कमजोर लोगों के संबंध में बाइबल का क्या नजरिया है
बाइबल की शिक्षाएं करुणा, सहानुभूति और विनम्रता पर आधारित हैं. उसमें कई बार यह दोहराया गया है कि ईश्वर की नजर में सभी मनुष्य समान हैं. वह कमजोर, निर्धन और पीड़ितों लोगों के साथ हमेशा खड़े रहते हैं. क्योंकि रोमियों 14:1 में कहा गया है कि जो कमजोर हैं, उन्हें अपनाओ, लेकिन उनकी कमजोरी पर बहस न करो.” इसका अर्थ है कि कमजोर व्यक्ति को न केवल अपनाया जाना चाहिए, बल्कि उसके विश्वास और स्थिति का सम्मान किया जाना चाहिए.
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दूसरों को नीचा समझना पाप क्यों है?
बाइबल के अनुसार, जो लोग स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरों को तुच्छ समझते हैं, वे आत्म-अहंकार के शिकार होते हैं. ईश्वर ऐसे लोगों को घमंड की श्रेणी में रखते हैं. क्योंकि नीतिवचन 14:31 में लिखा है “जो गरीब को सताता है, वह उसके रचयिता की निंदा करता है, पर जो गरीब पर दया करता है, वह उसका आदर करता है.” यानी किसी गरीब या कमजोर का अपमान करना, स्वयं परमेश्वर का अपमान करना है.
ईसा मसीह की दृष्टि में कौन महान है?
यीशु मसीह ने स्वयं कमजोरों, बीमार से पीड़ित लोगों, पापियों और समाज द्वारा तिरस्कृत लोगों को गले लगाया है. उन्होंने अपने उपदेशों और कार्यों से यह दिखाया कि परमेश्वर का राज्य उन्हीं के लिए है जो नम्र और दयालु हैं. वह दूसरों को कमतर नहीं समझते. क्योंकि मत्ती 5:3-5 में कहा गया है “धन्य हैं वे जो आत्मा में गरीब हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उनका है. धन्य हैं वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे.”
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