फिल्म – द डिप्लोमैट
निर्माता -जॉन अब्राहम
निर्देशक – शिवम् नायर
कलाकार – जॉन अब्राहम,सादिया खतीब, जगजीत संधू,शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा ,रेवती, भवानी मुजम्मिल ,अश्वत्थ भट्ट और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग – तीन
the diplomat movie review :देशभक्ति और जासूसी की कहानियों वाली फिल्में अभिनेता जॉन अब्राहम की निर्माता के तौर पर पहली पसंद के तौर पर देखी गयी हैं. उसमें अगर कहानी सच्ची घटना पर आधारित हो, तो फिर क्या कहने.इस शुक्रवार सिनेमाघरों में रिलीज हुई जॉन अब्राहम की फिल्म द डिप्लोमैट इसी कैटेगरी में शामिल होती है. सत्य घटना पर आधारित इस दिल दहला देने वाली कहानी को निर्देशक शिवम् नायर ने रियलिस्टिक तरीके से पेश किया है. जो इस सच्ची घटना पर आधारित फिल्म को खामियों के बावजूद विश्वसनीय बना गया है.
सच्ची घटना पर आधारित है कहानी
कहानी 2017 की है. सिंगल मदर उज्मा अहमद (सादिया खतीब ) काम के सिलसिले में भारत से मलेशिया गयी थी और वहां पर उसकी मुलाक़ात पाकिस्तानी मूल के ताहिर (जगजीत संधू ) से होती है. दोनों के बीच जल्द ही दोस्ती और फिर प्यार हो जाता है. उज्मा को उसी वक़्त मालूम होता है कि भारत में उसकी बेटी थैलिसीमिया की बीमारी का शिकार हो गयी है. ताहिर उज्मा को अपने प्यार और उसकी बेटी के इलाज का वास्ता देकर उसे उसके मुल्क पाकिस्तान आने को कहता है. उज्मा पाकिस्तान के खैबर पहुँच जाती है. खैबर में पहुंचने के बाद ताहिर उज्मा का बलात्कार करता है. उसे बेचने तक की कोशिश भी करता है, लेकिन बाद में उसके साथ निकाह कर लेता है. निकाह के नाम पर उज्मा की जिंदगी सेक्स स्लेव्स वाली हो जाती है.उज्मा को यह भी मालूम पड़ता है कि ताहिर ने और भी कई महिलाओं से निकाह किये हैं और सभी की जिंदगी गुलामों से बदतर है. उज्मा किसी तरह पाकिस्तान में मौजूद भारतीय दूतावास में पहुंचती है.जहां पर वह मदद की भीख मांगती है. डिप्टी कमिश्नर जे पी (जॉन अब्राहम ) और उनकी टीम मदद के लिए एकजुट होती है,लेकिन ताहिर और उसके दहशतगर्द साथी यह नहीं होने देंगे. किस तरह से उज्मा की भारत वापसी होती है. यह उसी की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है. बैकड्रॉप में हिंदुस्तान और पाकिस्तान हैं,लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट अलग है. हर दूसरी हिंदी फिल्म की तरह हर दूसरे संवाद में पाकिस्तान को कोसा नहीं गया है. फिल्म पाकिस्तान के लोगों को मददगार के तौर पर भी दिखाती है. हां फिल्म चुटीले अंदाज में कुछ संवादों के जरिये पाकिस्तान को आइना दिखाने से भी नहीं चूकी है,लेकिन फिल्म का मुख्य फोकस दूसरे देशों में फंसे लोगों के दर्द को दिखाना है और यह भी बताना कि डिप्लोमैट किस तरह से अपनी जान को जोखिम में रखकर दूसरे देश की धरती पर काम करते हैं. यह एक थ्रिलर फिल्म है. धीमी गति से शुरू होती है और धीरे-धीरे बढ़ती है. फिल्म के शुरुआत में जॉन का किरदार जिस तरह से उज्मा के किरदार को शक की नजर से देखता है. एक बार के लिए उज्मा पर शक भी होने लगता है क्योंकि कहानी की शुरुआत ही ऐसी हुई थी. फिल्म के क्लाइमेक्स में रोमांच को बढ़ाया गया है, जो फिल्म को मजेदार बना गया है. स्क्रिप्ट से जुडी खामियों की बात करें तो यह सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है, लेकिन दर्शक के तौर पर आप परदे पर कुछ और ट्विस्ट और टर्न भी कहानी में चाहते हैं .इसके साथ ही उज्मा अहमद की भारत से जुड़ी फैमिली को भी दिखाने की जरूरत महसूस होती है. खामियों में जॉन का लुक एक पहलू है, जो कई बार परदे पर बनावटी ज्यादा लगता है. फिल्म के दूसरे पहलुओं में फिल्म की सिनेमेटोग्राफी में पाकिस्तान को बखूबी परदे पर जीवंत किया गया है. सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म में सुषमा स्वराज,उज्मा अहमद और जे पी सिंह के वास्तविक फुटेज का इस्तेमाल किया गया है, जो फिल्म की विश्वसनीयता को और बढ़ा जाते हैं. फिल्म का गीत संगीत कहानी के साथ न्याय करता है.
अपनी इमेज से अलग अंदाज में जॉन
अभिनय की बात करें जॉन अब्राहम अपनी एक्शन इमेज से बिलकुल अलग छवि में नजर आये हैं. उन्होंने अपनी बॉडी लैंग्वेज और आवाज में बदलाव कर किरदार को बखूबी परदे पर लाया है.सादिया खतीब का काम उम्दा है. उन्होंने अपने किरदार से जुड़े दर्द और दहशत दोनों को सामने लाया है. दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की भूमिका में अभिनेत्री रेवती ने अपनी छाप छोड़ी है. फिल्म में उज्मा के शौहर और उसके दोस्त के किरदार में नजर आए भवानी मुजम्मिल दोनों ही एक्टर्स ने कमाल का काम किया है. वह एक्टर नहीं बल्कि रियल किरदार ही नजर आते हैं. अश्वत्थ भट्ट भी अपनी भूमिका में जमें हैं .कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. बाकी के एक्टर्स ने भी अच्छा काम किया है.
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