Chhath Puja 2023: छठ महापर्व के चारों दिन का है खास महत्व, जानें हर दिन की क्या है मान्यता

Chhath Puja 2023: लोक आस्था के महापर्व छठ में सूर्योपासना के जरिये लोग सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं. भगवान भुवन सम्पूर्ण जगत में ऊर्जा, प्रकाश, शक्ति और चेतना के असीम स्रोत गति, प्रगति और विकास के वाहक हैं.

By Meenakshi Rai | November 15, 2023 6:05 PM
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Chhath Puja 2023 : नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू होता है इस बार 17 नवंबर से छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है. इस महापर्व में हर दिन का अपना अलग महत्व है.

इस पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. लोक आस्था के महापर्व छठ में सूर्योपासना के जरिये लोग सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्रार्थना करते हैं. बिना आडंबर प्रकृति से प्रेम , स्वच्छता और सामाजिकता से ओत-प्रोत छठ महापर्व सचमुच पूरी दुनिया में अनूठा है.

नहाय-खाय से होती है छठ पर्व की शुरुआत : नहाय-खाय का अर्थ है स्नान कर भोजन करना. शरीर को शुद्ध कर सूर्योपासना के लिए तैयार किया जाता है. व्रती नदी या तालाब में स्नान कर कच्चे चावल का भात, चनादाल और कद्दू (लौकी या घीया) प्रसाद के रूप में बनाकर ग्रहण करती हैं.

खरना या लोहंडा : खरना या लोहंडा 36 घंटे के निर्जला अनुष्ठान के संकल्प का दिन होता है इसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास कर संध्याकाल में पूजा कर प्रसाद ग्रहण करती हैं . मिट्टी के चूल्हे पर गाय के दूध और गुड़ से निर्मित खीर, मौसमी फलों का प्रसाद, व्रती द्वारा खुद बनाने की परंपरा है. मान्यता है कि ऐसा करने से व्रती का शरीर से लेकर मन तक शुद्ध हो जाता है.

अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य : केवल छठ में ही अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का प्रावधान है. ऐसी मान्यता है कि सायंकाल में सूर्यदेव और उनकी पत्नी देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है. जल में खड़े होकर सूप में फल, ठेकुआ रख कर अर्घ्य देने की परंपरा है.

उगते सूर्य को अर्घ्य : मान्यता है कि जल में कमर तक खड़े होकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई. सप्तमी तिथि को जल में कमर तक खड़े होकर व्रती भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं.इससे उनकी कुंडली में सूर्य मजबूत होते हैं.

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