Son Of Sardar 2 Movie Review:टुकड़ों में फिल्म एंटरटेन करती है
Dhadak 2 Movie Review :दिल को छू जाती है दलित संघर्ष पर बनी यह लव स्टोरी फिल्म
Sarzameen Movie Review:इस सरजमीन से दूर रहने में ही है फायदा..
Saiyaara Movie Review:इस इमोशनल प्रेम कहानी में म्यूजिक और कलाकारों का परफॉरमेंस है मैजिक