Panchayat Season 4 Review: एंटरटेनिंग लेकिन एंटरटेनमेंट का नया बेंचमार्क स्थापित करने से गयी है चूक

पंचायत 4 देखने की प्लानिंग है तो पढ़ लें यह रिव्यु

By Urmila Kori | June 24, 2025 7:05 AM
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वेब सीरीज -पंचायत 4 

निर्माता -टीवीएफ 

निर्देशक -दीपक कुमार मिश्रा और अक्षत विजयवर्गीय 

कलाकार -रघुबीर यादव, नीना गुप्ता,जितेंद्र कुमार, सांविका,फैजल, चन्दन,दुर्गेश,सुनीता,पंकज झा,अशोक पाठक, बुल्लू ,स्वानंद किरकिरे और अन्य 

प्लेटफॉर्म -अमेजॉन प्राइम वीडियो

 रेटिंग – तीन 


panchayat season 4 review :वेब सीरीज पंचायत ओटीटी का बेहद लोकप्रिय शो रहा है.बीते साल मई महीने में इसके तीसरे सीजन ने इस कदर वाहवाही बटोरी थी कि चौथे सीजन ने साल पूरा होते ही दस्तक दे दिया है.सिर्फ यही नहीं  सीजन 4 पहले जुलाई महीने में रिलीज होने वाला था,लेकिन फैंस की भारी डिमांड पर इसे आज यानी 24 जून को रिलीज किया गया है. जो इस शो की लोकप्रियता की कहानी को खुद ब खुद बयां करता है.क्या नया सीजन लोकप्रियता की कसौटी पर खरा उतर पाया है? इस शो का बेंचमार्क जिस लेवल का है. उसके लिहाज इस सीजन कहानी कमजोर रह गयी है. कहानी ट्रेलर जितनी ही है,जिससे यह सीजन एक पायदान ऊपर नहीं जाता है हालांकि ग्रामीण जीवन की सादगी, कलाकारों के दमदार परफॉरमेंस और दिलचस्प संवाद की वजह से यह सीरीज एक बार फिर एंगेज और एंटरटेन करने में कामयाब जरूर हुई है 

चुनावी मुकाबले पर है पूरी कहानी 

सीरीज की कहानी की बात करें तो सीजन 3 जहां से खत्म हुई थी.उसके कुछ समय बाद यह नया सीजन शुरू हुआ है. सचिव जी (जितेंद्र कुमार ) के एग्जाम इस बार अच्छे हुए हैं. फुलेरा पहुंचे उनके मौसी के बेटे से यह बात मालूम पड़ती है. प्रधान जी (रघुबीर यादव )गोली काण्ड के बाद धीरे -धीरे रिकवर हो रहे हैं.प्रधानजी को गोली किसने मारी यह सवाल सीरीज में शुरूआती एपिसोड में कई बार पूछा गया है. शुरूआती एपिसोड में सवालों के घेरे में विधायक (पंकज झा ), भूषण (दुर्गेश कुमार )के साथ -साथ खुद सचिव जी भी आते हैं हालांकि इस सीजन में प्रधान जी पर गोली किसने चलवाई,इसका उत्तर मिल गया है,लेकिन इस सीजन का सबसे बड़ा सवाल फुलेरा पंचायत चुनाव का विजेता कौन होगा यह है. बाजी मंजू देवी (नीना गुप्ता )और क्रांति देवी (सुनीता )के बीच लगी है, जिसमें बनराक्षस (दुर्गेश कुमार )और उनकी टीम एड़ी चोटी का जोर लगा लगा रही है,तो प्रधान जी और उनकी टीम भी पीछे नहीं है. कोई सड़क की सफाई कर रहा तो कोई शौचालय की. कोई फुलेरा के लोगों को आलू मुफ्त में बांट रहा है ,तो कोई समोसे बंटवा रहा है. वोट पाने के लिए ये हर तरह प्रलोभन फुलेरा के वोटर्स को दे रहे हैं. किसकी होगी जीत. लौकी या कुकर इसके लिए आपको यह शो देखना होगा.

सीरीज की खूबियां और खामियां 

सीधी सादी  पंचायत की कहानी बीते सीजन प्रधान जी को गोली लगते ही एक अलग ही जॉनर में चली जाती है. सीजन 4 की बात करें तो  इमोशंस के साथ साथ खूब सारी राजनीति को भी जोड़ा गया है. सीरीज की कहानी पूरी तरह से फुलेरा पंचायत पर है.कहानी में इसके अलावा कोई महत्वपूर्ण  सब प्लॉट्स नहीं है. जिस वजह से शुरुआत के कुछ एपिसोड में यह आपको स्लो महसूस होती है.  तीन से चार एपिसोड जाने के बाद सीरीज रफ़्तार पकड़ती है क्योंकि इलेक्शन जीतने के लिए दोनों ही पक्ष कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं .जिसके बाद शो से पूरी तरह जुड़ाव हो जाता है, जो आखिर तक बरक़रार रहता है.सीरीज के ट्रेलर में स्पॉटलाइट में चुनावी जंग मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच में दिखाई जा रही थी,लेकिन आठ एपिसोड में इन महिला पात्रों से ज्यादा पुरुष पात्रों के बीच ही यह कहानी ज्यादा घूमती है.सीजन 3 की तरह क्लिफहैंगर पर इस बार कहानी खत्म नहीं हुई है.इलेक्शन का रिजल्ट आपको चौंकाता नहीं है क्योंकि उसका मूड़ रिंकिया के नानाजी के  किरदार ने पहले ही सेट कर दिया था.वैसे फुलेरा के पंचायत चुनाव का रिजल्ट जो भी रहा है. सब प्लॉट्स में प्रह्लाद चा को सांसद से टिकट का ऑफर मिलना आनेवाले सीजन में कहानी की अहम धुरी बनने वाला है. यह तय है.उम्मीद है कि नए सीजन में मेकर्स बेहद दिलचस्प कहानी के साथ आएंगे. पंचायत ड्रामा के साथ साथ अपनी हंसी और मस्ती के लिए भी जाना जाता है,इस सीजन भी कुछ सीक्वेंस मज़ेदार बन गए हैं. सांसद के घर पर विधायक का प्रधानजी की मण्डली को देख लेना ,कुकर ब्लास्ट,शौचालय धोने वाला वाला सीन रोचक बन पड़ा है.इमोशन इस सीजन भी भर कर है. रिंकिया के नानाजी के साथ -साथ बिनोद की ईमानदारी वाला सीन अच्छा बन पड़ा है.गीत संगीत की बात करें तो पिछला सीजन इसकी वजह से भी खूब सुर्ख़ियों में था. इस बार लापता लेडीज के डॉउटवा गीत के अलावा बॉलीवुड के दूसरे गानों का इस्तेमाल हुआ है लेकिन हिन्द के सितारा वाली बात नहीं बन पायी है.ठेठ देसीपन गीत संगीत से मिसिंग है.  पंचायत सीरीज का एक अलग ही परिवेश है और उसका अलग आकर्षण है, जो इस बार भी कहानी में सिनेमेटोग्राफी के साथ बखूबी जोड़ा गया है.बाकी के पहलू भी कहानी और किरदारों के साथ न्याय करते हैं.

कलाकारों ने एक बार फिर दिल लिया है जीत 

अभिनय की बात करें तो इस बात से सभी इत्तेफाक रखेंगे कि सीरीज को बेहद मजबूत कलाकारों का साथ मिला है. जिन्होंने अपने किरदारों को शिद्दत के साथ -साथ सहजता से निभाया है, जिससे वे कलाकार नहीं किरदार लगते हैं. जितेंद्र कुमार अपने किरदार अभिषेक की आंतरिक दुविधाओं को इस बार भी बखूबी पर्दे पर पेश करते हैं. नीना गुप्ता और रघुबीर यादव अपने आकर्षण और नेचुरल ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री से इस सीरीज को अलग ही आयाम दिया है. फैजल, चन्दन,सुनीता और पंकज झा इस बार भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.दुर्गेश कुमार और अशोक पाठक की भी तारीफ़ बनती है.इस सीजन बिनोद का स्क्रीन टाइम बढ़ा है. उन्होंने फिर अपने परफॉरमेंस से साबित किया है कि मेकर्स का उनपर क्यों भरोसा बढ़ा है. बुल्लू कुमार,सांविका सहित बाकी के कलाकार भी पूरी तरह से अपने किरदार में रच बस कर रुलाते, हंसाते, गुस्सा दिलाते और दिल की धड़कन बढ़ाते नजर आये हैं.

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