लखनऊ: 17 साल का आशुतोष कुमावत आर्मी में भर्ती होने के लिए ग्राउंड में दौड़ लगाता था. 5 फरवरी को वह दौड़ लगा रहा था, लेकिन जैसे ही उसने तेज दौड़ना शुरू किया. अचानक बेहोश होकर गिर गया. साथियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब बहुत देर हो चुकी थी. डॉक्टरों ने बताया कि रास्ते में ही उसकी मौत हो चुकी थी.
11वीं कक्षा में पढ़ने वाले 17 वर्षीय आशुतोष कुमावत की मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया जा रहा है. सिर्फ आशुतोष ही नहीं कोरोना काल के बाद अचानक कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौतों में वृद्धि हुई है. किसी की दौड़ते हुए तो, किसी की डांस करते हुए, किसी कविता पाठ करते हुए, तो किसी की क्रिकेट में रन लेते समय अचानक हृदय गति रुक जाने से मौत होने के मामले सामने आ रहे हैं. इन मौतों के पीछे का कारण क्या है, इसको लेकर लगातार रिसर्च हो रहा है.
कार्डियक अरेस्ट या साइलेंट अटैक के ऐसे मामलों के पीछे के कारणों पर प्रभात खबर ने वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. राम शंकर उपाध्याय से बातचीत की. प्रो. राम Uppsala University Stockholm Sweden में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उन्होंने बताया कि विभिन्न स्टडी में यह प्रूव हो चुका है कि कोरोना काल के बाद कार्डियक अरेस्ट के मामले बढ़ रहे हैं.
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हार्ट में सूजन के केस मिले
प्रो. राम बताते हैं कि ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की एक रिसर्च के अनुसार यूनाइटेड किंगडम (UK) में हृदय से संबंधित बीमारियां 14 साल के पीक पॉइंट पर हैं. अमेरिका में हार्ट की बीमारियों के केस 15 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 25, नीदरलैंड 20, जापान 25, यूके 15 से 20 प्रतिशत केस बढ़े हैं. इसके पीछे कारण निकलकर आया है कि कोरोना के संक्रमण और फिर वैक्सीनेशन के बाद हार्ट में सूजन हो रही है. इस सूजन के कारण ही कार्डियक अरेस्ट के केस बढ़ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि बेसल यूनिवर्सिटी स्वीटजरलैंड ने 2023 में एक स्टडी की है. जिसमें पाया गया है कि हार्ट की ऊपरी लेयर पेरीकार्डियम, अंदर की तरफ की दूसरी लेयर मॉयोकार्डियम और भीतरी लेयर एंडोकार्डियम में कोरोना काल के बाद सूजन पाई जा रही है. यह सूजन इनमें से किसी भी लेयर में देखी जा रही है. स्टडी के अनुसार कोविड के पहले 10 लाख में चार लोगों में इस तरह के लक्षण मिलते थे. कोविड के बात ये संख्या बढ़कर 10 लाख लोगों में 1200 से 1300 हो गई है.
वैक्सीनेशन के बाद 800 गुना बढ़ी हार्ट की बीमारियां
प्रो. राम शंकर के अनुसार पहले कार्डियोलॉजिस्ट को ऐसे केस नहीं मिलते थे. लेकिन कोविड के बाद इनमें कई गुना वृद्धि हुई है. उन्होंने एक स्टडी का हवाला देते हुए बताया कि कोविड के बाद शुरुआत में सबसे पहले एमआरएनए वैक्सीन को एप्रूव किया गया था. ये आंकलन किया गया था कि एमआरएनए वैक्सीन से होने वाली हृदय से संबंधित बीमारियां 0.0035 प्रतिशत थी. लेकिन इस स्टडी में गणना में सामने आया कि वैक्सीन की सेकेंड डोज के बाद हार्ट से सबंधित मामले 2.8 प्रतिशत हो गए हैं. यानी कि एमआरएनए वैक्सीन की पुरानी गणना के अनुपात में अब रिस्क 800 गुना ज्यादा बढ़ गया है.
इसके पीछे के कारण
प्रो. राम ने बताया कि हार्ट में चार चैंबर हाते हैं. दाहिनी ओर राइट एट्रिअम और राइट वैंट्रिकल. बायीं ओर लेफ्ट एट्रिअम और लेफ्ट वेंट्रिकल. दाहिने चैंबर जिसे राइट एट्रिअम कहते हैं, वहां एसए नोड (साइनोएट्रिअल नोड) होता है. यह एक प्रकार का प्राकृतिक पेस मेकर है. जो एक समय-समय पर स्पंदन करता है. इसी से हार्ट संकुचित होता और नार्मल स्थिति में आता है. इन चैंबर के बीच में इंसुलेटिंग लेयर होती हैं. जिसे नॉन कंडिक्टिंग लेयर कहते हैं. हार्ट की कार्य विधि के अनुसार जो गतिविधि राइट में होनी चाहिए, वह कहीं और न हो. यह इंसुलेटिंग लेयर ही इसे रोकती है. हार्ट की ऊपरी लेयर पेरीकार्डियम, अंदर की तरफ की दूसरी लेयर मॉयोकार्डियम और भीतरी लेयर एंडोकार्डियम होती है.
कार्डियक अरेस्ट के मरीजों की बॉयोप्सी में मिला क्लू
कोरोना और वैक्सीनेशन से इन लेयर में ही सूजन आ गई है. इसे पेरीकार्डियम में पेरीकार्डिटिस, मॉयोकार्डियम में मायोकार्डिटिस, एंडोकार्डियम में एंडोकार्डिटिस कहते हैं. कार्डियक अरेस्ट से मौत के बाद शव की बायोप्सी की गई तो हार्ट की लेयर में सूजन मिली है. प्रो. राम बताते हैं कि एसए नोड अपनी एक्टिविटी करता है लेकिन सूजन के कारण उसकी रिद्म (Ahyth) बिगड़ जाती है. जिसे सिंसियम कहते हैं. जब रिद्म बिगड़ती है तो हार्ट के संकुचन और सामान्य होने की गति में बदलाव आ जाता है. इससे हार्टबीट (दिल की धड़कन) अनियमित (Arrhythmia) हो जाती है. ऐसे में जब व्यक्ति सामान्य से अधिक शारीरिक श्रम (Physical Activity) करता है तो, सूजन के कारण हार्ट को ऑक्सीजन पूरी नहीं मिल पाती है. इस स्थिति में पांच से सात सेकेंड के बाद ब्रेन फंक्शन बंद हो जाता है जिसके कारण व्यक्ती बेहोश हो जाता है और Ventricular fibrillation, कार्डियक अरेस्ट या हार्टफेल हो जाता है. यदि समय पर सीपीआर (Cardio Pulmonary Resuscitation) न मिले तो मरीज की मौत हो जाती है.
क्या करें
जब कोई व्यक्ति अचानक बेहोश हो जाए तो उसे सीपीआर देना चाहिए. यानी कि उसके सीने पर दोनों हाथों से एक मिनट में 100 से 120 बार प्रेशर देना है. ये प्रेशर जब तक देना होता है जब तक व्यक्ति फिर से होश में न आ जाए. क्योंकि हार्ट को रिबूट करने में (धड़कनें शुरू करने) करने में 330 सेकेंड लगता है. इसीलिए तब तक सीपीआर देते रहना चाहिए. जब तक वह होश में न आ जाए. इससे मरीज (Patient) को बचाया (Revive)किया जा सकता है.
प्रो. राम के अनुसार हार्ट की यह दिक्कत ईसीजी (ECG) जांच में पकड़ में नहीं आती है. इसके अलावा हार्ट की बीमारियों की जानकारी देने वाले 14 मार्कर में से 12 की वैल्यू नॉर्मल आती है. अन्य दो मार्कर कार्डियक ट्रोपोनिन (hs-cTnT)) और इंटरफिरॉनलेमडा टेस्ट से इस अनियमितता का पता लगाया जा सकता है. यदि हाईसेंसटिव कार्डियक ट्रोपोनिन (hs-cTnT)) का लेवल हाई है तो हार्ट में प्रॉब्लम हो सकती है. सामान्यत: टीपीएनटी का स्तर 3 नैनोग्राम पर लीटर होता है. लेकिन अनियमितता होने पर यह 5 से 17 नैनोग्राम पर लीटर होता है.
एक अन्य मार्कर इंटरफिरॉनलेमडा (Interferon Lambda) का स्तर यदि नार्मल से कम हो तो यह माना जा सकता है कि हार्ट में कोई दिक्कत है. क्योंकि इंटरफिरॉनलेमडा हार्ट में होने वाली सूजन को कम करने और उसमें हुई क्षति को ठीक करने में काम आता है. यदि हार्ट में क्षति होगी तो ट्रोपोनिन निकलेगा. ऐसे में इंटरफिरॉनलेमडा की भी जांच की जा सकती है. इससे पता चलेगा कि हार्ट को रिपेयर करने वाला एंजाइम नार्मल से कम है और कोई दिक्कत मरीज को है.
ये है सलाह
प्रो. राम शंकर उपाध्याय का कहना है कि सरकार इस इमरजेंसी से निपटने के लिए प्रयास करे. सरकार कार्डियोलॉजिस्ट्स को दिशा निर्देश जारी करे कि फर्स्ट एड के नाम पर कुछ दवाएं एप्रूव करें. जिससे इमरजेंसी में इसे कोई भी ले सके. क्योंकि हॉस्पटल पहुंचने पर भी यही दवाएं हार्टफेल या कार्डियक अरेस्ट में दी जाती हैं. इमरजेंसी दवाएं देने से इलाज मिलने में होने वाली देरी के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है.
प्रो. राम शंकर की सलाह देते हैं कि पानी में घोलकर पीने वाली डिस्प्रिन की दो टैबलेट कार्डियक अरेस्ट के मरीज को दी जा सकती हैं. इसके अलावा जीभ के नीचे रखनी वाली दवा (Sorbitrate 5mg) भी इमरजेंसी में दी जा सकती है. इससे मरीज की जान बचायी जा सकती है. इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति को हार्ट की प्रॉब्लम नहीं है लेकिन वह अनियमितता का पता लगाना चाहता है तो सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी (CT Coronary Angiography, CCTA) करा सकते हैं.
सीटी टेस्ट के साइड इफेक्ट नहीं होते और न ही मरीज को अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता होती है. यह अन्य हृदय टेस्टों के मुकाबले बेहतर है और ब्लॉकेज की पूरी जानकारी देता है. विशेषकर जिन लोगों को इनमें कोई भी लक्षण जैसे धमनियों में रक्त की आपूर्ति में रुकावट, सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द, चक्कर आना, परिवार में हृदय रोग का इतिहास हो तो उनको ये टेस्ट अवश्य कराना चाहिए. गौरतलब है कि आईसीएमआर ने भी एक स्टडी के बाद कोरोना संक्रमण का शिकार हुए लोगों को दिल के दौरे से बचने के लिए अधिक मेहनत से बचने की सलाह दी थी.
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