कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहे निवासनम्।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक के अनुसार, मूर्खता और युवावस्था कष्टदायक है. इस श्लोक में आगे एक और कष्ट का वर्णन मिलता है वह है किसी दूसरे के घर में रहना. आचार्य चाणक्य के मुताबिक व्यक्ति के जीवन में ये तीन कष्ट हैं. तो आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.
मूर्ख होना है कष्टदायक
आचार्य चाणक्य के अनुसार, मूर्खता किसी भी व्यक्ति के लिए एक बड़ी परेशानी है. मूर्ख व्यक्ति को अपने जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस तरह के इंसान को सही और गलत की समझ नहीं होती है और लोग फायदा उठा लेते हैं. चाणक्य नीति के मुताबिक जिस व्यक्ति के पास ज्ञान की कमी है ऐसे इंसान का जीवन कष्टों से भरा होता है.
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जवानी को क्यों माना गया है दुख?
जवानी व्यक्ति के जीवन का सबसे खास समय होता है. इस समय में ही व्यक्ति सबसे अधिक ऊर्जावान रहता है. आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में यौवन को एक कष्ट माना है. जवानी में व्यक्ति जोश से भरा होता है और ये बात इंसान को घमंडी बना देती है. जवानी के जोश के आगे व्यक्ति सामने वाले को कुछ नहीं समझता और अक्सर गलती कर बैठता है और इस बात का खेद जीवन भर रहता है.
सबसे बड़ा दुख क्या है?
चाणक्य नीति के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा दुख दूसरे के घर में रहना है. आचार्य चाणक्य मानते हैं कि दूसरों के घर में रहना अत्यंत कष्टदायक है क्योंकि व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता खो देता है. कोई भी काम उसे दूसरों से पूछ कर ही करना पड़ता है. इस तरह से जीवन जीना सबसे बड़ा दुख है.
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