जागरूकता के नुकसान भी होते हैं, जानें क्या कहती है नयी स्टडी

नये रिसर्च से इस बात का खुलासा हुआ है कि, सोशल जस्टिस जागरूकता और मेंटल हेल्थ के बीच संबंधों होता है. नये रिसर्च से पता चलता है कि सोशल जस्टिस के इर्द-गिर्द क्रिटिकल डिस्कशन में अधिक लगे रहने के कुछ डाउनसाइड भी हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2024 3:10 PM
an image

आज पूरी दुनिया काफी कठिन दौर से गुजर रही है. दुनियाभर के अलग-अलग देश युद्ध, मौत, तबाही, बड़े पैमाने पर नस्लवाद, अल्पसंख्यकों के साथ उत्पीड़न और निरंतर लिंगभेद जैसी मानवीय समस्याओं से जूझ रहे हैं. समस्याओं की यह फेहरिस्त काफी लंबी है. इतना ही नहीं, विगत वर्षों में दुनिया ने सामूहिक रूप से कोविड-19 जैसी महामारी पर विजय प्राप्त की है. इस बीच एक नये अध्ययन से पता चला है कि सामाजिक रूप से ज्यादा जागरूक रहने से अवसाद की समस्या हो सकती है. स्कैंडिनेवियाई जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में एक फिनिश अकादमिक द्वारा किया गया यह नया शोध काफी दिलचस्प है. नये शोध से सामाजिक न्याय जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंधों का पता चलता है. नये शोध से पता चलता है कि सामाजिक न्याय के इर्द-गिर्द आलोचनात्मक चर्चा में अधिक लगे रहने के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं.

‘सजग’ होना- अक्सर उन लोगों के लिए एक अपमान के रूप में उपयोग किया जाता रहा है, जो अपने राजनीतिक झुकाव में प्रगतिशील हैं. नये अध्ययन के अनुसार, ऐसी सोच वाले लोगों में यह सजगता चिंता और अवसाद की भावनाओं को बढ़ा सकता है.

नये अध्ययन पर क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

डॉ एलएच हीरानंदानी अस्पताल, पवई, मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ ऑस्टिन फर्नांडीस मानना है कि भले ही यह नयी स्टडी महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों से जुड़े सिद्धांतों से विचलन के बीच मानसिक स्वास्थ्य बीमारियों के बीच संबंध को दर्शाती है, लेकिन इस स्थिति को गहराई से समझना और अधिक विस्तार से समझना बहुत जरूरी है. यह न केवल उन व्यवस्थित असमानताओं या सामाजिक मुद्दों को जानने और उनसे निपटने के बारे में है, जो चिंता और अवसाद पैदा करते हैं, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति इन अवधारणाओं के साथ कैसे बातचीत करते हैं और कैसे उनके अपने व्यक्तिगत अनुभवों का परिणाम उनके भावनात्मक स्वास्थ्य पर पड़ता है.

डॉ फर्नांडीस की मानें, तो कई लोग अन्याय और सामाजिक न्याय जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान बढ़चढ़ हिस्सा लेते हैं. इस तरह की चर्चाएं अक्सर धमकी भरी और तीखी हो जाती हैं. ऐसे प्रतिभागियों में मानसिक तनाव और चिंता ज्यादा देखने को मिलता है. साथ ही जो लोग आलोचना का सामना करते हैं या जिनमें सेल्फ कॉन्फिडेंस का अभाव होता है, वे अकेलापन और निराशा का अनुभव कर सकते हैं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है. ऐसे में भावनात्मक रूप से खुद की देखभाल करने के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है.

Also Read: Mental Health: वर्कप्लेस पर महिलाएं इस तरह मैनेज कर सकती हैं स्ट्रेस, जानें तरीका

मानसिक स्वास्थ्य लिए करें ये काम

अपनी सीमाएं तय करें

जब परेशान करने वाली खबरें और सोशल मीडिया सामग्री जब अत्यधिक बढ़ जाये, तो इनसे दूर बना लें. साथ ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल सीमित कर दें. सामाजिक मुद्दों से जुड़ने के लिए एक समय निर्धारित कर लें. साथ ही उन गतिविधियों को प्राथमिकता दें, जो आपको खुशी और आराम दे सकती हैं.

खुद के प्रति दयालु बनें

अपने प्रति दयालु बनें और पहचानें कि कभी-कभी अभिभूत या थका हुआ महसूस करना ठीक है. अपने आप से उसी सहानुभूति और समझ के साथ व्यवहार करें, जो आप समान चुनौतियों का सामना करने वाले अन्य लोगों के साथ करेंगे.

करीबी दोस्तों से मदद लें

अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में अपने करीबी दोस्तों, परिवार के सदस्यों या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से बातचीत करें. अपने विचारों और भावनाओं को उन लोगों के साथ साझा करें, जो आपको समझते हैं. जो आपकी बातों को काफी गंभीरता से सुनते हैं और उस समस्या का हल निकालने में मदद करते हैं.

Also Read: Self-Care Tips: खुल कर शेयर नहीं कर पाते अपने मन की बात, ये हो सकते हैं कारण

लचीला रुख अपनायें

अवसाद जैसी समस्या से निपटने के लिए आपको लचीला रुख अपनाना चाहिए. साथ ही तनाव प्रबंधन के लिए अपने भीतर कौशल विकसित करें. चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सचेतनता, सकारात्मक आत्म-बातचीत और समस्या-समाधान तकनीकों का अभ्यास करें. (प्रस्तुति: देवेंद्र कुमार)

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Life and Style

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version