फिल्म – केसरी वीर
निर्देशक – प्रिंस धीमान
निर्माता – कनुजी चौहान
कलाकार -सूरज पंचोली, सुनील शेट्टी,विवेक ओबेरॉय,आकांक्षा शर्मा,बरखा बिस्ट, हिमांशु मल्होत्रा,अरुणा ईरानी और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -डेढ़
kesari veer review :गुमनाम नायकों की कहानियां जिन्हें इतिहास के पन्नों में भले ही जगह नहीं मिली, लेकिन उनकी वीरता ,बहादुरी और बलिदान किसी भी लोकप्रिय नायक से कम नहीं है.पिछले डेढ़ दशक से इंडस्ट्री में प्राथमिकता से ऐसी कहानियां कही जा रही हैं.फिल्म केसरी वीर ऐसे ही नेक इरादे से बनी है. जो महान योद्धा हमीर जी गोहिल की कहानी कहती है.उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रतीक मंदिर सोमनाथ की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. इस फिल्म को बनाने के इरादे जितने नेक थे.वह परदे पर उस तरह से एक्सक्यूट नहीं हो पाया है .कुल मिलाकर कमजोर पटकथा और फिल्म का सतही ट्रीटमेंट एक महान शौर्य गाथा के साथ न्याय नहीं कर पाया है.
धर्म के रक्षक की है कहानी
फिल्म की कहानी हिन्दू आस्था के प्रतीक में से एक सोमनाथ मंदिर की रक्षा पर आधारित है इसलिए कहानी की शुरुआत उसी से होती है. शरद केलकर के वॉइस ओवर में यह बताया जाता है कि यह मंदिर खुद भगवान चंद्रदेव ने बनाया था. उसके बाद कहानी 14 शताब्दी में चली जाती है. तुगलक शासक हिन्दुओं पर तरह -तरह के अत्याचार कर रहे हैं लेकिन उन अत्याचारों से आम हिन्दुओं को बचाने के लिए राजकुमार हमीर जी गोहिल (सूरज पंचोली ) हैं. तुगलकों के इस अत्याचार से लोहा भील समुदाय और उनके प्रमुख वेगड़ा (सुनील शेट्टी ) भी ले रहे हैं.सोमनाथ मंदिर के खजाने को लूटने और हिन्दुओं की आस्था पर चोट पहुंचाने के इरादे से जब क्रूर और अत्याचारी तुगलकी सेनापति जफर (विवेक ओबेरॉय ) मंदिर की ओर बढ़ता है तो किस तरह से वीर हमीर जी गोहिल और वेगड़ा अपने प्राणों की आहुति देकर भी मंदिर की रक्षा करने की कोशिश करते हैं.यही कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर हिन्दू आस्था का केंद्र रहा है.इस मंदिर पर एक नहीं बल्कि 17 बार आक्रमण हुए हैं.ऐसे में केसरी वीर एक अहम फिल्म बन जाती है, जो दर्शकों के पास तुगलक आक्रमण की कहानी को कहानी सामने लेकर आती है.यह कहानी गर्व के साथ -साथ भावुक कर देने का माद्दा रखती थी,लेकिन फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले इतना कमजोर है कि यह भावनाएं परदे पर नहीं आ पायी है. फिल्म में जो रोमांटिक ट्रैक है. वह भी कहानी में कुछ विशेष जोड़ नहीं पाया है.इस फिल्म के वीएफएक्स की बात करें तो इसमें नकल की छाप साफ़ तौर दिखती है. फिल्म के सेट्स भंसाली की फिल्मों की सस्ती कॉपी रह गए हैं तो पहाड़ और झरने के दृश्य बाहुबली का कॉपी पेस्ट है. फिल्म की कहानी सोमनाथ मंदिर की रक्षा पर है,लेकिन फिल्म में सोमनाथ के मंदिर को चंद झलकियों में ही दिखाया है. क्रिएटिव लिबर्टी के सहारे ही सही मंदिर की भव्यता को डिटेलिंग के साथ दिखाने की ज़रूरत थी.फिल्म के एक्टर सूरज पंचोली ने प्रभात खबर के साथ इंटरव्यू में बताया था कि इस फिल्म की शूटिंग छावा के साथ ही हुई है लेकिन क्लाइमेक्स में सैनिकों की भीड़ के साथ अकेले भिड़ने वाला दृश्य छावा की ही याद दिलाता है.मराठा वॉरियर की तरह गुरिल्ला युद्ध शैली भी इस फिल्म में अपनायी गयी है.बीजीएम इस फिल्म के अनुभव को खास बनाने के बजाय शोर ज्यादा साबित हुआ है.गीत संगीत महादेव को समर्पित होने के साथ -साथ गुजराती संस्कृति की छाप लिए हैं. यह फिल्म का अच्छा पहलू है. फिल्म के संवाद भी स्क्रीनप्ले की तरह कमजोर रह गए हैं , जबकि इस तरह की फिल्मों में संवाद की अहम भूमिका होती है.
कमजोर स्क्रीनप्ले ने किरदारों को भी किया कमजोर
अभिनेता सूरज पंचोली ने इस फिल्म से फिल्मों में वापसी की है. वे योद्धा की भूमिका में अपनी बॉडी और स्क्रीन प्रेजेंस में जंचते हैं,लेकिन अभिनेता के तौर पर उन्हें अपने एक्सप्रेशन पर और काम करने की जरूरत है. अभिनेत्री आकांक्षा शर्मा को भी खुद पर और मेहनत करनी होगी.विवेक ओबेरॉय अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं लेकिन उनकी भूमिका में पद्मावत के रणवीर सिंह की छाप भी दिखती है. इससे इंकार नहीं है.सुनील शेट्टी अपनी भूमिका जमें हैं. हिमांशु मल्होत्रा सहित बाकी का अभिनय ठीक ठाक है.
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