थाइलैंड की मशहूर लाल, पीली और हरी करी की बुनियाद भी नारियल के दूध में ही रखी जाती है. मलाया की पैनान करी, म्यांमार का कोसवे और इंडोनेशियाई तथा वियतनामी व्यंजनों में भी नारियल का प्रयोग होता है. नारियल से बनायी गयी जेली उन गिनी-चुनी मिठाइयों में है जिसे दक्षिण-पूर्व एशियाई अपना कह सकते हैं.
भारत के तट तक कैसे पहुंचा नारियल
भारतीय खानपान में यदि कोई एक पदार्थ ऐसा है जिसका उपयोग भारत के सभी हिस्सों में होता है, तो वह नारियल है, जिसे श्रीफल का नाम भी दिया जाता है. खानपान के इतिहासकारों का मानना है कि आज से दसियों हजार साल पहले, हिंद महासागर की लहरों पर तैरता पहला नारियल भारत के तट तक पहुंचा, और यहां की आबोहवा इसे कुछ ऐसी रास आयी कि वह यहीं की संतान बन गया. नारियल के ताड़ जैसे पेड़ तटवर्ती इलाके में होते हैं, पर इस फल की खासियत कुछ ऐसी है कि इसे ताजा और सूखा दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. फिर, चाहे आप किसी भी स्वाद का व्यंजन बना रहे हों, नमकीन, खट्टा, तीखा यह उसके साथ बेहतरीन जुगलबंदी साध सकता है.
कहां कैसे होता है नारियल का इस्तेमाल
बंगाल में डाब चिंगरी बहुत लोकप्रिय है जिसमें हरे नारियल के पात्र में बडे-बडे झींगे भाप से पकाये और ताजा पीसी सरसों का पुट लिये परोसे जाते हैं. मलाई माछ की तरी में भी नारियल के दूध का इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी छोर पर आप कोल्हापुर के विविध रस्सों का जिक्र कर सकते हैं, जिनका अनोखी पहचान वाला मसाला पिसे हुए कोबरा, यानी सूखे नारियल से तैयार होता है. इनमें नारियल की मिठास लेश मात्र भी नहीं बचती. केरल में परप्पू पायसम नाम की जो खीर बनती है उसमें गाय, भैंस के दूध का नहीं, नारियल के दूध का इस्तेमाल किया जाता है. ओडिशा में और असम में तरह-तरह के पीठे और लड्डू बनाये जाते हैं, जिनकी मीठी किस्मों में कद्दूकस किया नारियल बहुत मजेदार बनता है. पारंपरिक रूप से घर पर बनायी जाने वाली मिठाइयों में नारियल की बर्फी और नारियल के लड्डू बहुत आम हैं. सामिष व्यंजनों में भी नारियल के बुरादे का इस्तेमाल होता है. कोझिकोड के सागर नामक रेस्तरां में स्वादिष्ट पोंफ्रेट जैसी कारीमीन मछली को नारियल के बुरादे और लहसुन और लाल मिर्च में लपेटकर गहरा तला जाता है. तमिलनाडु में अभावग्रस्त परिवार अपने बच्चों को सूखे नारियल के छिलके समेत टुकड़ों को काटकर एक अनूठी मुर्गी का शोरबा खिलाते हैं.
भारत ही नहीं, विदेशों में भी नारियल के जायके
उत्तर भारत में कतरे नारियल हलवे और खीर को सजाने के लिये और उनका स्वाद बढ़ाने के लिये डाले जाते हैं. कई जगह इसकी मात्रा इतनी अधिक होती है कि खीर का नाम ही बदलकर नारियल की खीर कर दिया जाता है. हाल में नारियल के कुदरती स्वाद ने खानपान के शौकीनों की नयी पीढ़ी को आकर्षित करना आरंभ किया है. नारियल के स्वाद वाली आइसक्रीम का ग्राहकों ने स्वागत किया है. नारियल पानी ने घरों, होटलों और कैंटीनों में कई जगह शिकंजी को चुनौती देना शुरू कर दिया है. यह सेहत के लिये फायदेमंद समझा जाता है और पिछले कुछ समय से बिना चीनी या संरक्षण की मिलावट के नारियल का पानी बोतल बंद या टेट्रापैक डिब्बों में बिकने लगा है. भारत ही नहीं, विदेशों में भी नारियल के जायके अलग-अलग देशों में लोग अपने स्वादानुसार खाने में शामिल करते हैं. थाइलैंड की मशहूर लाल, पीली और हरी करी की बुनियाद भी नारियल के दूध में ही रखी जाती है. मलाया की पैनान करी, म्यांमार का कोसवे और इंडोनेशियाई तथा वियतनामी व्यंजनों में भी नारियल का प्रयोग होता है. नारियल से बनायी गयी जेली उन गिनी-चुनी मिठाइयों में है जिसे दक्षिण-पूर्व एशियाई अपना कह सकते हैं. श्रीलंका में ईडी अप्पम नारियल के मीठे दूध के साथ बड़े चाव से खाये-खिलाये जाते हैं. यह जोड़ी केरल में भी पसंद की जाती है. वहां के ईस्टू में भी पानी की जगह नारियल के दूध का ही प्रयोग होता है.
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