Gita Updesh: संसार से आशा रखना और परमात्मा से निराश होना ये हैं जीवन की सबसे बड़ी दो भूलें

Gita Updesh: भगवद गीता के अनुसार संसार से आशा और परमात्मा से निराशा रखना जीवन की दो सबसे बड़ी भूलें हैं. जानिए श्रीकृष्ण के इस उपदेश का गूढ़ अर्थ.

By Pratishtha Pawar | May 25, 2025 7:55 AM
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Gita Updesh: भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक गहन जीवन दर्शन है. इसमें श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत काल में थे. जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा, सफलता-असफलता जैसे भावनात्मक उतार-चढ़ाव से कैसे निपटना है, इसका मार्गदर्शन गीता में मिलता है.

इस पवित्र ग्रंथ में दो ऐसी बड़ी भूलों का उल्लेख किया गया है जो हम जीवन में अनजाने में कर बैठते हैं. जानें क्या हैं वे दो सबसे बड़ी गलतियां जिन्हें टालकर हम जीवन में सच्चा सुख प्राप्त कर सकते हैं.

Gita Updesh: गीता का उपदेश

भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाते हुए कहा —

“संसार से आशा रखना और परमात्मा से निराश होना, ये दोनों ही जीवन की सबसे बड़ी भूलें हैं. अगर आशा रखनी है तो केवल परमात्मा से रखें, क्योंकि संसार से निराशा ही परम सुख है.”

यह उपदेश हमें बताता है कि जो व्यक्ति संसार में सुख की आशा करता है, वह निरंतर असंतोष और दुख का अनुभव करता है. क्योंकि यह संसार चंचल है, परिवर्तनशील है और किसी भी वस्तु या व्यक्ति से स्थायी सुख की उम्मीद करना स्वयं को धोखा देना है.

Biggest Life Mistakes Mentioned in Gita: जानिए गीता में बताई गई दो सबसे बड़ी भूलें

1. संसार से आशा रखना | Expectation from the World Gita Quote

यह सबसे बड़ी भूलों में से एक है. जब हम संसार से, लोगों से, रिश्तों से या वस्तुओं से अत्यधिक अपेक्षाएं रखने लगते हैं, तब हम हर बार निराश होते हैं. कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं है, और न ही संसार की कोई वस्तु चिरस्थायी सुख दे सकती है.
श्रीकृष्ण कहते हैं-
“जो व्यक्ति संसार से कोई अपेक्षा नहीं करता, वही सच्चे सुख का अनुभव करता है.”

संसार से जितना कम जुड़ाव होगा, उतना ही कम दुख मिलेगा. जब हम किसी से कुछ चाहते हैं और वो नहीं मिलता, तो दुख होता है. इसीलिए गीता में कहा गया है कि सच्चा सुख त्याग में है, न कि अपेक्षा में.

2. परमात्मा से निराश होना | Mistakes in Life According to Gita

यह दूसरी और गहन भूल है. हम जीवन की कठिन परिस्थितियों में परमात्मा से उम्मीद करते हैं कि सब कुछ चमत्कारिक रूप से ठीक हो जाए. जब ऐसा नहीं होता, तो हम निराश हो जाते हैं और ईश्वर पर से विश्वास उठने लगता है. लेकिन गीता हमें सिखाती है कि परमात्मा कभी हमारे साथ बुरा नहीं करते.

“जो होता है, वह ईश्वर की योजना के अनुसार होता है, और वह हमारे कल्याण के लिए ही होता है.”

परमात्मा से निराश होना, उनकी योजना को न समझ पाना है. ईश्वर की कृपा अदृश्य होती है लेकिन वह हमें हमारी आत्मिक उन्नति के पथ पर ले जाती है.

जीवन में संतुलन और सच्चा सुख पाने के लिए हमें गीता के इन उपदेशों को अपनाना चाहिए. संसार से अपेक्षा छोड़कर परमात्मा में आस्था रखना ही वह राह है जो हमें आत्मिक शांति की ओर ले जाती है. श्रीकृष्ण का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था-
“यदि आशा करनी है तो केवल परमात्मा से, क्योंकि संसार से निराशा ही परम सुख है.”

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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