जीवन का मार्गदर्शन करता है गीता का कर्मयोग सिद्धांत
Gita Updesh: भगवद्गीता में "कर्मयोग" भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया एक महत्वपूर्ण उपदेश है. इसका सार यह है कि व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कर्म करे, फल की इच्छा न रखे और आसक्ति से मुक्त रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करें.
By Shashank Baranwal | April 30, 2025 7:45 AM
Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के संघर्षों में दिशा दिखाने वाला दिव्य ग्रंथ है. यह भय, भ्रम और तनाव की स्थिति में आत्मिक शांति, कर्तव्य और संयम का मार्ग सिखाती है. गीता निष्काम कर्म, मोह और अहंकार से मुक्त जीवन का संदेश देती है. यह आत्मचिंतन, विश्वास और संतुलन की प्रेरणा देती है. भगवद्गीता में “कर्मयोग” एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेश है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में दिया. इसका तात्पर्य है कि कर्म करते हुए भी आसक्ति और फल की इच्छा से मुक्त रहना है. इसका मतलब है कि व्यक्ति अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाए, लेकिन उस कर्म के फल की चिंता न करें. ऐसे में आइए जानते हैं कर्मयोग का सिद्धांत क्या कहता है.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, उस कर्म के फलों से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए कर्मों के फल का कारण न बने और न ही अपने कर्म करने में आसक्त हो.