वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम् ।
भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बना:। ।
चाणक्य नीति के श्लोक के अनुसार, वृद्धावस्था में पत्नी की मृत्यु, धन भाई या रिश्तेदारों के हाथ में चला जाना और खाने के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाना पुरुष के लिए दुखदायी होता है.
पत्नी की मृत्यु
आचार्य चाणक्य के अनुसार, बुढ़ापे में पत्नी की मौत हो जाना किसी भी पुरुष के लिए कष्टदायक होता है. बुढ़ापे में जब व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है तब उसे सबसे अधिक अपने जीवनसाथी की जरूरत होती है. इस समय में जीवनसाथी का साथ में न होना व्यक्ति के लिए दुख का कारण होता है.
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धन किसी और के हाथ में जाना
धन जीवन जीने के लिए जरूरी होता है. चाणक्य नीति के अनुसार, अगर व्यक्ति का धन किसी और के हाथों में चला जाए तो ये व्यक्ति के जीवन में एक बहुत बड़ा दुख है. ऐसे में व्यक्ति को दूसरों के ऊपर निर्भर होना पड़ जाता है.
दूसरों पर निर्भर होना
चाणक्य नीति के मुताबिक, किसी व्यक्ति को भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़े तो ये एक बड़ी मजबूरी होती है. भोजन जीवन जीने के लिए एक मूलभूत जरूरत है और इसके लिए के दूसरों के ऊपर निर्भर होना व्यक्ति के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है और व्यक्ति के लिए दुख का कारण है.
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