Chanakya Niti: अगर आपकी भी है ये आदत तो तुरंत करें सुधार, वरना कच्चा चबा जाएंगे लोग

Chanakya Niti: अगर आप हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश करते हैं और किसी को ‘ना’ नहीं कह पाते हैं, तो ये आदत आपके आत्म-सम्मान को चोट पहुंचा सकती है. चाणक्य नीति के अनुसार अति विनम्रता आपको लोगों की नजरों में कमजोर बना देती है. चाहे ऑफिस हो, रिश्ते हों या समाज – हर जगह इस आदत का शोषण होता है. जानिए चाणक्य के श्लोक के जरिए क्यों जरूरी है ‘ना’ कहना सीखना और संतुलन बनाना.

By Sameer Oraon | July 17, 2025 4:39 PM
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Chanakya Niti: क्या आप हमेशा सभी को खुश रखने की कोशिश करते हैं? अच्छा बनने के लिए किसी को न नहीं कह पाते हैं तो आप हर जगह शोषण के शिकार होंगे. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि आचार्य चाणक्य हजारों साल पहले ही इसके बारे में अगाह कर दिया था. वैसे भी एक कहावत है सीधा पेड़ पहले कटता है. यह आज की तारीख में एक कड़ी सच्चाई है. इसलिए चाणक्य ने जिंदगी में संतुलन बनाने को कहा है. उन्होंने सपष्ट तौर पर कहा है कि विनम्र जरूरी है लेकिन स्वाभिमान से किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए. उनके नजर यह अच्छा गुण नहीं बल्कि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है.

क्या कहा गया है आचार्य चाणक्य की श्लोक में

आचार्य चाणक्य ने इस बारे में अपने श्लोक कहा है कि अति विनयम् दुष्टं लघयति, अति शौर्यम् च वैरिणं बिभेति।” इसका मतलब है कि अत्यधिक विनम्रता आपको दुष्टों की नजर में तुच्छ बना देती है. चाणक्य की मानें तो ऐसे लोग हर बार झुकते हैं, हर गलती पर माफी मांगते हैं, न चाहते हुए भी हर काम “हाँ” बोलकर कर लेते हैं. ऐसे लोगों को दुनिया नि:स्वार्थ नहीं, बल्कि मूर्ख समझने लगती हैं.

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कहां-कहां होता है इनका शोषण?

ऑफिस में किस तरह से होता है शोषण

जरूरत से अधिक विनम्रता लोगों का शोषण हर जगह पर होता है. चाहे वह ऑफिस हो या रिलेशनशिप. या फिर समाज में. आपने अक्सर देखा होगा जो दफ्तर में हर काम को चुप कर लेता है. किसी को न कहने की आदत नहीं है, उसे ही सबसे ज्यादा बोझ मिलता है. ऐसे लोगों की प्रोन्नति भी रूक जाती है क्योंकि प्रमोशन भी उन्हीं को मिलता है जो आत्मविश्वास से “ना” कहना जानते हैं.

रिश्ते में नहीं होती है आपकी कद्र

वहीं, अगर आप किसी के साथ रिश्ते में हैं तो सामने वाला पार्टनर आपकी भावनाओं की कद्र नहीं करता है. वह उन्हें ‘समझदार’ नहीं, बल्कि ‘कमजोर’ समझते हैं.

समाज में

अगर आप जरूरत से अधिक विनम्र हैं तो समाज उसे निर्णय न लेने सकने वाला इंसान समझता है. लोग उसकी चुप्पी को सहमति समझ लेते हैं, और जैसा चाहते हैं वैसे इस्तेमाल कर लेते हैं.

चाणक्य के श्लोक का अर्थ

संयमित विनम्रता ही श्रेष्ठ है. चाणक्य कभी विनम्रता के विरोधी नहीं थे. वे कहते हैं कि विनम्रता वहीं तक सीमित होनी चाहिए, जहां तक आत्म-सम्मान को ठेस न पहुंचे. हर जगह झुकने की आदत आपको लोगों की नजरों में गिरा सकती है. इसलिए, जहां जरूरत हो वहां ‘ना’ कहना सीखिए.

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