फ़िल्म – मालिक
निर्माता – कुमार तौरानी
निर्देशक -पुलकित
कलाकार – राजकुमार राव,अंशुमान पुष्कर,मानुषी छिल्लर ,स्वानंद किरकिरे ,सौरभ शुक्ला ,हुमा कुरैशी,सौरभ सचदेवा, प्रोसेनजीत और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग – दो
maalik movie review :मौजूदा दौर सिनेमाघरों में लार्जर देन लाइफ का है. शायद यही वजह है कि हिंदी सिनेमा में अपनी रियलिस्टिक फ़िल्मों के लिए पहचाने जाने वाले राजकुमार राव आज रिलीज हुई फ़िल्म मालिक में ऐसा कुछ कर रहे हैं, जो अब तक के किए गए उनके सिनेमा से बिल्कुल उलट है.यह राजकुमार राव के कैरियर की पहली फुल फ़्लेज्ड एक्शन फ़िल्म है .जिसमें जमकर खून खराबा और मार काट है. राजकुमार राव ने अपने अभिनय से पर्दे पर भौकाल बखूबी उकेरा है,लेकिन कमजोर कहानी और ट्रीटमेंट उसके साथ न्याय नहीं कर पायी है.
गैंगस्टर ड्रामा वाली वही पुरानी है कहानी
फ़िल्म की कहानी 80 के दशक के इलाहाबाद में सेट है .जहां के सिनेमाघरों में एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन का बोलबाला है तो शहर पर मालिक (राजकुमार राव ) का दबदबा है .सारे टेंडर निकलने से पहले मालिक के नाम हो जाते हैं . पुलिस और नेता भी चुप्पी साधे है,लेकिन जल्द ही अपनी ही चुप्पी विधायक मल्हार सिंह ( स्वानंद किरकिरे) को अखरने लगती है क्योंकि उसे समझ आ जाता है कि मालिक का भौकाल जल्द ही उसका काल ले आयेगा.वह लाइसेंस धारी गुंडे एसपी प्रभु दास ( प्रोसेनजीत)को इलाहाबाद बुलाता है ,जिसने अब तक 98 एनकाउंटर किए हैं. इसमें मालिक के विरोधी दबंग चंद्रशेखर ( सौरभ सचदेवा ) को भी वह शामिल करता है . सिर्फ यही नहीं मालिक के सिर पर जिस बाहुबली नेता शंकर सिंह ( सौरभ शुक्ला ) का हाथ अब तक था. अब वह भी इस षड्यंत्र में मल्हार के साथ है .क्या ये मिलकर मालिक का खात्मा कर पायेंगे या मालिक के भौकाली सबके सिर पर काल बनकर नाचेगी.आगे की कहानी यही है .
फ़िल्म की खूबियां और खामियाँ
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो यह एकदम रटी रटायी है .ऐसी गैंगस्टर ड्रामा वाली कहानी हमने वास्तव से रईस तक कई सौ बार देखी है .इस फ़िल्म की कहानी भी बहुत हद तक वैसी है . कहानी के सब प्लॉट्स में दीपक से मालिक बनने की जर्नी को जिस तरह से दिखाया गया है .वह आपको मालिक के प्रति इमोशनल जुड़ाव नहीं कर पाया है . दीपक के अपराध से जुड़ने की ठोस वजह नहीं दी गई है .जमींदारों ने दीपक के पैर ना छूने पर ऐसा करवाया था .यह स्क्रीनप्ले में मिसिंग है तो फ़िल्म के जो भी सरप्राइज एलिमेंट हैं. वह भी ओरिजिनल नहीं है इसलिए फ़िल्म देखते हुए समझ आ जाता है कि मालिक की पीठ में कौन छुरा मारेगा .फ़िल्म की यूएसपी की बात करें तो वह राजकुमार राव ही हैं . जो आपको फ़िल्म से जोड़े रखते हैं.वैसे फ़िल्म का फर्स्ट हाफ अच्छा है.शुरुआत में फ़िल्म उम्मीद भी जगाती है,लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है.सेकेंड हाफ में कहानी लड़खड़ा गई जिस तरह का भौकाल मालिक का बनाया गया थ . वैसा क्लाइमेक्स नहीं बन पाया है .निर्देशक पुलकित को प्रोसेनजीत के किरदार मजबूत बनाना था . उनकी एंट्री ही इस बात से होती है कि मालिक के खात्मे के लिए उसे स्पेशली लखनऊ से इलाहाबाद बुलाया गया है. फ़िल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म का एक्शन दमदार है . डायलॉग भी जानदार है . सिनेमेटोग्राफी उस दौर को बखूबी पर्दे पर उकेरती है. गीत संगीत कहानी के साथ न्याय करता है .सीक्वल की भी गुंजाईश छोड़ी गयी है
राजकुमार फ़िल्म की यूएसपी
इस फ़िल्म की यूएसपी की बात करें तो राजकुमार राव का अभिनय है .वह पहली बार फुल फ़्लेज्ड गैंगस्टर के रोल में दिखें हैं . अपने किरदार को उन्होंने अपने बॉडी लैंग्वेज और संवाद से बखूबी जिया है . उनका अभिनय ही है , जो फ़िल्म को बाँधे रखता है . राजकुमार के बाद आयुष्मान पुष्कर की तारीफ़ बनती है. सौरभ सचदेवा ने भी अपनी छाप छोड़ी है . प्रोसेनजीत जैसे समर्थ अभिनेता के साथ फ़िल्म न्याय नहीं कर पायी है . उनका किरदार बहुत कमजोर लिखा गया है .मानुषी के लिए फ़िल्म में करने को ज़्यादा कुछ नहीं था .सौरभ शुक्ला चित परिचित इमेज में दिखें हैं .बाक़ी के किरदारों ने भी अपनी – अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है .
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