कौन हैं बाजाऊ जनजाति?
बाजाऊ (Bajau) जनजाति को “सी नोमैड्स” यानी समुद्री खानाबदोश कहा जाता है. ये लोग पीढ़ियों से नावों पर जीवन बिता रहे हैं. कई परिवारों के पास स्थायी घर नहीं होते, बल्कि उनका नाव ही उनका आशियाना होता है. मछली पकड़ना, समुद्री भोजन इकट्ठा करना और गोताखोरी करना उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या है.
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विज्ञान भी हैरान
यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के एक शोध में सामने आया कि बाजाऊ लोगों की तिल्ली जो इंसान के पेट के ऊपर बांए ओर के हिस्से में होता है वह आम लोगों की तुलना में 50 प्रतिशत बड़ी होती है. यह अंग शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त को संग्रहित करता है और गहरे पानी में डाइविंग के दौरान उसे छोड़ता है. इसका मतलब यह है कि बाजाऊ बिना सांस लिए लंबे समय तक पानी में रह सकते हैं.
बाजाऊ की अनुवांशिक विशेषताएं
शोधकर्ताओं को उनके जीन में कुछ खास बदलाव मिले हैं, जो उन्हें अत्यधिक ऑक्सीजन की कमी में भी सामान्य बनाए रखते हैं. PDE10A और BDKRB2 जैसे जीन उनके शरीर को गहराई और दबाव के अनुकूल बना देते हैं.
समुद्र से गहरा रिश्ता
बाजाऊ लोगों के लिए समुद्र केवल जीवनयापन का माध्यम नहीं है. यह उनकी संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व का केंद्र है. वे समुद्र को एक जीवित प्राणी मानते हैं और इसलिए उसकी पूजा भी करते हैं. उनके लिए हर डाइव एक आध्यात्मिक अनुभव होता है.
खतरे में है पारंपरिक जीवनशैली
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश में बाजाऊ की पारंपरिक जीवनशैली खतरे में है. जलवायु परिवर्तन, मछलियों की घटती संख्या और आधुनिकीकरण की लहर ने उन्हें किनारों की ओर धकेल दिया है. अब कई युवा बाजाऊ जनजातियों के लोग स्थायी जीवन, शिक्षा और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जा रहे हैं.
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