फ़िल्म- सत्यमेव जयते 2
निर्देशक- मिलाप झवेरी
कलाकार- जॉन अब्राहम, दिव्या खोंसला कुमार, गौतमी कपूर, दया शंकर पांडेय,जाकिर हुसैन और अन्य
रेटिंग-डेढ़
मसाला फिल्मों के नाम पर कहानी और किरदारों के साथ मनमानी हिंदी सिनेमा में नयी नहीं है. इसी का ताजा उदाहरण फ़िल्म सत्यमेव जयते 2 बनी है. फ़िल्म 70 और 80 के दशक के कई फार्मूला फिल्मों को समेटे हुए हैं, लेकिन दो दशकों का मसाला भी इस फ़िल्म को इंटरटेनिंग नहीं बना पाया है.
सत्यमेव जयते 2 फिल्म की कहानी की बात करें तो गृहमंत्री सत्य बलराम आज़ाद (जॉन अब्राहम) विधान सभा में एंटी करप्शन बिल पास करवाने की कोशिश कर रहे हैं . जो करप्शन की वजह से अपनी दुकान चला रहे हैं. वे ये बिल पास नहीं होने देते हैं, तो सत्य बलराम शहंशाह वाले मोड पर चले जाते हैं और सभी करप्शन करने वालों को चुन चुन कर मौत की घाट उतारते हैं. इन हत्याओं की पता लगाने की जिम्मेदारी एसपी जय आज़ाद को मिलती है.जो सत्य का भाई है. क्या होगा जब दोनों भाई आमने सामने आएंगे.
कहानी का ट्विस्ट सिर्फ यही नहीं है बल्कि इनदोनो जुड़वां भाइयों के पिता दादा साहेब बलराम ( जॉन अब्राहम) की मौत भी एक रहस्य है. एक मां भी है जो लाचार है. क्या दोनों भाई एक होकर करप्शन को खत्म कर पाएंगे और अपने पिता की हत्या का बदला ले पाएंगे. यही सत्यमेव जयते 2 फ़िल्म की कहानी है और जैसे ही सबको पता है हैप्पी एंडिंग तक फ़िल्म पहुंच भी जाती है.फ़िल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा ठीक है.
सत्यमेव जयते 2 का सेकेंड हाफ से फ़िल्म बोझिल हो जाती है और क्लाइमेक्स तक मामला सरदर्द तक पहुंच गया है. क्लाइमेक्स में जॉन का किरदार जो भी परदे पर करता नज़र आ रहा है.वहां मामला हीरो से सुपरहीरो वाला पहुंच गया है. हीरो को सुपरहीरो बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है लेकिन पूरी फिल्म में कोई एक ढंग का विलेन नहीं है सुपर विलेन की तो बात ही दूर है.जो जॉन को चुनौती दे सकें.फ़िल्म बहुत ज़्यादा लाउड है. किरदार,संगीत से लेकर संवाद सबकुछ शोर शराबे में डूबे हुए हैं .
परदे पर ही शोर शराबा नहीं है बल्कि विषय में भी है. फ़िल्म में हर फार्मूले को डाला गया है. करप्शन, सत्ता की लालच, महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुद्दा, धार्मिक सहिष्णुता, सोशल मीडिया,आज का मीडिया सबकुछ. इतने ज़्यादा मसाले डालने से फ़िल्म का स्वाद और खराब हो गया है.
सत्यमेव जयते 2 फिल्म की अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म में जॉन ट्रिपल रोल में हैं. 70 और 80 के दशल की फिल्मों की तरह जॉन दो जुड़वां भाई और पिता की भूमिका को निभाया है. हल को जमीन पर पटका तो जमीन के दो टुकड़े हो गए.एक मुक्के से वे टेबल चूर चूर कर देते हैं. कुल मिलाकर वह एक्शन रोल में जमें हों लेकिन इमोशनल सीन में वह फिर कमज़ोर रह गए हैं.वह तीनों किरदारों में अपने अभिनय से विविधता लाने से चूकते हैं. दिव्या खोंसला ने इस फ़िल्म से अभिनय में वापसी की है.उन्हें अपने संवाद अदाएगी पर और काम करने की ज़रूरत है. जाकिर हुसैन,दयाशंकर पांडेय और गौतमी कपूर अपनी अपनी भूमिकाओं में जमें हैं.
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