बाल दिवस का इतिहास (Children’s Day History)
पंडित जवाबर लाल नेहरू ने अपने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था, “आज के बच्चे कल का भारत होंगे. जिस तरह से हम उनका पालन-पोषण करेंगे, उससे देश का भविष्य तय होगा.’ पं. जवाहरलाल नेहरू का वर्ष 1964 में निधन हो गया, और उनकी याद में, संसद ने उनके जन्मदिन को बाल दिवस समारोह के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव जारी किया. इससे पहले, भारत में बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता था.
जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद बाल दिवस के रूप में 14 नवंबर का दिन चुना गया
जब साल 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ, तो इसके बाद इस दिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया और इसके लिए 14 नवंबर का दिन चुना गया.
बाल दिवस का ये है महत्व (Importance of Children’s Day)
बाल दिवस जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ-साथ बच्चों के अधिकारों के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन बच्चों के समाजिक स्थिति को बढ़ने, उनके अधिकार और पढ़ाई को लेकर विशेष चिंतन किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि देश का विकास उन बच्चों के भविष्य पर टिका होता है. कोरोना महामरी के दौर में बच्चों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है. उनकी पढ़ाई, स्कूल और खेल पर इसका प्रभाव साफ देख जा सकता है.
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में रोचक बातें (Interesting Facts About Jawahar Lal Nehru)
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पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीर के एक पंडित परिवार से थे. उनकी दो बहनें थीं जिनका नाम विजय लक्ष्मी पंडित (बड़ी बहन) और कृष्णा हुथीसिंह (छोटी बहन) थीं.
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पंडित जवाहरलाल नेहरू को कभी भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, हालांकि उन्हें वर्ष 1950 और 1955 के बीच 11 बार नामांकित किया गया था. जवाहरलाल नेहरू को उनके शांति कार्य के लिए बड़े पैमाने पर नामांकित किया गया था.
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1907 में कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला लेने के बाद नेहरू जी ने वर्ष 1910 में नैचुरल साइंस में ऑनर्स की डिग्री हासिल की.
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वह अगस्त 1912 में भारत लौट आए और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में नामांकन करके खुद को एक बैरिस्टर के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया.
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देश की आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू को नौ अलग-अलग बार जेल भेजा गया था. कुल मिलाकर, अंग्रेजों ने नेहरू को 3259 दिनों के लिए कैद कर लिया, जो उनके जीवन के 9 साल के बराबर थे.
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उन्होंने 1935 में जेल में रहते हुए एक आत्मकथा भी लिखी थी. इसका नाम “टुवार्ड फ्रीडम” रखा गया था, जिसे 1936 में संयुक्त राज्य अमेरिका में जारी किया गया था.
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1929 में नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने और आजादी की चल रही लड़ाई में एक प्रमुख भूमिका निभाई, जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी.
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27 मई 1964 को पंडित नेहरू का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था और लगभग 1.5 मिलियन लोग उनके दाह संस्कार के साक्षी बने थे.
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वह वर्ष 1927 में पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रस्ताव करने वाले पहले व्यक्ति थे और भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) सहित, ब्रिटिश साम्राज्य के लिए भारतीयों को बाध्य करने वाले सभी संबंधों को त्याग दिया था.
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नेहरू जी भी एनी बीसेंट की 1916 में स्थापित होम रूल लीग में कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए.
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पंडित जवाहरलाल नेहरू को “आधुनिक भारत के वास्तुकार” के रूप में भी जाना जाता है.